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पहले कुछ प्रश्न। __ एक मित्र ने पूछा है-कल आपने कहा, प्रश्न के उत्तर देने के दो तरीके हैं। एक स्मृति के संग्रह से, दूसरा स्वयं की चेतना से। जब आप उत्तर देते हैं, तब आपका उत्तर चेतना से होता है, या स्मृति से? क्योंकि आप अब तक हजारों किताबें पढ़ चुके हैं और आपकी स्मरण शक्ति भी फोटोग्राफिक है। यदि आपकी चेतना ही उत्तर देने में समर्थ है, तो इतनी विविध किताबें पढ़ने का क्या प्रयोजन है?
दो तीन बातें समझनी चाहिए। एक, आपके प्रश्न पर निर्भर होता है कि उत्तर चेतना से दिया जा सकता है या स्मृति से। यदि आपका प्रश्न बाह्य जगत से संबंधित है तो चेतना से उत्तर देने का कोई भी उपाय नहीं है। न महावीर दे सकते हैं, न बुद्ध दे सकते हैं, न कोई और दे सकता है। चेतना से तो उत्तर चेतना के संबंध में पूछे गये प्रश्न का ही हो सकता है। अगर महावीर से जाकर पूछे कि कार पंक्चर हो जाती हो तो कैसे ठीक करनी है, तो इसका उत्तर चेतना से नहीं आ सकता । महावीर की स्मृति में हो तो ही आ सकता है।
बाह्य जगत को जानने का सूचनाओं के अतिरिक्त कोई भी उपाय नहीं है। और ठीक ऐसा ही अंतर्जगत को जानने का सूचनाओं के द्वारा कोई उपाय नहीं है। बाहर का जगत जाना जाता है इन्फर्मेशन से, सूचनाओं से, और भीतर का जगत नहीं जाना जाता है सूचनाओं से। इसलिए अगर कोई व्यक्ति बाहरी तथ्यों के संबंध में चेतना से उत्तर दे तो वे वैसे ही गलत होंगे जैसे कोई चेतना के संबंध में शास्त्रों से पायी गयी सूचनाओं से उत्तर दे। वे दोनों ही गलत होंगे। ___ हम दोनों तरह की भूल करने में कुशल हैं । हमने सोचा कि चूंकि महावीर या बुद्ध, कृष्ण ज्ञान को उपलब्ध हो चुके हैं, इसलिए अब बाहर के जगत के संबंध में भी उनसे जो हम पूछेगे, वह भी विज्ञान होने वाला है। वहां हमसे भूल हुई, इसलिए हम विज्ञान को पैदा नहीं कर पाये। ___ विज्ञान पैदा करना है तो भीतर पूछने का कोई उपाय नहीं है, बाहर के जगत से ही पूछना पड़ेगा। अगर पदार्थ के संबंध में कुछ जानना है तो पदार्थ से ही पूछना पड़ेगा। वृक्षों के संबंध में कुछ जानना है तो वृक्षों में ही खोजना पड़ेगा। लेकिन हमने इस मुल्क में ऐसा समझा कि जो आत्मज्ञानी हो गया, वह सर्वज्ञ हो गया। इसलिए हमने विज्ञान को कोई जन्म न दिया और हम सारी दुनिया में पिछड़ गये। महावीर जो भी कहते हैं अंतस के संबंध में, वह उनकी चेतना से आया है। लेकिन महावीर भी जो बाहर के जगत के संबंध में कहते
नाएं हैं। इसलिए एक और बात समझ लेनी चाहिए। वे सूचनाएं जो महावीर बाहर के जगत के संबंध में देते हैं, कल गलत हो सकती हैं। क्योंकि महावीर के समय तक बाहर के जगत
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