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था। ज्योतिष शास्त्र में उनकी विशेष अभिरुचि थी। "पंचम प्रवीणवार, सुणो मेरी सीख सार, शास्त्रों के निदध्यासन, विद्वत् प्रवचन-श्रवण, ओर लक्षण तेरमो नखत भैया, नौमी रासि दीजिये । ग्रन्थों के पठन-पाठन से उनकी प्रतिभा शाण पर चढ़े मणि- इहण आये ते द्वारि, मातन को तात छारि, रत्न के समान देदीप्यमान हो गयी थी। उन्हें जैन और तातन को तात किये, सुजस लहीजिये। जैनेतर धर्म ग्रन्थों का तलस्पर्शी बोध था। काव्यशास्त्र के तीसरी संक्रान्ति तू तो, दशमी हि रासि पासि, वे निष्णात विद्वान् थे। स्वाध्याय प्रियता ने उन्हे पुराण, कुगति को घर मनू चौथी रासि कीजिये । इतिहास, सामुद्रिक शास्त्र, आयुर्वेद, संगीत, शालि- पर त्रिया छिपा रासि, सातमी निहारि यार, वाहन प्रभृति शास्त्रों का प्रकाण्ड पण्डित बना दिया था। जिनहर्ष पंचम रासि, उपमा लहीजिये ॥” ज्योतिषशास्त्र सम्बन्धी उनके विशेष ज्ञान का निदर्शन
मृगांकलेखा रास पृष्ठ १३ निम्नांकित पद में प्रकट है। वोरसेन और कुसुमश्री के ज्योतिषशास्त्र के समान ही शकुनशास्त्र में भी विवाह महत के विषय में वे लिखते हैं :
कवि की गति और रुचि थी। उनके काव्यों में अनेक "वीरसेन कुमारनी वृषरासि कहा।
प्रकरणों में चक्रवर्ती सम्राट, महापुरुष और उच्चकोटि के मिथुन रासि कन्यातणो, थापी ज्योतिष राइ ॥
त्यागी पुरुषों के लक्षण वणित हुए हैं। शुभ शकुनों की गौरी गुरुबल जोहयू, बिदनइ रविबल जोइ ।
सूची पठितव्य हैं :चन्द्र बिहू नई पूजतोऊँ, जोयो यू सुष होइ ॥
'तरु ऊपर तीतर लवइ, घुड़सिरि सेव करंत । दुषण दस साहा तणा, टाल्या गणिक सुजाण ॥
शकु प्रमाण जांणिज्यो, एक अनेक विरतंत ॥ माहौं-माहिं विचारनइ, कीधनु लगन प्रमाण ॥
भैरव तोतर कूकर इ, जाहिणजो वासेह । कुसुमश्री रास पृष्ठ ४ । एके कज्जे नीसा , कज्जा सयल करेह ।।
वायस जिमणो ऊतरइ, हुए सांवहू स्वान । कहने की आवश्यकता नहीं कि कवि ने विवाह मुहूर्त
शुभ शकुने पांमइ सही, पग-पग पुरुष निधान ।। और लग्न देखने की पूरी पद्धति का यहाँ विधिवत उल्लेख
[जि० : न० पृ० ४२४ ) किया है। कवि अपनी चलती कविता में भी समय का निर्देश ज्योतिष को सांकेतिक भाषा में करता है-जैसे
शकुनशास्त्र के समान सामुद्रिक शास्त्र में भी
कवि का ज्ञान अत्यन्त व्यापक था। एक उदाहरण 'करक लगन्न भयो वर सुन्दर, राम करै तो सही सुखपावे।
द्रष्टव्य है
ग्रन्थावलो पृष्ठ ४०६ 'दोठा लक्षण नृप तणां, मेंगल मच्छ आकार | उत्तराषाढ़ा विद्युवास 'लालरे'
धज सायर तोरण धनुष, छत्र चामर उदार' ।। [शत्रुञ्जय महात्म्य रास पृष्ठ ६२ ]
-कुमारपाल रास पृष्ठ ८४ कवि ने नवग्रहगर्भित स्तवनों में भी अपनी ज्योतिष कवि के आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान का परिचय-उसके सम्बन्धी अभिरुचि को प्रकट किया है। कवि का ज्योतिष द्वारा वणित अठारह प्रकार के कुष्ठों और उनके कारणों विद्या पर कितना पाण्डित्य था, उसका निर्देशन नीचे से मिलता है। कूटशैलो में लिखे पद में द्रष्टव्य हैं -
'हुरिचन्द राजानो रास' और 'कलियुग आख्यान'
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