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से चारों दिशाओं को जीतकर चोदह भुवनों का अधिपति तथा विषय-सुख में उतना ही अन्तर है जितना गाय तथा बनेगा। प्रभात वर्णन नामक इस सर्ग के शेषांश में प्रभात स्नुही के दूध में । विषयभोग से आत्मा तृप्त नहीं हो का मार्मिक वर्णन हुआ है । तृतीय सर्ग में समुद्रविजय सकती, किन्तु माता के अत्यधिक आग्रह से वे, केवल स्वप्नदर्शन का वास्तविक फल जानने के लिये कुशल उनकी इच्छापूर्ति के लिये गार्हस्थ्य जीवन में प्रवेश करना ज्योतिषियों को निमंत्रित करते हैं। दैवज्ञों ने बताया कि स्वीकार कर लेते हैं । उग्रसेन की लावण्यवती पुत्री राजीमती इन चौदह स्वप्नों को देखनेवाली नारी की कुक्षि में ब्रह्मतुल्य से उनका विवाह निश्चय होता है। दसवें सर्ग में नेमिनाथ जिन अवतीर्ण होते हैं। समय पर शिवा ने एक तेजस्वी वधूगृह को प्रस्थान करते हैं। यहीं उनको देखने के लिए पुत्र को जन्म दिया। चतुर्थ सर्ग में दिवकुमारियां नवजात लालायित पुर-सुन्दरियों का वर्णन किया गया है। वधूगृह शिशु का सूतिकर्म करती हैं । मेरुवर्णन नामक पंचम सर्ग में में बारात के भोजन के लिये बंधे हुए मरणासन्न निरीह इन्द्र शिशु को जन्माभिषेक के लिये मेरु पर्वत पर ले पशुओं का चीत्कार सुनकर उन्हें आत्मग्लानि होती है। जाता है । इसी प्रसंग में मेरु का वर्णन किया गया है। और वे विवाह को बीच में ही छोड़कर दीक्षा ग्रहण कर छठे सर्ग में भगवान के स्नात्रोत्सव का रोचक वर्णन है। लेते हैं। ग्यारवें सर्ग के पूर्वाद्धं में अप्रत्याशित प्रत्याख्यान सातवे सर्ग में चेटियों से पुत्र जन्म का समाचार पाकर से अपमानित राजीमती का करुण विलाप है । मोह-संयम समुद्रविजय आनन्द विभोर हो जाता है। वह पुत्र-प्राप्ति युद्धवर्णन नामक इस सर्ग के उत्तरार्द्ध में मोह तथा संयम के उपलक्ष में राज्य के समस्त बन्दियों को मुक्त कर देता के प्रोतकात्मक युद्ध का अतीव रोचक वर्णन है । पराजित है तथा जीववध पर प्रतिबन्ध लगा देता है। उसने जन्मो• होकर मोह नेमिनाथ के हृदय दुर्ग को छोड़ देता है। त्सव का भव्य आयोजन किया। शिशु का नाम अरिष्ट- जिससे उन्हें केवलज्ञान को प्राप्ति होती है। बारहवें सर्ग में नेमि रखा गया। आठवें सर्ग में अरिष्टनेमि के शारीरिक यादव केवलज्ञानी प्रभ की वन्दना करने के लिये उजयन्त सौंदर्य तथा परम्परागत छह ऋतुओं का हृदयग्राही वर्णन है । पर्वत पर जाते हैं। जिनेश्वर की देशना के प्रभाव से कुछ
नाथ ने पांचजन्य को कौतुकवश इस वेग से दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं तथा कुछ श्रावक धर्म स्वीकार फूंका कि तीनों लोक भय से कम्पित हो गये। कृष्ण को करते है। जिनेन्द्र राजीमती को चरित्ररय पर बैठा कर आशंका हुई कि कहीं यह भुजबल से मुझे राज्यच्युत न कर मोक्षपुरो भेज देते हैं और कुछ समय पश्चात् अपनी प्राणदे, किन्तु उन्होंने श्रीकृष्ण को आश्वासन दिया कि मुझे प्रिया से मिलने के लिये स्वयं भी परम पद को प्रस्थान सांसारिक विषयों में रुचि नहीं है, तुम निर्भय होकर राज्य करते हैं। का उपभोग करो। नवं सर्ग में नेमिनाय के माता-पिता के नेमिनाथकाव्य का कयानक अत्यल्प है. किन्त कवि ने आग्रह से श्रीकृष्ण को पलियां, नाना युक्तियाँ देकर उन्हें उसे विविध वर्णनों, संवादों तथा स्तोत्रों से पुष्ट-पूरित कर वैवाहिक जीवन में प्रवृत्त करने का प्रयास करती हैं। उनका
बारह सर्गो के विस्तृत आलवाल में आरोपित किया है।
. प्रमुख तर्क है कि मोक्ष का लक्ष्य सुख-प्राप्ति है, किन्तु वह यह विस्तार महाकाव्य की कलेवरपूर्ति के लिए भले ही विषय भोग से ही मिल जाये, तो कष्टदायक तप की क्या
उपयुक्त हो, इससे कथावस्तु का विकासक्रम विखलित आवश्यकता? नेमिनाथ उनकी युक्तियों का दृढ़तापूर्वक हो गया है तथा कथाप्रमाह की सहजता नष्ट हो गयी है। खण्डन करते हैं। उमा कया है कि मोक्षजन्य आनन्द कथानक के निर्वाह की दृष्टि से नेमिनाथमहाकाव्य को
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