Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas Author(s): Unknown Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 8
________________ संग्राहक की जाति - महात्मा जाति का संक्षिप्त इतिहास जैन धर्म के दो मार्ग हैं एक प्रवृत्ति दूसरा निवृत्ति । प्रवृत्ति या गृहस्थाश्रम का उपदेश देकर उनको संस्कारों द्वारा निवृत्ति के लिये तैयार कराने वाले गृहस्थ गुरु या कुलगुरु कहलाते हैं। उपनयन आदि संस्कारों से वैराग्य की ओर झुकी हुई प्रात्मा को भगवती दीक्षा देकर मोक्ष मार्ग में लगाने वाले निवृत्ति गुरू पञ्चमहाव्रतधारी मुनिराज प्राचार्य महाराज होते हैं । कुलगुरु या शितागुरु गृहस्थावस्था में विद्या का उत्तम अध्ययन करा कर जीवन को सन्मार्ग की ओर प्रवृत्त करते हैं अतः उनकी जिम्मेवारी बहुत होती है। बाल्य काल में शिक्षा व संस्कार अपूर्ण होने से दीक्षा के बाद अात्मा उर्छखल होजाने का भय बना रहता है एवं परिणामतः कुसम्प व वितण्डावाद बढ़ता है। इस वक्त उन शिक्षागुरु या कुलगुरुत्रों की मान्यता कम हो गई, बाल्यावस्था में धार्मिक संस्कार उन्नत न होने से निवृत्ति मार्ग में लगे हुए प्रात्माओं का जीवन समाज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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