________________
। १२२ महाराजाओं पर आपका बड़ा प्रभाव था। इनकी जीवनी गिरनार पर राजुल गुफा से दक्षिण की ओर अब भी प्रसिद्ध के सम्बन्ध में हमारी 'ज्ञानसार ग्रन्थावली' द्रष्टव्य है। है एवं जूनागढ़ तलहटी में धर्मशाला से संलग्न दादावाड़ी
उन्नीसवीं शताब्दो में काशी में खरतरगच्छ के में मकसूदाबाद निवासी श्री पूरणचन्दजी गोलछा निर्मापित उपाध्याय श्री चारित्रनन्दी गणि परम गीतार्थ थे। जिनके गुरु इनकी चरण पादुकाएं सं० १६२१ में जूनागढ़ संघ व तोर्थ निधि उपाध्याय के दो शिष्य चिदानन्द जी (कपूरचन्दजी) की पेढी सेठ देवचन्द लखमीचंद ने श्री जिन हंससूरि जी द्वारा और ज्ञानानन्द जो बड़े उच्चकोटि के कवि और आध्यात्मिक प्रतिष्ठित कराई थी। पुरुष हुए हैं। श्री चिदानन्दजी महाराज का स्वरोदय
बोसवीं शताब्दो के खरतरगच्छीय योग साधनारत ग्रन्थ उनकी योगसाधना और तद्विषयक ज्ञान का अच्छा
अध्यात्मी पुरुषों में दूसरे चिदानन्दजी महाराज का नाम परिचायक है, आपकी पुद्गल-गीता, बावनी, बहुत्तरी-पद
विशेष उल्लेखनीय है। आप हाथरस के निकटवर्ती ग्राम और स्तवना दि भी उच्चकोटि की काराकला और अनुभव ज्ञान से ओतप्रोत हैं । कविताओं का सर्जन, सौष्टव, फबते उदाहरण और हृदयग्राही भाव अत्यन्त श्लाघनीय हैं । आप गुजरात-भावनगर आदि में काफी विचरे थे। भावनगर की जैनधर्म प्रसारक सभा द्वारा चिदानन्दजी सर्वसंग्रह दो भागों में आपकी समस्त कृतियाँ प्रकाशित हैं।
श्री चिदानन्दजी के गुरुभ्राता श्री ज्ञानानन्दजी भी उच्चकोटि के अध्यात्म योगी थे। आपके शताधिक पदों का संग्रह ज्ञान विलास और संयमतरंग रूप में साठ वीरचन्द पानाचन्द ने प्रकाशित किया था। श्रीचिदानन्द जी महाराज पहले पावापुरी में गांवमन्दिर के पृष्ठ भाग की कोठरी में ध्यान किया करते थे और पीछे गिरनारजो, पालीताना व सम्मेतशिखरजी में भी रहे। सम्मेतशिखरजी में, गिरनारजी में तथा अन्यत्र भी आपकी ध्यान-गफाएँ प्रमिद्ध हैं। भावनगर के पास आपने छींपा जाति को प्रति- के अग्रवाल वैश्य थे। आपका नाम फकीरचन्द था । बोध देकर जैन बनाया था। तीस वर्ष पूर्व जब भद्रमुनिनी कलकत में गंधक, सोरे की दलाली करते हुए विरक्त महाराज भावनगर पधारे । तब उस जाति वालों ने कहा- होकर सर्वस्वत्यागी बने और अजीमगंज जाकर शास्त्राआप खतरगच्छ के हैं । हम भो खतरगच्छ के श्रोचिदानन्दजी भ्यास पूर्वक अपने को जयपुरस्थ खरतरगच्छोय श्री महाराज द्वारा प्रतिबोधित हैं
शिवजीरामजी महाराज के शिष्य के रूप में उद्घोषित इन चिदानन्द जी और ज्ञानानन्दजी के पश्चात खरतर- किया। तदनन्नर पावापुरी ओर राजगृही में जाकर गच्छीय संवेगी मुनि प्रेमचन्द्रजी का नाम आता है जो साधना की। पहले चिदानन्दजी के ध्यान स्थान में गिरनार पर्वत की गुफाओं में ध्यान करते थे। इनको गुफा जाकर ध्यान करने पर ११वे दिन आपको आत्मानुभूति
स्या
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org