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जिन स्तवनों और विहरमान बोसो की रचना को इन्होंने अपनी रचना में भोजनहर्षसूरि के प्रसाद से रखे जाने का उल्लेख किया है ।
२०वीं शताब्दी में नाथनगर में श्री अमरचन्द जो बोचरा खरतरगच्छ के कट्टर अनुयायी और सुकवि थे। इनके रचित दो चौवासियां प्रकाशित हो चुकी है । ये पहले तेरापंथी थे भोजिनवशः सूरिजी महाराज के अजीमगंज पधारने पर अनेक वादविवाद के पश्चात् मे खरतरगच्छा नुयायो मन्दिर मार्गों बने खरतरगच्छ को आचरणाओं आदि के विषय में आपका गहरा अध्ययन व चिन्तन था। श्रीमद्देवचन्द्रजी की रचनाएं आपको अत्यन्त प्रिय थी।
उपर्युक्त खरतरगच्छ के श्रावक कवियों के अतिरिक्त कतिपय छोटे मोटे और भी अनेक कवि हुए हैं जिनके जिनभद्रसूरि गीत आदि रचनाएं हमारे अवलोकन में आई है । खोज करने पर और कई खरतरगच्छीय कवियों की रचनाएं प्राप्त होगी। बीसवीं शताब्दी में तो हिन्दी गद्यपद्य लेखक, कई कवि हो गए हैं जिनमें से राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद बहुत ही प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। खरतरगच्छीय यति रायचन्द जी ने इनके खानदान के राजा डालचन्द के लिये सं० १८३८ में कल्पसूत्र का पद्यानुवाद किया था। उन्होंने विचित्र मालिका और अवयदी शकुनावली को रचना की। राजाशिवप्रसाद सितारे हिन्द' के बहुत से ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं उनकी दादी रत्नकुंदरि बोबो लखनऊ के राजा बच्छराज नाहटा की पुत्री थी। उसने सं० १८४४ में माथ दि ५ को प्रेम नामक हिन्दी काव्य बनाया । कवियित्री कुंवरि बहुत बड़ी पंडिता थी और उसका झुकाव कृष्ण
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भक्ति को ओर दिखाई देता है। राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद को लड़की गोमती बीबी जेनधर्म की अच्छी जानकार थी । यहखानदान खरतरगच्छीय हैं।
स्वयं ग्रन्थ रचना करने के अतिरिक्त खरतरगच्छ के बहुत से श्रावकों ने विद्वान यतिमुनियों से अनुरोध कर अनेकों रचनाएं करवायी थी । उनसब का विवरण देखने से खरतर गच्छीय श्रावकों के साहित्य प्रेम का अच्छा परिचय मिल जाता है।
ज्ञानभंडारों को स्थापना ओर अभिवृद्धि में तो भावक समाज का महत्वपूर्ण योग रहा है। हजारों प्रतियां उन्होंने प्रचुर द्रव्य व्यय कर लिखवायी । कविजनों को समय समय पर पुरष्कार आदि देकर प्रोत्साहित किया। कई धावक अच्छे विद्वान थे, पर साहित्य निर्माण का उन्हें सुयोग प्राप्त नहीं हुआ । विद्वानों का सत्संग, स्वाध्याय प्रेम उन्हें बहुत रुचिकर रहा है। समय समय पर विद्वान मुनियों से उन्होने गम्भीर विषयों पर प्रश्न उपस्थित कर उनसे समाधान किया जिसका उल्लेख कई प्रश्नोत्तर ग्रन्थों में पाया जाता है ।
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खरतर गच्छ को कई संस्थाओं ने विद्वान बनाने की योजना बनाई थी पर खेद है कि वह योजना सफल नहीं हो पायी। आज भी इस बात की बड़ी आवश्यकता प्रतीत होती है कि उचित व्यवस्था करके उच्चस्तरीय अध्ययन कर जिज्ञासु विद्यार्थियों को विद्वान बनाने का पूर्ण प्रयत्न किया जाय। खरतरगच्छ के साहित्य के संपादन प्रकाशन, नवीन साहित्य निर्माण में विद्वान श्रावकों की अत्यन्त आवश्यकता है |
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