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वर्णन हो वह श्रेष्ठ कथा शुभ (कल्याण) को करनेवाली ' धर्मकथा ' कही जाती है जो कि पूर्वापर विरोध रहित है और जिनसूत्र के अनुसार है वही सच्ची कथा है । इससे अन्यशृंगारादि रसोंके कहनेवाली पापकारिणी कथा शुभके करनेवाली कभी नहीं होस - कती । इस प्रकार श्रेष्ठ वक्ता श्रोता और कथाका लक्षण कहके अब मैं श्री महावीरस्वामीका परम पवित्र चरित्र कहता हूं, जो कि महान पुण्यका कारण है और पापोंका नाश करनेवाला है और वक्ता श्रोताओं का हित करनेवाला है । जिसके सुननेसे भव्यजीवों के पुण्यका संग्रह होता है और पहले पापों का नाश होता है और दुःखरूप संसारसे भय होता है । इस प्रकार अपने इष्टदेवोंको प्रणाम करके वक्तादिकों का स्वरूप कहके जिनेंद्रके मुखसे उत्पन्न धर्मकी खानि अंतिमतीर्थंकर श्रीमहावीर स्वामीकी श्रेष्ठ कथाको कर्मरूपी ! वैरियोंकी शांतिकेलिये मैं कहता हूं । सो हे भव्यो सावधान चित्त होकर सुनना ॥
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इति श्रीसकलकीर्तिदेवविरचित श्री महावीरचरित्रमें इष्टदेवनमस्कार वक्ता आदिलक्षणोंको कहनेवाला पहला अधिकार पूर्ण हुआ ॥ १ ॥
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