________________
गच्छे पंडित हीरकलशकृते श्रीज्योतिषसारे प्रथमरतरङ्गः।" शलाका, रोगीनाडीवेध, सूर्यकालानक्षत्र, चन्द्रकालानल, ___ इन विषयों में प्रसंगोपात कुछेक चमत्कारि प्रयोग दिये मृत्युकालानल, चतुःनाडीचक्र, चउघडिया, विषकन्या, शीलगये हैं, जो ज्योतिष नीं जाननेवाले भी आसानी से अपना परीक्षा, राशि आयचक्र, खंज चक्र, गतवस्तु ज्ञान, पंच तत्त्व, प्रत्येक दिन का शुभाशुभ फल जान सकते हैं।
समयपरीक्षा, दिशाचक्र, संक्रान्ति विचार, 'चतु:मंडल, "दिनरिक्ख जम्म रिक्खं मेली तिहिवार अंक सव्वेहिं । अकडमचक्र, लग्न और भावफल, सर्वपृच्छा, दीक्षा, वधुप्रवेश, सत्तेण भाग हरए सेसं अंकाइ फल भणियं ॥१३॥ गंडांतयोग, विवाह," इत्यादि विषय हैं। लच्छी दुक्खं लाभं सोगं सुक्खं च जरा असणायं ।
इन विषयों में पोरसी साढ पोरसी आदि पच्चक्खाण सम्वेहि जोइसायं भासि हीरंच निव्वायं ॥१४॥"
पारने का समय अपने जानकी छाया से जानने का बतदिन का नक्षत्र, जन्म का नक्षत्र, तिथि और वार, इन लाया है । गाथा ३३१ से गाथा ४६५ तक वर्ष का शुभासबके अंकों को इकट्ठा कर के सात से भाग देना। जो शेष शुभफल लिखा है वर्ष कैसा होगा ? सुकाल पड़ेगा या बचे उसका फल कहना। एक शेष बचे तो लक्ष्मी की प्राप्ति. दृष्काल, वर्षा कितनी और कब बरसेगी, धान्यादि वस्तु तेज शष दा बचे तो दुख, तीन बचे तो लाभ. चार बचे तो होगी या मंदी इत्यादि जानने का अर्घकांड लिखा है। बाद शोक, पांच बचे तो सुख, छह बचे तो वृद्धपना और सात में जन्म कुंडलियो का वर्णन है । विजय यंत्र आदि लिखने शेष बचे तो भोजन प्राप्ति होवे । ऐसा सब ज्योतिष शास्त्र का प्रकार को लिखा है । ग्रहों को शान्ति के लिये उपासना में कहा गया है, इसका अवलोकन करके ही र मनिने यहाँ विधि बतलाई है, (वं चौबीस तीर्थंकरों को राशि तथा कथन किया है।
किसके लिये कौन तीर्थकर लाभदायक है इत्यादि विषयों ___ इत्यादि कईएक चमत्कारिक कथन इस ग्रन्थमें लिखे का वर्णन है । गये है।
अन्त में ग्रंथकार ने अपनी प्रशस्ति लिखी हैदूसरे तरगमें ६३ विषय इस प्रकार हैं
गाहा छंद विरूद्ध अस्थ विरुद्ध च जमए भणियं । "नक्षत्रों की योनि, नाड़ी, वेध, वर्ण, गण, यजीप्रीति, तं गीयत्था सव्वं करिय पसाउव्व खमियव्वं ॥२७६॥ षडाष्टक, ग्रह मित्र, राशिमेल, व, लेना देनी, द्विद्वादश, सिरिखरतरगण गुरुणो सूरिजिणचंद विजयराएहि । तृतीय एकादश, दशम चतुर्थ, उभय समराप्तक, नवपचम, हीरकलसेहि गुफिय जोइससारं हियगरत्थ ।।२७॥ ग्रामचक्र. गृहारंभ, चुल्ही चक्र, विद्या मुहतं, ग्रहण, शिशु सोलस ए सगवीस वच्छर विकम्मिविजयदसमीए । अन्नप्राशन, क्षौरकर्म, कर्णवेध, वस्त्राभरण, भोजन, श्रीमंत, अहिपुरमझे आगम उद्धरियं जोइस होरं ॥२७८॥" स्नान, नृपमन्त्री, शुभाशुभ, मास अधिक मास, पक्ष, तिथि इति श्रीखरतरगच्छे पण्डितहीरकलशमुनिकृतिः को हानि वृद्धि, न्यूनाधिक नक्षत्रयोग, पांचवार का फल, श्रीज्योतिषसारे द्वितीयम्तरङ्गः सम्पूर्णः । नक्षत्रस्नान, गर्भयोग, पंथाचक्र, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र ऐसा महत्वपूर्ण नथ प्रकाशित हो जाय तो जनता को, जातक शान्ति, रोहिणीचक्र मृतकार्य, रात्रि दिनमान, विशेष लाभ हो सकता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org