________________
बिहार पुरातत्व विभाग के प्रमुख प्रोफेसर जी० सी० चन्द्रा शीर्ष शुद १४ को विजय मुहुर्त में 'श्रीजिनहरिसागरसूरीसाहब, राय बहादुर वृजमोहन जी व्यास आदि जैन अजैन श्वर जी महाराज की जय' ध्वनि के साथ अभिनन्दन पूर्वक विद्वान बहुत आदर करते रहे हैं ।
आचार्य पद से आपको सम्मानित किया। चरित्र नायक का विहार
उपसंहार हमारे चरित नायक ने अपने ३७ वर्ष के लम्बे दोक्षा
पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय जैनाचार्य श्रीजिनहरिसागर पर्याय में संयम को साधना, तीर्थो की स्पर्शना और लोक- सूरीश्वरजी महाराज का यह संक्षिप्त चरित्र है। हमारे कल्याण की विशिष्ट भावना से प्रेरित हो काठियावाड़, चरितनायक आचार्यदेव श्री और आपकी आज्ञा को मानने गुजरात, राजपूताना-मारवाड़, मेवाड़, मालवा, यू० पी० वाले लगभग २०० साधु-साध्वियां हैं। एवं आचार्य श्री पंजाब, बिहार, बंगाल आदि प्रदेशों में विहार करके कर्म के शिष्य म० गणाधीश मुनि श्री हेमेन्द्र सागर जी म० वाद, अनेकान्तवाद, अहिंसावाद आदि मुख्य जैन सिद्धान्तों मुनि श्री दर्शनसागरजी म०, मु० श्री तीर्थ सागरजी म०, का प्रचार किया है। आपके हृदयंगम उपदेशों से प्रभावित एवं मुनि श्री कल्याणसागरजी महाराज आदि मुनि महोदय होकर कई बंगाली भाइयों ने आजीवन मत्स्य-मांस और जैन संघ की अभिवृद्धि करते हए अपने आदर्श जीवन के मदिरा का त्याग करके जीवन को आदर्श बनाया है । आप प्रकाश से भव्यात्माओं को प्रकाशित करें। ने तोर्थाधिराज श्री सिद्धाचल-तालध्वज-गिरनार-प्रभास हमारे चरितनायक दो वर्ष तक जेसलमेर में विराजे और पाटन-पोर्तुगीज साम्राज्य के दोवतीर्थ-शंखेश्वर-तारंगा अह- वहाँ प्राचीन भण्डार का निरीक्षण किया। इतना ही नहीं मदाबाद-पाटण-पालनपुर-आबू-देलवाड़ा-राणकपुर-जेसलमेर. पर ५ पंडित और ५ लहिये (लेखक) रखकर गुरुदेव श्री ने लोद्रवा,नाकोड़ा-करेड़ा पार्श्वनाथ-केशरियानाथ-अजमेर-जय- प्राचीन अलभ्य ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ कराई, संशोधनात्मक पुर-देहली-हस्तिनापुर-सौरिपुर-कम्पिलपुर-रत्नपुरी-अयोध्या- कार्यों में विशेष श्रम करने से गुरुदेव का स्वास्थ्य बिगड़ता कानपुर-लखनऊ-बनारस-सिंहपुरी-चन्द्रपुरो-पटना-चम्पापुरी- गया। जेसलमेर से गुरुदेव ने विहार किया, रास्ते में विशेष श्रीसमेतशिखरजी - कलकत्ता - मुर्शिदाबाद-भद्दिलपुर आदि तबीयत बिगड़ने से आचार्य श्री ने फरमाया-मैं अपना अन्तिम तारणहार तीर्थों की यात्राएं की हैं।
समय किसी तीर्थ पर व्यतीत करना चाहता हूँ अतः आप चरितनायक का आचार्य पद श्री फलौदी पार्श्वनाथ मेड़तारोड़ पधारे, स्वास्थ्य प्रतिदिन
हमारे चरितनायक को १६६३ में म० त० श्री छगन- गिरता ही गया, आहार लेना भी बन्द किया और अहम् सागरजी महाराज ने और जोधपुर आदि शहरों के प्रमुख अर्हम ध्वनि लगाते रहे। दो दिन-रात निरन्तर ध्वनि करते जैन संघ ने लोहावट में गणाधीश्वर पूज्य श्री सुखसागरजी रहे, अन्त में जबान बन्द हो गई तब बीकानेर, जोधपुर महाराज के समुदाय के गणाधीश पद से सुचारू रूप से विभू- आदि से बड़े २ वैद्य, डाक्टर आये किन्तु गुरुदेव श्री ने अपना षित किया था। फिर भी अजीमगंज (मुर्शिदाबाद) के राज आयुष्य सन्निकट जानकर 'अपाणं वोसिरामि' कर दिया। मान्य धर्मप्रेमी जैन संघ ने कलकत्ता, देहली, लखनऊ, संवत् २००६ पोषवदि ८ मङ्गलवार प्रातःकाल सूर्योदय फलोदी आदि नगरों के प्रमुख व्यक्तियों के विशाल जन- के पश्चात् आप श्री सर्व चतुर्विध संघ को विलखता हुआ समूह के बीच महा समारोह के साथ वि०सं० १९६२ मार्ग- छोड़कर स्वर्ग पधार गये ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org