Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas Author(s): Unknown Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 6
________________ ( ल ) संवाद दिये हैं जो मनोरंजक होते हुए शिक्षाप्रद भी है। मेरे नित्य के स्मरण पाठ को भी छपवाया है जिस से विद्यार्थी लाभ उठा सकें । चित्तौड स्टेशन पर बनाई गई जैन धर्मशाला में कुछ चुने हुए श्लोक दोहे व नीति के वचन मैंने लिखवाये हैं जो यात्रियों को बहुत पसन्द आये और उनको वे उतार कर ले गये हैं अतः यात्रियों की इस कठिनाई को दूर करने के लिये सब श्लोक श्रादि को भी इस पुस्तक में स्थान दिया है। मेरे जीवन के निर्माता परमोपकारी पंजाब केशरी श्री मद्विजय वल्लभसूरीश्वरजी महाराज को मैं कदापि नहीं भूल सकता जिनके करकमलों द्वारा स्थापित प्रात्मानन्द जैन गुरुकुल गुजरांवाला पंजाब ने हम चारों भाइयों के ( श्री दीपचन्दजी, फतहचन्द, श्री हुकमचन्दजी, धर्मचन्दजी ) हृदय में शान की ज्योति जगाई है। जो कुछ भी करने की क्षमता हम में है वह उन्हीं गुरुदेव का प्रताप व ज्ञानदात्री गुरुकुल जननी की देन है । जिन २ पुस्तकों से मुझे सहायता मिली है उनके संयोजकों का आभार मानता हूं । विशेषकर गांधीजी की श्राश्रम भजनावली तथा बाबू बंसीधरजी की वीर गीतांजली का अाभारी हूं। मेरे इस सर्व प्रथम प्रयास में इस संस्था के विनि व होनहार विद्यार्थियों ने पूरा हाथ बटाया है तथा समाज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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