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। मनमान
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इसीतरह शेष तीर्थकर जो ऋषभदेव आदिक हैं उनको भी तीन योगोसे नमस्कार | करता हूं। - तीन लोकके शिखरपर विराजमान कर्म और शरीरसे रहित सम्यक्त्वादि आठ गुणोंसहित ऐसे सब सिद्धोंको मैं नमस्कार करता हूं जिससे कि सब कार्यकी सिद्धि हो । वृषभसेनादि गणघरोंको मैं नमस्कार करता हूं जो कि चार ज्ञानके धारी सात ऋद्धियोंकर सहित हैं।
श्रीमहावीरस्वामीके मोक्ष जानेके बाद श्रीगौतमस्वामी, सुधर्माचार्य और अतके श्रीजंबूस्वामी ये तीन केवली हुए । ये तीनों महावीरस्वामीके निर्वाण जानेके ६२ वर्ष पीछे धर्मके प्रवर्तक हुए। उनके चरणकमलोंकी शरणको गुणोंका || इच्छक मैं प्राप्त होता हूं ॥ उसके सौवर्ष पीछे सब अंगपूर्वोके जाननेवाले नंदी १|| हा नंदिमित्र २ अपराजित ३ गोवर्धन ४ और भद्रवाहुस्वामी ५-ये पांच श्रुतकेवली हुए । उनके चरणोंकी मैं सेवाको प्राप्त होता हूं ॥ उसके १८० वर्ष वाद धर्मके प्रकाश करनेवाले रत्नत्रयके धारी विशाख १ प्रोष्ठिलाचार्य २ क्षत्रिय ३ जय ४ नाग ५ सिद्धार्थ ६ जिनसेन ७ विजय ८ बुद्धिल ९ गंग १० सुधर्माचार्य ११ ये ग्यारह अंग दशपूर्वके 5 जापाठी ग्यारह आचार्य हुए। उनके चरणकमलोंको मैं नमस्कार करता हूं। उसके