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पर से वीतराग की वाणी सुनाई। प्रतिदिन व्याख्यान की पड़ा। अन्त में आज्ञा मिली और जीर्णोद्धार का पूरा झडियां बरसने लगी। तीनों महापुरुष भिन्न-भिन्न मान्यता लाभ बम्बई निवासी गुरुदेव भक्त, दानवीर सेठ पुनमचन्दजी वाले होने पर भी एक जगह पर साथ-साथ प्रवचन देते। गलाबचन्दजी गोलेछा ने लिया। जीर्णोद्धार होने के बाद मधुर मिलन से जनता को ऐक्यता का अच्छी प्रेरणा उनकी पुनः प्रतिष्ठा के लिये एवं श्रीजिनदत्तसूरि सेवा संघ मिली।
के द्वितीय अधिवेशन के आयोजन पर पधारने के लिये संघ गच्छ में साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाओं का मजबूत के प्रमुख श्रावक वर्ग, पूज्यश्रीको सेवा में सैलाना संगठन एवं योजनाबद्ध प्रचार व विकास के लिये आपश्रीने पहुँचा। श्री संघ की आग्रहपूर्वक की हुई विनति से समस्त श्रीसंघ से परामर्श कर सं० २०११ में अजमेर में लाभ का कारण जानकर आप श्री ने पालीताना की ओर प० पू० युगप्रधान दादा साहब श्रीजिनदत्तसूरिजी म. सा. विहार किया। गच्छ व समुदाय के पू० मुनिवर्ग व की अष्टम शताब्दी समारोह के अवसर पर आप श्री की साध्वीजी गण भी पालीताना पधार गये। सेठ आनन्दजी प्रेरणा व शासनरागी श्रीप्रतापमलजी सा० सेठिया के कल्याणजी की पेढी की ओर से पूज्य आचार्यश्री के भव्य परिश्रम से "अखिल भारतीय श्री जिनदत्तसूरि सेवा-संघ” प्रवेश महोत्सव का आयोजन किया गया । की स्थापना हुई । गच्छ को मानने वाले श्रावक-गण पूरे सं० २०२६ वैशाख शुक्ला ६ को सिद्धाचलजी तीर्थ भारत के कोने-कोने में फैले हुए हैं। अतः एक ऐसी संग- पर नव-निर्मित देहरियों में पू० दादा-गुरुदेवों के प्राचीन ठनात्मक संस्था हो, जो सारे देश में गच्छ के मन्दिर, चरणों की प्रतिष्ठा आप पूज्य श्री के कर कमलों द्वारा दादावाड़ी, ज्ञानभंडार, शिलालेख आदि की देख भाल व सम्पन्न हुई। चातुर्मास का समय निकट आया। श्री संघ उच्च व्यवस्था कर सके, इस वस्तु को सामने रखकर श्री के आग्रह से आप मुनि-मंडल सहित वहीं चातुर्मास जिनदत्तसूरि सेवा संघ की स्थापना हुई।
विराजे । पू० उपाध्यायजी, बहुश्रुत श्री कवीन्द्रसागरजी ___ आप श्री ने कई जगह पर दीक्षाएँ, प्रतिष्ठाएँ, अंजन- म. सा. (बाद में आचार्य) पू० श्रीहेमेन्द्रसागरजी म.. शलाका, उपधान, छःरी पालते संघ निकलवाये जिसमें सा० (वर्तमान गणाधीशजी) पू० आर्यपुत्र श्री उदयप्रमुख :- फलोदी से जैसलमेर, इन्दौर से मांडवगढ़, मांडवी सागरजी म. सा. पू० श्री कान्तिसागरजी म. सा. से भद्रे श्वरजीतीर्थ, मांडवी से सुथरी तीर्थ आदि। आदि १४ मुनिराज, एवं कुल मिला कर २६ मुनिराजों
शाश्वता तीर्थाधिराज श्री सिद्धाचलजी तीर्थ पर दादा व ६२ साध्वीजीगण का संयुक्त चातुर्मास पालीताना में साहब की टोंक में, युगप्रधान पू० दादा गुरुदेव श्री जिन- हुआ। दत्तसूरिजी म. व श्री जिनकुशलमूरिजी म. सा. के चरण चातुर्मास काल में साधु-साध्वियों का पठन-पाठन, जिनको प्रतिष्ठा मुगल सम्राट अकबर-प्रतिबोधक, युग- भाषण देने की शिक्षा आपश्रीने प्रारम्भ की। चातुर्मास में प्रधान, जिनचन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. के कर कमलों से वर्षा की झड़ियों के साथ-साथ तपस्या की भी झडिये सेकड़ों वर्ष पूर्व हुई थी, वह छत्री प्रायः जीर्ण अवस्था में लगनी प्रारम्भ हुई । आपश्री की निश्रामें १० मासक्षमण पहुँचने का कारण उनके जीर्णोद्धार के लिये तीर्थ को वहो- हुए। तपस्वियों का भव्यजुलूस, अट्ठाई महोत्सव, शान्तिवट कर्ता, सेठ आनन्दजी कल्याणजी की पेढी से आज्ञा प्राप्त स्नात्र, स्वामी-वात्सल्य का आयोजन हुआ। विजयादशमी करने में श्री जिनदत्तसूरि सेवा संघ को भारी पुरुषार्थ करना से श्री संघ की ओर से स्थानीय नजरबाग में उपधान तर
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