Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 4
________________ दो शब्द भावना मेरी कभी की थी । प्रार्थना, स्तवन, संवाद आदि के संग्रह करने की सौभाग्यवश वह भावना आज पूर्ण हुई । प्रार्थना व स्तवन की माधुरी, भावपूर्ण ध्वनि, संगीत की लय आत्मा को प्रफुल्लित आत्मा को प्रफुल्लित व आनंदित करती है । हृद्न्त्री के तार बज उठते हैं । प्रार्थना कहने व सुनने वाले भक्ति में मस्त होकर अपने प्राप को भूल जाते हैं । आत्मा एक दिव्य आनन्द का अनुभव करती है । मन मुग्ध हो जाता है । इस दोषपूर्ण सिनेमा के विषैले वातावरण में कोमल यदि कोई रक्षक हो सकता सकता है, तो वह हृदय वालकों व युवकों का है, उनको सच्चे रास्ते पर लगा प्रार्थना का पवित्र वातावरण ही है । आज समस्त संसार शांति चाहता है परन्तु अन्वे पण तो विध्वंसक शस्त्रों का, बर्मो का हो रहा है। यह पारस्परिक विरुद्धता है जो श्रात्मशांति चर्म तीर्थंकर श्री. प्रभु महावीर ने दुनिया के सामने रक्खी जिसे महाल बुद्ध ने भी प्रदर्शित की तथा हमारे राष्ट्र पिता म मह नि गाँधी ने जिसका मार्ग बताया वह शांति दिन प्र प्रशांति बनती जा रही है । सभ्य कहलाते समाज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat .www.umaragyanbhandar.com

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