Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अर्जुन www.kobatirth.org ( २० ) जाना ( भीष्म० २६ । ४-९ ) । अर्जुनका भगवान् से गीताके उपदेश मुनना ( भीष्म० २६ । ११ से ४२ अ० तक ) । अर्जुनका भगवान् से स्थितप्रज्ञ पुरुषके लक्षण पूछना ( भीष्म० २६ ५४ ) । ज्ञान और कर्मकी श्रेष्ठता के विषय में अर्जुनकी शङ्का ( भीष्म० २७ । १-२ ) । बलात्कारसे पाप कराने में हेतु क्या है, इस विषय में इनका प्रश्न ( भीष्म० २७ । ३६ ) । भगवान् श्रीकृष्णका जन्म आधुनिक मानकर अर्जुनका संदेह करना ( भीष्म० २८ । ४ ) | संन्यास और निष्काम कर्मयोगकी श्रेष्ठताके विषय प्रश्न ( भीष्म० २९ । १ ) | योगभ्रष्ट पुरुषकी गति के सम्बन्ध में अर्जुनका प्रश्न और संशय-निवारण के लिये भगवान् से प्रार्थना ( भीष्म० ३० । ३७ - ३९ ) । ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादिके विषयमें इनके सात प्रश्न ( भीष्म० ३२ । १-२ ) । अर्जुनद्वारा भगवान्‌की स्तुति और उनके प्रभावका वर्णन करते हुए उनकी विभूतियों को जाननेकी इच्छा प्रकट करना तथा भगवच्चिन्तनके विषय सात प्रश्न करके योगशक्ति और विभूतियों को विस्तारसे कहने के लिये प्रार्थना करना ( भीष्म० ३४ । १२- १८ ) । अपने मोहकी निवृत्ति मानते हुए अर्जुनद्वारा भगववचनोंकी प्रशंसा एवं विश्वरूप देखनेकी इच्छा प्रकट करके उस रूपका दर्शन करानेके लिये भगवान् से प्रार्थना ( भीष्म ०३५ । १-४ ) । अर्जुनका भगवान् के विश्वरूपका दर्शन और स्तुति करना ( भीष्म० ३५ । १५-३१ ) । भयभीत अर्जुनद्वारा भगवान्की स्तुति और चतुर्भुजरूपका दर्शन करानेके लिये प्रार्थना ( ३५ । ३५-४६ ) | साकार - निराकार के उपासकों में कौन श्रेष्ठ है, यह जानने के लिये अर्जुनका प्रश्न (भीष्म० ३६ । १) । गुणातीत पुरुष के विषय में अर्जुनके तीन प्रश्न ( भीष्म० ३८ । २१ ) | शास्त्रविधिको त्यागकर श्रद्धासे पूजन करनेवाले पुरुषों की निष्ठा के विषय में इनका प्रश्न ( भीष्म० ४१ । (१) । संन्यास और त्यागका तत्त्व जाननेके लिये अर्जुनका प्रश्न ( भीष्म० ४२ | १ ) | अर्जुन और श्रीकृष्ण के प्रभावका कथन ( भीष्म ०४२।७८) । कवच उतारकर पैदल ही कौरवसेनाकी ओर जाते हुए युधिष्ठिरसे उधर जानेका कारण पूछना ( भीष्म ०४३ । १६ ) । प्रथम दिन के युद्ध में इनका भीष्म के साथ द्वन्द्वयुद्ध ( भीष्म० ४५। ८-११ ) । भीष्म के साथ घोर युद्ध (भीष्म० ५२ अ०में) । दूसरे दिन के युद्धमें अद्भुत पराक्रम दिखाते हुए कौरबसेनाको खदेड़ देना (भीष्म० ५५ । १७३५ ) । भीष्मको मारनेके लिये उद्यत हुए श्रीकृष्णको रोककर उनसे कर्तव्य पालन के लिये प्रतिज्ञा करना ( भीष्म ० ५९ । १०१-१०३) । इनके द्वारा कौरवसेनाकी पराजय और तीसरे दिन के युद्ध की समाति ( भीष्म ०५९।१११ - १३२ ) । भीष्म के साथ द्वैरथ युद्ध (भीष्म ०६०।२५ - २९) | भीष्म के साथ अर्जुन घमासान युद्ध ( भीष्म० ७१ अ० में ) । अश्वत्थामाके साथ युद्ध ( भीष्म० ७३ । ३ - १६) । इनके द्वारा त्रिगर्तराज सुशर्माकी पराजय और कौरव सेना में भगदड़ ( भीष्म० ८२ । १ ) | इनका अद्भुत पराक्रम (भीष्म० ८५१ - ८ ) । इनके द्वारा रथसेनाका संहार (भीम० ८९ । ३५-३८) । इरावान् के वधसे इनके दुःखपूर्ण उद्वार ( भीष्म० ९६ । २ - १२) | दुर्योधन के प्रति भीष्मद्वारा इनके पराक्रमका वर्णन (भीष्म० ९८ ।४१५) । द्रोणाचार्य और सुशर्मा के साथ युद्ध ( भीष्म० १०२ । ६-२३) । इनके द्वारा त्रिगर्तोकी पराजय (भीष्भ० १०४ । ४८ ) । श्रीकृष्ण के चेतावनी देनेवर भीम के साथ युद्ध ( भी०म० १०६ । ४२ - ५४ ) । भीष्मको मारने के लिये उद्यत श्रीकृष्ण से कर्तव्यपालन के लिये प्रतिज्ञा करना (भीम ० १०६ । ७०-७५) । भीष्मवध के लिये उद्यत न होना (भीष्म० १०७ । ९१-९५ के बाइक ) | श्रीकृष्ण के समझानेपर भीष्मवधके लिये उद्यत होना (भीष्म० १०७ १०३ - १०६) । भीष्मara लिये शिखण्डीको प्रोत्साहन देना (भीष्म० १०८।५२६० इनके भयसे पीड़ित होकर कौरवसेनाका पलायन ( भीष्म० १०९/१३-१४ ) । दुःशासनके साथ इनका द्वन्द्रयुद्ध ( भीष्म० ११० । २८ - ४६ १११ । ५७-५८ ) । इनका अद्भुत पुरुषार्थ ( भीष्म० ११४ अ० में ) । भगदत्तके साथ अर्जुनका द्वन्द्वयुद्ध ( भीष्म० ११६ | ५६ - ६० ) । भीष्म के साथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म० ११६ । ६२ - ७८ ) । भीष्मके साथ घोर युद्ध और उन्हें मूर्छित करना (भीम० ११७ । ३५६४) । दुःशासन के साथ युद्ध ( भीष्म० ११७ १२ - १९ ) । शिखण्डीको आगे करके भीष्मपर आक्रमण ( भीष्म० ११८ ॥ ३७-५४) । भीष्मको रथसे गिराना (भीष्म० ११९।८७ ) । वाणशय्या पर सोये हुए भीष्मको तीन बाण मारकर तकिया देना ( भीष्म० १२० । ४५) । दिव्यास्त्रद्वारा भीष्म के मुखमें शीतल जलकी धारा गिराना ( भीष्म० १२१ । २४-२५ ) । धृतराष्ट्रद्वारा इनकी वीरताका वर्णन ( होण० १० । १५२८) । नरस्वरूपमें इनकी महिमाका वर्णन (द्रोण० ११ । ४१४२ ) । द्रोणाचार्यद्वारा पकड़े जानेके भयसे भीत युधिष्ठिरको आश्वासन (द्रोण० १३ । ७ - १४) । द्रोणाचार्य के साथ युद्ध और उनकी सेनाको पराजित करना (द्रोण० १६ । ४३(५१ ) | युधिष्ठिरकी रक्षाका भार सत्यजित् को सौंपना (द्रोण० १७ । ४४) । संशतकोंके साथ युद्ध और सुधन्वाका वध ( द्रोण० १८ | २२ तथा १९ अ० में ) । इनके द्वारा संशप्तकोंका वध ( द्रोण० २७ । १८ - २६ ) । सुशर्मा के भाईका वध और सुशर्मा की पराजय (द्रोण० २८ । ८-१० ) । भगदत्त के साथ युद्ध ( द्रोण० २८ । १४-३० से २९ अ० तक ) । श्रीकृष्ण से वैष्णवास्त्र का रहस्य पूछना (द्रोण० २९ । २१-२४ ) | इनके द्वारा भगदत्तके हाथी सुप्रतीकका वध (द्रोण० २९ । ४३) । अर्जुनके द्वारा भगदत्तका व Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only

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