Book Title: Mahavira Purana
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalaya

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Page 15
________________ xx वक्ताका लक्षण-जो सर्व परिग्रहसे ( ममता परिणामसे ) रहित हो, अपनी || हामसिद्धि व पूजाके चाहनेवाले न हों, अनेकांत मतके धारक हों, सर्व सिद्धांतोंके पारगामी । हो, विना कारण जगत जीवोंके हित करनेवाले हों, उसमें भी भव्य जीवोंके हितमें || हमेशा लीन हों, सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र तप ये चार जिनके भूषण हैं, शम आदि गुणों के समुद्र हों, लोभी न हों, अभिमानी न हों, गुणी व धर्मात्माओंसे विशेष या प्रेम रखनेवाले हों, जैनमतके माहात्म्यके प्रकाशनेमें उद्यमी हों, महान् बुद्धिशाली हो, Kalग्रंथ रचनेमें समर्थ हों, जिनका यश प्रसिद्ध हो, जिनको बुद्धिमान् मान देते हों, सत्यवचन ही बोलनेवाले हों इत्यादि अनेक श्रेष्ठ गुणोंके धारक आचार्य उत्तम वक्ता कहे गये हैं। इन्हीके वचनोंसे अन्य भव्य जीव धर्म व तपको गृहण करते हैं, अन्य शिथिलाचारि-|३|| योंका वचन कोई नहीं मानता । क्योंकि लोक ऐसा कहते हैं कि जब यह धर्मको |श्रेष्ठ जानता है तो आप क्यों नहीं करता इसलिए शिथिलाचारीके उपदेशको । स्वीकार नहीं करते । जो आप ज्ञानरहित होके उपदेश करे तो लोक कहते हैं कि आप तो जानता ही नहीं है और दूसरोंको उपदेश देने चला है। इस कारण शास्त्रके रचनेवाले तथा धर्मका उपदेश देनेवाले वक्तामें ज्ञान और आचरण ये दो गुण अवश्य होने चाहिये। । श्रोताके लक्षण-सम्यग्दृष्टी (श्रद्धानी ) हों, शीलवती हों, सिद्धांत ग्रंथोंके । -लाल- लाल

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