Book Title: Manidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Manidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 180
________________ सं० १९६७ का चातुर्मास पन्यास जी ने कुचेरा खंभात व १९८० कड़ोद चातुर्मास किया। वहाँ लाडुआ किया । यज्ञ-होम, शांतिपाठ और ठाकुरजी जो सवारी श्रीमाली भाइयों को संघ के जीमनवार में शामिल नहीं निकलने पर भी बूंद न गिरी तो आपश्री के उपदेश से किया जाता था, पन्यासजी ने उपदेश देकर भेदभाव दूर जेन रथयात्रा निकली, स्नात्र पूजा होते ही मूसलधार वर्षा कराया। सं० १९८१ वलसाड़ करके नंदरबार पधारे से तालाब भर गए। वहां से तीन मील लूणसर में भी आपके उपदेश से नवीन उपाश्रय का निर्माण हुआ। प्रभु इसी प्रकार वर्षा हुई तो कुचेरा के ३० घर स्थानकवासियों प्रतिष्ठा, ध्वजदंडारोहण आदि बड़े ही ठाठ-माठ से हुए। ने पुनः मन्दिर आम्नाय स्वीकार कर उत्सवादि किए, सं० १९८२ व्यारा चौमासे में भी उपधान आदि प्रचुर दोडसौ व्यक्तियों के संघ ने प्रथमबार शत्रुञ्जय यात्रा की। धर्मकार्य हुए। टांकेल गाँव में मन्दिर और उपाश्रय निर्माण तदनन्तर फलौदो, पुष्कर, अजमेर होकर जयपुर पधारे, उद्याप- हुए, और भी नामानुग्नाम विचरते अनेक प्रकार के शासनोनादि उत्सव हुए। पंचतीर्थी कर अनेक नगरों में विचरते न्नति के कार्य किये। सं० १९८३ वैशाख में सामटा बन्दर बम्बई पधारे। दो चातुर्मास कर पालीताना पधारे ८१ में मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई। सं० १९८३-८४ के चातु आंबिल और ५० नवकारवाली पूर्वक निन्नाणुं यात्रा की। सि बम्बई हुए । घोलवड़ में मन्दिर व उपाश्रय उपदेश सं०१९७१ का चातुर्मास खंभात में करके मोहनलालजी जैन देकर करवाया। सं० १९८५ सूरत, १९८६ कठोर में हुन्नरशाला और पाठशाला स्थापित की। सं० १९७२ चौमासा किया। आपने चार और पाँच उपवास से एकमें सूरत चातुर्मास में उपधान तप एवं अनेक उत्सव हुए। एक पारणा करने की कठिन तपस्या तीन महीने तक की। सं १९७३-७४ लालबाग बम्बई का उपधान कराया, फिर सायण होकर सूरत आदि अनेक स्थानों में विचरते उत्सवादि हुए । पालीताना पधार कर एकान्तर उपवास हुए सं० १९८७ का चातुर्मास दहाणु किया। बोरड़ी और पारणे में आंबिल पूर्वक उग्रतपश्चर्या को कई वर्षों से पधार कर उपाश्रय के अटके हए काम प्रति श्रद्धान्तु बने स्थानकवासी मुनि रूपचन्दजी फणसा में उपाश्रय-देहरासर बना । गुजरात में स्थान-स्थान के शिष्य गुलाबचन्द जी ने अपने शिष्य गिरीधारीलालजी में विचर कर विविध धर्म कार्य कराये । मरोली में उपाश्रय के साथ आकर आपके पास सं० १९७५ वै० शु. ६ को हुआ। खंभात की दादावाड़ो को चारों देहरियों का दीक्षा ली। उनका श्री गलाबमनि और उसके शिष्य का जीर्णोद्धार होने पर सरत से विविध गांवों में विचरते हए गिरिवर मुनि नाम स्थापन किया । तदनन्तर सं० १९७६ का खंभात पधार कर दादावाड़ी की प्रतिष्ठा सं० १९८८ चौमासा बम्बई कर भात आये और अठाई-महोत्सवादि ज्येष्ठ सुदि १० को की। कटारिया गोत्रीय पारेख छोटालाल के बाद सूरत पधारे। मगनलाल नाणावटी ने प्रतिष्ठा, स्वधर्मीवत्सल आदि में सूरत में दादागुरु श्रीमोहनलालजी के ज्ञानभंडार को अच्छा द्रव्य व्यय किया। चातुर्मास के बाद मातर तीर्थ सुव्यवस्थित करने का बीड़ा उठाया और ४५ अलमारियों को यात्रा कर सोजिते पधारने पर माणिभद्रवार की देहरी को अलग-अलग दाताओं से व्यवस्था की। आलोशान से आकाशवाणी हुई कि खंभात जाकर माणेकची के मकान था, उपधान तप में माला की बोली आदि के उपाश्रय स्थित माणिभद्र देहरी को जीर्णोद्धार का उपदेश मिलाकर ज्ञानभण्डार में तीस हजार जमा हुए। मोहन- दो। खंभात में पन्यासजी उपदेश से सं० १९८६ फा० सु० लालजी जैन पाठशाला को भी स्थापना हुई। सं० १९७६ १ को जीर्णोद्धार सम्पन्न हुआ। कार्तिक पूर्णिमा के दिन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300