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समृद्धमभजद्राज्यं स समस्तनयामलम् ।
महाकाव्य की भावसमृद्धि तथा काव्यमत्ता का प्रमुख कारण कामीव कामिनी कायं स स मरतन यामलम् ॥ १ ५४ इसका मनोरम प्रकृति-चित्रण है। कीर्तिराज ने महाकाव्य
राजीमती-राजीमती काव्य की अभागी नायिका के अन्य पक्षों की भाँति प्रकृति-चित्रण में भी अपनी मौलिहै। वह शीलसम्पन्न तथा अतुल रूपवती है। उसे कता का परिचय दिया है। कालिदासोत्तर महाकाव्यों नेमिनाथ की पत्नी बनने का सौभाग्य मिलने लगा था, में प्रकृति के उद्दीपन पक्ष की पार्श्वभूमि में उक्ति वैचित्र्य किन्तु क्रूर विधि ने, पलक झपकते ही उसकी नवोदित के द्वारा नायक-नायिकाओं के विलासितापूर्ण चित्र अङ्कित आशाओं पर पानी फेर दिया। विवाह में भोजनार्थ भावी करने की परिपाटी है। प्रकृति के आलम्बन-पक्ष के प्रति व्यापक हिंसा से उद्विग्न होकर नेमिनाथ दीक्षा ग्रहण कर वाल्मीकि तथा कालिदास का-सा अनुराग अन्य संस्कृत लेते हैं। इस अकारण निकरारण से राजीमती स्तब्ध रह कवियों में दृष्टिगोचर नहीं होता। कीतिराज ने यद्यपि जाती है। बन्धुजनों के समझाने-बुझाने से उसके तप्त विविध शैलियों में प्रकृति का चित्रण किया है, किन्तु प्रकृति हृदय को सान्त्वना तो मिलती है, किन्तु उसका जीवन-कोश के सहज-स्वाभाविक चित्र प्रस्तुत करने में उनका मन अधिक रीत चुका है। अन्ततः वह केवलज्ञानी नेमिनाथ की देशना रमा है और इन स्वभावोक्तियों में ही उनकी काव्यकला से परमपद को प्राप्त करती है।
का उत्कृष्ट रूप व्यक्त हुआ है। उग्रसेन -- भोजपुत्र उग्रसेन का चरित्र मानवीय गुणों
प्रकृति के आलम्बन पक्ष के चित्रण में कीतिराज ने से ओतप्रोत है। वह उच्चकुलप्रसूत नीतिकुशल शासक
सूक्ष्म पर्यवेक्षण का परिचय दिया है। वर्ण्यविषय के है। वह शरणागत वत्सल, गुणरत्नों की निधि तथा
साथ तादात्म्य स्थापित करने के पश्चात् प्रस्तुत किये कीर्तिलता का कानन है। लक्ष्मी तथा सरस्वती, अपना
गये ये चित्र अद्भुत सजीवता से स्पन्दित हैं। हेमन्त में परम्परागत द्वेष छोड़ कर उसके पास एक साथ रहती हैं।
दिन क्रमशः छोटे होते जाते हैं तथा कुहासा उत्तरोत्तर विपक्षी नृपगण उसके तेज से भीत होकर कन्याओं के उप
बढ़ता जाता है। उपमा को सुरुचिपूर्ण योजना के द्वारा हारों से उसका रोष शान्त करते हैं।
कवि ने हेमन्तकालीन इस प्राकृतिक तथ्य का मार्मिक चित्र अन्य पात्र
अङ्कित किया है। शिवादेवी नेमिनाथ की माता है। काव्य में उसके चरित्र का पल्लवन नहीं हुआ है। प्रतीकात्मक सम्राट मोह उपययौ शनकैरिह लाघवं दिनगणो खलराग इवा निशम् । तथा संयम राजनीतिकुशल शासकों की भांति आचरण ववृधिरे च तुषारसमृद्ध्योऽनुसमयं सुजनप्रणया इव ॥८।४८ करते हैं। मोहराज दूत कैतव को भेजकर संयम नृपति
शरत्कालीन उपकरणों का यह स्वाभाविक चित्र मनोको नेमिनाथ का हृदय दुर्ग छोड़ने का आदेश देता है। दूत
रमता से ओतप्रोत है। पूर्ण निपुणता से अपने स्वामी का पक्ष प्रस्तुत करता है । संयमराज का मन्त्री शुद्ध विवेक दूत की उक्तियों का मुंह
आपः प्रसेदुः कलमा विपेचुर्हसाश्चुकूजुर्जहसुः कजानि । तोड़ उत्तर देता है।
सम्भूय सानन्दमिवावतेरुः शरद्गुणाः सर्वजलाशयेषु ॥८।८२ प्रकृति-चित्रण- नेमिनाथकाव्य के विस्तृत फलक पर इस श्लेषोपमा में शरत् का समग्र रूप उजागर करने प्रकृति को व्यापक स्थान प्राप्त हुआ है। वस्तुत: नेमिनाथ में कवि को आशातीत सफलता मिली है।
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