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। ११ ] उपादान कारण में क्या भेद है इपको चर्चा भी की करते हुए केवलव्यतिरेक व्याप्ति अन्वय रूप से भी कैसे
हो सकती है उसे स्पष्ट करने हैं । पक्षता की चर्चा प्रमाण के लक्षण में प्रत्यक्ष प्रमाण की चर्चा में तर्क में 'अनुमित्साविरह विशिष्ट सिद्ध यभावः पक्षता' के लक्षण भाषाकार और प्रकाशिकाकार का अनुसरण करते हुए में विशिष्टाभाव के अर्थ को चर्वा वे विशदतासे और उन्होंने बौद्ध और मोमांसक के प्रत्यक्ष लक्षणों को भी विस्तार से करते हैं१७ ।। विस्तार से चर्चा करके खण्डन किया है१२ ।।
अनुमान की चर्चा में हेत्वाभास की चर्चा अनिवार्य प्रत्यक्ष के अनन्तर अनुमान प्रमाण को चर्चा में 'अनु- है। गुणरत्न हेत्वाभास का गोवर्द्धन से प्रस्तुत लक्षण किस मान का कारण लिंग परामर्श ही है' इस तर्कभाषाकार तरह पांचों हेत्वाभासों को आवृत करता है यह एक
और प्रकाशिकाकार के मत की गुणरत्न ने विशदता से प्रामाणिक टीकाकार के नाते विस्तार दिखाते हैं । वे प्रत्येक नव्यन्याय के आधार पर समझाया है १३ । इस चर्चा में हेत्वाभास में क्या फर्क है, विशेषतः असिद्ध और विरुद्ध व्याप्ति के लक्षण को चर्चा गोवर्धन ने अधिक नहीं को है में क्या अन्तर है इसका सूक्ष्म निरूपण उदयन के मत का परन्तु गुणरल नव्यन्याय के प्रस्थापक गंगेश उपाध्याय अनुसरण करते हुए देते हैं। साथ में एक ही स्थान पर के व्याप्ति के लक्षण को लेकर व्याप्ति के अनेक लक्षण प्रस्तुत हेत्वाभासों का संग्रह हो जाय, अर्थात् अनेक हेत्वाभास हों करते हैं और इससे उनके नव्यन्याय के ज्ञान को विशिष्टता तो उसमें कोई दोष नहीं है, इस बात को भी स्पष्ट रूप स्पष्टतया गोचर होती है । इस चर्चा में वे उपाधि, से प्रतिपादित करते हैं । तर्क वगैरह की चर्चा करते हुए मीमांसक जैसे अन्य दार्शनिकों अनुमान के अनन्तर उपमान को चर्चा टोकाकार के मतों की भी व्याप्तिग्राह्यत्व के विषय में चर्चा करते गोवर्धन के अनुसार अत्यन्त संक्षेप में करके वे शब्दप्रमाण हैं । चार्वाक जोकि प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वोकार ही नहीं की चर्चा करते हैं। गोवर्द्धन शब्द प्रमाण को चर्चा को करते हैं उनके मत का भी गुणरत ने नैयायिक पद्धति अधिक विस्तार से "एतावत्प्रपंचस्य बालबोधार्थ करसे खण्डन किया है१५।
णात्' ऐसा कह कर नहीं करते हैं, परन्तु गुणरत्न शब्द अनुमान में व्याप्ति को चर्चा के साथ हेतु की चर्चा प्रमाण की अनेक विशेषताओं की चर्चा विस्तार से करते भी अनिवार्य है। नैयायिक अन्वयव्यतिरेकी केवलान्वयी हैं (पृ० ३०७)। वे गङ्गश के मत को उद्धृत करके गोवऔर केवलव्यतिरेकी तीनों प्रकार के हेतुओं का स्वीकार धंन के दिये हुए लक्षण को विस्तार से समझाते हैं, और करते हैं । इस चर्चा में गुणरत्न उदयन के मत का अनुसरण आप्तत्व क्या है, तथा आकांक्षा, योग्यता आदि भी क्या ११ तर्कतरङ्गिणो पृ० १०० और आगे
१८ 'वायुर्गन्धवान् स्नेहान्' इस हेत्वाभास के उदाहरण १२ , , पृ० १७४
में वे लिखते हैं कि एकस्यैव 'स्नेहस्य अनैकान्तिक१३ द्रष्टध्य वही पु० १८३-१८४ विरुद्धत्यादि पञ्चत्वव्यवहारः कथमित्याशङ्काया
, पृ. १८७ ओर आगे मुत्तरम् -- उपाधेयसङ्करेऽप्युपाध्यसङ्कर इति , पृ. २४२
न्यायादोषगतसंख्यामादाय दुष्टहेतो पञ्चत्वादि, पृ० २७२
संख्याव्यवहारः' - तर्कतरङ्गिणी सं० डॉ० परीख, , पृ० २७५
हस्तलिखित प्रति पृ० ६०५-६०६ ।
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