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। १२४ । वह भी हाथ में अल्प आहार करते थे। नये कर्मबन्ध न हों हेमकूट पर कुछ दिन रहकर सामने को पहाड़ी रत्नकूट को
और उदयाधीन कर्मों को खपाने का अद्भुत प्रयोग आपने गुफा में अधिवास किया। श्रीमद्राजचन्द्र आश्रम की मौन रहते हुए किया। फिर हृषीकेश, उत्तर काशी और स्थाना हुई। मैसूर सरकार और हेमकूट के महन्त पंजाब के स्थानों में निर्विकल्प भाव से विचरते हुए सं० जागीरदार ने समूचा पहाड़ जैन संघ को निशुल्क भेंट २०१० में महातीर्थ समेतशिखरजी पधारे । मधुवन व पहाड़ किया । जहाँ के भयानक वातावरण में दिन में भी लोग पर श्रीचिदानन्दजी महाराज की गुफा में रह कर तपश्चर्या जाने में हिचकिचाते थे, आपके विराजने से दिव्यतीर्थ हो की। वहां से विहार कर वीरप्रभु की निर्वाणभूमि पावा- गया । बहुत से मकान और गुफाओं का निर्माण हुआ। पुरी में पधार कर छः सात मास रहे। दहाणु की लोहाणा विद्युत् और जल की सुविधा तो है हो। श्रीमद्राजचन्द्र वकोल पुरषोत्तम प्रेमजी पौंडा की पुत्री सरला के लिये जन्मशताब्दी के अवसर पर पक्को सड़क का निर्माण हो गया समाधि-शतक रचकर मौन साधना में भी एक घण्टा प्रव. है जिससे मोटरें भी ऊपर जाती हैं। विशाल व्याख्यान चन करके उसे समाधिमरण कराया। आत्मभावमा की हाल, फ्री भोजनालय आदि तो हो ही गये, विशाल अखण्ड धुन प्रचारित कर राजगृहादि यात्रा कर गया होते मन्दिर और दादावाड़ी के निर्माण की भी योजनाएं हैं। हुए गोकाक पधारे । वहां तीन वर्ष अखंड मौन साधना में प्रतिवर्ष लाखों रुपयों का आमद-खर्च है। पर्वृषण में तो गफावास किया। इस समय ठाम चौविहार में केवल दूध उस निर्जन स्थल में चार पाँच सौ व्यक्ति पर्वाराधन करते और केला के सिवा अन्नादि का त्याग था। फिर मध्य रहे हैं। प्रतिदिन प्रातःकाल और मध्यान्ह के प्रवचन में भी प्रदेश में पधार कर तारणपंथ के तीर्थ धाम निसिईजी में बहुत से भावुक लाभ उठाते रहे। आपने तीन वर्ष पूर्व कुछ दिन रह कर आत्मसिद्धि का हिन्दी पद्यानुवाद करके समस्त तीर्थ यात्रा और पचासों स्थानों में भ्रमण करके जो प्रवचन किया। मथुरा, बीकानेर आदि पधार कर सं० व्यक्ति हम्पो नहीं पहुँच सकते थे उन्हें भी अपनी अमृत २०१४ का चातुर्मास प्राचीन तीर्थ खण्डगिरि ( भुवनेश्वर ) वाणी से लाभान्वित किया । आप ध्यान और योग के में बिताया। तीर्थयात्रा करते हुए क्षत्रियकुण्ड पहाड़ पर पारगामी थे। चंचल मन को वश करने, देहाध्यास मिटा तपस्वी साधक श्रीमनमोहनराजजो भणशाली के आग्रह से दो कर आत्मदर्शन प्राप्त करने को शास्त्रीय कुंजियाँ आपके मास रहे। फिर हुषोकेश आदि स्थानों में होकर मध्यप्रदेश हस्तगत थीं। आप की प्रवचन शैलो अद्वितीय थी। पधारे ओर चातुर्मास ऊन में बिताया। फिर बीकानेर पधारे, तत्त्वज्ञान और अध्यात्मवाद जैसे शुष्क विषय की निरूपणजैसलमेर की यात्रा को। शिववाड़ी और उदरामसर के शैली आपकी अजोड़ थी। हजारों श्रोताओं के मनोगत धोरों में रहकर बोरड़ी पधारे ।सं० २०१८ के ज्येष्ट शुक्ला प्रश्नों को बिना प्रश्न किये प्रवचन में समाधान कर देने १५ की रात्रि में सातसो नर-नारियों की उपस्थिति में को अद्भुत प्रतिभा थी। अनेक सद्गत महापुरुषों से आपका दिव्य वस्तुओं के साथ युगप्रधान पद का श्लोक प्रकट हुआ संपर्क था, और दिव्य सुंगधी दिव्य वृष्टि आदि होते रहते । जिसके साक्षी स्वरूप अनेक विशिष्ट व्यक्ति विद्यमान थे। अनेक लब्धि सिद्धियाँ जो युगप्रधान पुरुष में स्वाभाविक तत्पश्चात् क्रमशः पूर्व जन्मों की साधना भूमि हम्पी पधारे प्रगट होतो हैं, विद्यमान रहते हुए भी कभी उस तरफ लक्ष्य जो रामायणकालीन किष्किन्ध्या और मध्यकाल के विजय- नहीं करते। ज्वर, सर्दी आदि व्याधि की कृपा बनी रहती नगर का ध्वंशावशेष है। वहां १४० जैन मन्दिर वाले पर कर्म खपाने के लिये वे उसका स्वागत करते और औष
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