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महोदयमुनि को दीक्षा देकर श्री गुलाबमुनिजी के शिष्य बम्बई संघ पन्यासजी महाराज को आचार्य पद पर प्रतिबनाये । अनेक गाँवों में विचरते हुए अहमदाबाद पधारे। ष्ठित करने का विचार करता था पर पन्यासजी स्वीकार संघ की वीनति से जीर्णोद्धारित कंसारी पाश्वनाथजी की नहीं करते थे। अन्त में रवजो सोजपाल आदि समस्त श्री प्रतिष्ठा खंभात जाकर बड़े समारोह से कराई। अहमदा
___ संघ के आग्रह से सं० १९६५ फागुण सुदि ५ को बड़े भारी बाद पधार कर दादासाहबकी जयन्ती मनाई, दादावाड़ी
समारोह पूर्वक आपको आचार्य पद से अलंकृत किया गया। का जीर्णोद्धार हमा। अनेक स्थान के मन्दिर-उपाश्रयों के सम जीर्णोद्धारादि के उपदेश देते हुए दवीयर पधार कर प्रतिष्ठा अब पन्यास ऋद्धिमुनिजी श्रीजिनयश:सूरिजी के पट्टधर कराई । घोलवड में जैन बोडिंग की स्थापना करवायी। जैनाचार्य भट्टारक श्रीजिनऋद्धिसूरिजी नाम से प्रसिद्ध हुए। सं० १९९१ का चातुर्मास बम्बई किया। पन्यास श्रीकेशर- सं
में जब आप दहाण में विराजमान थे तो मनिजी ठा० ३ महावीर स्वामी में व कच्छी वीसा ओस- गणिवर्य श्री रत्नमनिजी, लब्धिमनिजी भी आकर मिले । वालों के आग्रह से श्रीऋद्धिमुनिजी ने मांडवी में चौमासा अपर्व आनन्द हआ। आपश्री की हार्दिक इच्छा थी ही किया । वर्द्धमानतप आंबिल खाता खुलवाया । अनेक धर्मकार्य कि सयोग्य चारित्र-चडामणि रलमनिजी को आचाये पद हुए। सं० १६६२ लालवाड़ी चौमासा किया भाद्रव दो होने और श्रीलब्धिमनिजी को उपाध्याय पद दिया जाय। बम्बई से खरतरगच्छ और अंचलगच्छ के पर्दूषण साथ हुए। दूसरे संघने श्री आचार्य महाराज के व्याख्यान में यही मनोरथ भाद्रव में गलाबम निजी ने दादर में व पन्यासजी ने लाल- प्रकट किया। आचार्य महाराज और संघ की आज्ञा से वाड़ी में तपागच्छीय पर्युषण पर्वाराधन कराया। पन्यास रत्नमनिजी और लब्धिमनिजी पदवी लेने में निष्पृह होते केशरमुनिजी का कातो सुदि ६ को स्वर्गवास होने पर हुए भी उन्हें स्वीकार करना पड़ा । दश दिन पर्यन्त महोत्सव पायधुनी पधारे।
करके श्रीजिनऋद्धिसरिजी महाराज ने रत्नमनिजी को जयपुर निवासी नथमलजी को दीक्षा देकर बुद्धि
आचार्य पद एवं लब्धिमनिजी को उपाध्याथ पद से अलंकृत मुनिजी के शिष्य नंदनमुनि नाम से प्रसिद्ध किये । पन्यासजी
जो किया। मिती आषाढ़ सुदि ७ के दिन शुभ मुहूर्त में यह का १९६३ का चातुर्मास दादर हा। ठाणा नगर में पद महात्सव हुआ। पधार कर संघ में व्याप्त कुसंप को दूर कर बारह वर्ष से तदनंतर अनेक स्थानों में विचरण करते हुए आप राजअटके हुए मन्दिर के काम को चालू करवाया। सं० १९९४ स्थान पधारे और जन्म भूमि चूरु के भक्तों के आग्रह से मिती वै० सु०६ को ठाणा मन्दिर की प्रतिष्ठा का महत वहां चातुर्मास किया। उपधान तपके मालारोपण के अवसर निकला। यह मन्दिर अत्यन्त सुन्दर और श्रीपाल चरित्र पर बीकानेर पधार कर उ० श्रीमणिसागरजी महाराज को के शिल्ल चित्रों से अद्वितीय शोभनीक हो गया। प्रतिष्ठा आचार्य-पद से अलंकृत किया। फिर नागोर आदि स्थानों कार्य वै० ब० १३ को प्रारम्भ होकर अठाई महोत्सवादि में विचरण करते हए जोर्णोद्ध द्वारा बड़े ठाठ से हुआ। वै० सु० १२ को पन्यासजी महा. शासनोन्नति कार्य करने लगे। राज विहार कर बम्बई के उपनगरों में विचरे। माटुंगा अन्त में बम्बई पधार कर बोरीवली में संभवनाथ जिनामें रवजी सोजपाल के देरासर में प्रतिमाजी पधराये। लय निर्माण का उपदेश देकर कार्य प्रारम्भ करवाया। सं० मलाड़में सेठ बालूभाई के देरासर में प्रतिमाजी विराजमान २००८ में आपका स्वर्गवास हो गया। महावीर स्वामी के को । सं० १९९४ का चातुमास ठाणा संघ के अत्याग्रह मन्दिर में आपकी तदाकार मूत्ति विराजमान की गई। से स्वयं विराजे । दादासाहब की जयन्ती-पूजा बड़े ठाठ से आपका जीवन वृतान्त श्रीजिनऋद्धिसूरि जीवन-प्रभा में हुई। वर्द्धमानतप आयंबिल खाता खोला गया। साहमी सं० १६६५ में छपा था और विद्वत शिरोमणि उ० लब्धिपच्छलादि में कच्छी, गुजराती और मारवाड़ी भाइयों का मुनिजी ने सं० २०१४ में संस्कृत काव्यमय चरित कच्छ सहभोज नहीं होता था, वह प्रारम्भ हुआ। ठाणा और मांडवी में निर्माण किया जो अप्रकाशित है।
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