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• . पन्द्रह वर्ष के दीर्घ प्रवास से जेठमलजी जोधपुर लौटे प्रतिष्ठा के हेतु पालीताना पधारने की प्रार्थना की। .
और विनयपूर्वक माता को स्थानकवासो मान्यता छड़ाकर बाबू साहब की भक्तिसिक्त प्रार्थना स्वीकार कर जिनप्रतिमा के प्रति श्रद्धालु बनाया। तदनन्तर उन्होंने ५१ पूज्यवर श्री मोहनलालजो महाराज अपने शिष्य समुदाय दिन की दीर्घ तपश्चर्या प्रारम्भ की दीवान कुंदनमलजी ने सहित पालीताना पधारे और नौ द्वार वाले विशाल बड़े ठाठसे अपने घर ले जाकर पारणा कराया। माता-पुत्र जिनालय की प्रतिष्ठा सं० १९४६ माघ सुदि १० के दिन दोनों वैराग्य रस ओत-प्रोत थे। माता को दीक्षा दिलाने बड़े ठाठ के साथ कराई। १५ हजार मानव मेदिनी की के अमन्तर जेठमलजी ने खरतरगच्छ नभोमणि श्री मोहनलाल उपस्थिति में अंजनशलाका के विधि-विधान के कार्यों में जो महाराज के वन्दनार्थ नवाशहर जाकर ' दीक्षा की गरु महाराज के साथ श्रीयशोमुनि जी की उपस्थिति और भावना व्यक्त कर जोधपुर पधारने के लिये वोनती को। पूरा पूरा सहयोग था। गुरुमहाराज के जोधपुर पधारने पर आपने सं० १९४१ जेठ इसी वर्ष मिती अषाढ़ सुदि ६ को चूरु के यति रामशु०५ के दिन उनके करकमलों से दीक्षा ली और 'जसमुनि' कुमारजी को दीक्षा देकर ऋद्धिमुनिजी के नाम से यशोबने । व्याकरण, काव्य, जैनागमादि के अभ्यास में दत्त- मनिजी के शिष्य प्रसिद्ध किये। फिर केवलम नि और अमर चित होकर अभ्यास करते हुए गरुमहाराज के साथ अजमेर, मुनि भी आपके शिष्य हुए। सूरत-अहमदाबाद के संघ को पाटण और पालनपुर चातुर्मास कर फलोदी पधारे। आग्रहभरी वीनती थी। अतः सं० १९५२-५३ के जोधपुर संघ की वोनती से गुरु महाराजने जसमुनिजी को चातुर्मास सूरत में करके अहमदाबाद पधारे। सं० १९५४वहां चातुर्मास के लिये भेजा। तपश्वी तो आप थे ही ५५-५६ के चातुर्मास करके पन्यास श्री दयाविमल जी के सारे चातुर्मास में आयंबिल तप करते तथा उत्तराध्ययन पास ४५ आगमों के यो गोद्वहन किये । समस्त संघ ने आपको सूत्र का प्रवचन करते थे। अपनी भूमि के मुनिरत्न को पन्यास और गणिपद से विभूषित किया। तदनन्तर गुरु देख संघ आनन्द-विभोर हो गया। चातुर्मास के अनन्तर महाराज के चरणों में सूरत आकर हर्ष निजी को योगोद्वहन फलोदी पधार कर गुरुमहाराज के साथ जेसलमेर, आबू, कराया। सं० १९:७ सूरत चौमासा कर १९५८ बम्बई अचलगढ आदि तीर्थों की यात्रा करते हुए अहमदाबाद पधारे और हरखमुनिजी को पन्यास पद प्रदान किया। पधार कर चातुर्मास किया। तदनन्तर पालोताना, सूरत, राजस्थान में धर्म प्रचार और विहार के लिये गुरु बंबई, सूरत, पालीताना चातुर्मास किया सातवें चातुर्मास महाराज की आज्ञा हुई तो आपश्री ने सात शिष्यों के साथ में आपने गुणमुनि को दीक्षित किया।
शिवगंज चातुर्मास कर उपधान कराया। राजमुनिजी के __सिद्धाचलजी की जया तलहटी में राय धनपतसिंहजी शिष्य रत्नमनिजी, लब्धिमुनिजी और हेतश्रीजी को बड़ी बहादुर ने धनवसी टुंक का निर्माण कराया। उनकी धर्म- दीक्षा दी। सं० १९६० का चातुर्मास जोधपुर में किया पत्नो रानी मैनासुन्दरी को स्वप्न में आदेश हुआ कि और सं० १६६१ का चातुर्मास अजमेर विराजे। इसी जिनालय की प्रतिष्ठा श्री मोहनलालजी महाराज के समय कान्फ्रेन्स अधिवेशन पर गए हुए कलकत्ताके राय बद्रोकरकमलों से करावे। उन्होंने बाबूसाहब को अपने स्वप्न दास मुकीम बहादुर, रतलाम के सेठ चांदमलजी पटवा, की बात कही। उनके मन में भी वही विचार था अत: ग्वालियर के रायवहादुर नथमलजी गोलछा और फलोदी अपने पुत्र बाबू नरपतसिंह को भेजकर महाराज साहब को के सेठ फूलचन्दजी गोलछा ने श्री मोहनलालजी महाराज
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