________________
। १३८ ।
की आराधना प्रारम्भ हुई। शानदार ढंग से चातुर्मास का प्लॉट में आपका अग्निदाह हुआ। उन भूमि का भी महान् समय पूरा हुआ।
सौभाग्य समझे कि मकान बनने के पूर्व महापुरुष को प्रतिवर्ष पालीताना में यात्रा के लिये पधारने वाले स्थापित किया। साध-साध्वी व श्रावक-श्राविकाओं को धर्मशाला में ठहरने कंकुबाई की धर्मशाला में पूज्यवरश्रीजी के आत्म का स्थान नहीं मिलता था, और मिलता भी था तो उसमें श्रेयार्थ अट्ठाई महोत्सव व शान्तिस्नात्र का भव्य आयोजन कई झंझटें आती थी। इस संकट को सदा के लिये दूर किया गया । करने की योजना पूज्यवर आपश्री एवं पू० उपाध्यायजी पू० स्व० आचार्यश्री अब हमारे बीच में नहीं रहे किन्तु म० सा० श्रीकवीन्द्रसागरजी म. सा० (बादमें आचार्य) ने आप पूज्यवरश्री का आदर्श जीवन आपकी हित शिक्षायें बनाई। जयपुर संघ के प्रमुख श्रावक श्रेरिठवर्य श्रीहमीर- हमारे सामने हैं। हम उनका पालन करते हुए आपश्री मलजी सा० गोलेच्छा व श्री सिरेमलजी सा० संचेती आदि के चरणों में हमारी नम्रव हार्दिक श्रद्धाञ्जलि समर्पित से परामर्श कर धर्मशाला बनाने के लिये "श्रीजिनहरि करते हैं। विहार" के नाम पर प्लॉट खरीदा गया।
आपके आत्मा की महान पूण्याई थी कि योवन अबचातुर्मास का समय संपूर्ण हो चुका था, सभी बिहार स्था में चारित्र लेकर वीतराग के शासन व गच्छ को की तैयारियाँ में लगे थे। पू० उपाध्यायजी म. सा० ने दीपाया। आपने शासन पर किये महान् उपकार, श्रीसंघ पालनपुर की ओर प्रस्थान किया। आप पूज्यवर भी कदापि नहीं भल सकता। बड़ोदा की ओर प्रस्थान करने वाले थे किन्तु भावी होन
वर्तमान में आपके मुनि व साध्वीगण, पू० गणाधीश्वर हार होकर ही रहता है। एकाएक आपश्री को हार्ट एटेक
श्री हेमेन्द्रसागरजी म. सा. की आज्ञामें महाकौशल, सा हुआ, कि सो प्रकार की बिना बिमारी के समाधिस्थ हुये। मांध्रप्रदेश, तामिलनाडु, वर्नाटक, बंगाल, राजस्थान, गुजआपके अचानक स्वर्गवास से सारे संघ में शोक छागया। रात. सौराष्ट महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में विचर कर शासन आकाशवाणी द्वारा सर्वत्र समाचार प्रसारित किये गये। का प्रचार करते हैं। आपश्री के अन्तिम संस्कार का पूरा लाभ बड़ौदा निवासी, जो च्छे हैं, और सभी के भलाई की चिंता करते हैं सेठ शान्तिलाल हेमराज पारख ने लिया ।
वे सदा के लिये जनता के हृदय पटल पर अजर हैं ! भवितव्यता की खास बात तो यह थी की आपकी अमर हैं ! निश्रामें पूर्वाचार्य के नाम पर खरिदे हए प्लाट में पक्की पूज्य गरुदेव की पवित्र आत्मा को शत-शत प्रणाम लिखापढी होने के बाद एकही माह के भीतर उसी ही
ॐ शान्ति
-TOR
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org