Book Title: Mahavira Purana
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalaya

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Page 14
________________ ॥२॥ IS वाद २२० वर्ष बीत जानेपर धर्मके प्रवर्तानेवाले नक्षत्र १ जयपाल २ पांडु ३ द्रुमसेन ४ पु. भा. 1) वाकंस ५ ये ग्यारह अंगके जाननेवाले हुए । उनके चरणकमलोंको नमन करता हूं। फिर सौवके बाद सुभद्र १ यशोभद्र २ जयवाहु ३ लोहाचार्य ४ ये एक अंगके पाठी हुए । उसी समय कुछ समयके पश्चात् विनयधर १ श्रीदत्त २ शिवदत्त ३ अर्हदत्त ४ 18 ये अंगपूर्वके कुछ भागके जानकार हुए। उसके बाद हुंडावसर्पिणीकालके दोपसे अंग है पूर्वश्रुतकी हीनता होनेपर उसके जानकार कम होनेपर श्रीमुजवली और पुष्पदंतमुनि ? 2. इन दोनोंने श्रुतके नाशके भयसे शास्त्रोंकी रचना की जो कि धवल महाधवल नामसे? प्रसिद्ध हैं और उनको पंचमीके दिन पूर्ण किया इसलिये श्रुतपंचमीका दिन पर्वदिन । । माना जाता है । उस दिन सव संघने मिलकर जिनवाणीकी पूजन की और अबतक । प्रवृत्ति हो रही है । तत्पश्चात् कुंदकुंदादि अनेक. आचार्य निग्रंथ हुए हैं उनको उन, गुणोंकी प्राप्तिकेलिये वारंवार नमस्कार करता हूं। । जिनेन्द्र भगवान्के मुखकमलसे निकली हुई जगत्पूज्य सरस्वती वाणी मेरी 16 बुद्धिको कविता करनेमें शुद्ध करे । इस प्रकार श्रेष्ठ गुणोंवाले सच्चे देव शास्त्र गुरुओंको ? नमस्कार करके अव वक्ता श्रोत्राओंके लक्षण कहता हूं। जिससे कि स्वपरोपकार करने-४ ॥२॥ 8 वाला यह ग्रंथ उत्तम प्रतिष्ठाको पावे ।

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