Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्जुन अर्जुन (आदि० २२७ । ४४) । इन्द्रद्वारा इन्हें समस्त दिव्यास्त्र ३-११)। अर्जुनके सत्कार के लिये इन्द्रका चित्रसेनद्वारा प्रदान करने का आश्वासन (आदि. २३३ । १०-१२)। उर्वशीको संदेश एवं आदेश (वन० ४५ अ०में)। अर्जुन और मयासुरकी बातचीत (सभा १ ।२-८)। उर्वशीका कामपीड़ित होकर अर्जुनके पास जाना और मयासुरद्वारा इनको देवदत्त नामक शङ्खकी भेंट (सभा० अपने आनेका कारण बताना (वन०४६ । २२-३५)। ३। २१)। जरासंधको जीतनेके विषयमें युधिष्ठिरको अर्जुनका उर्वशीका प्रस्ताव सुनकर दोनों हाथोंसे आंख उत्लाह दिलानेके लिये वीरोचित उद्गार (सभा०१६ । ७- बंद कर लेना और इसकी ओर देखनेका कारण बताते १७) । श्रीकृष्ण और भीमसेनके साथ अर्जुनकी मगध- हुए उसे पूरुवंशकी जननी' कहना, साथ ही उसे अपने यात्रा ( सभा० २० अ०में )। इनका दिग्विजयके लिये कुन्ती, माद्री और शचीका स्थान देना (वन० लिये प्रस्थान (सभा० २५ । ७)। इनके द्वारा कुलिन्द ४६ । ३६-४७)। उनके अस्वीकार करनेपर उर्वशीका आदि देशोंपर विजय तथा भगदत्तकी पराजय (सभा. इन्हें शाप देकर लौट आना ( वन० ४६ अ०में)। २६ अ०में )। अन्तगिरि, उलू कपुर, मोदापुर आदि अर्जुनको इन्द्रका आश्वासन (वन०४६ । ५५-५९)। देशोंपर इनकी विजय ( सभा० २७ अमें )। इनकी युधिष्ठिरकी रक्षाके लिये महर्षि लोमशसे प्रार्थना किम्पुरुष, हाटक तथा उत्तर कुरुपर विजय प्राप्त करके (वन० ४७ । ३२-३३)। इन्द्रलोकसे लौटकर इनका इनका इन्द्रप्रस्थ लौटना (सभा० २८ अमें)। राज- गन्धमादन पर्वतपर भाइयोंसे मिलना (वन० १६५ । सूसके बाद अर्जुनका द्रुपदको कुछ दूर पहुँचाना (सभा०४)। इनके द्वारा अपनी तपस्या-यात्रा और पाशुपतास्त्रकी ५५ । ४८)। कर्ण और उसके अनुगामियोंको तथा समस्त प्राप्तिका वर्णन (वन. १६७ अ०में )। इनका इन्द्रविपक्षियोंको मारने के लिये अर्जुनकी प्रतिज्ञा (सभा० लोकमें प्राप्त हुई अस्त्रशिक्षा आदिका वृत्तान्त बताना ७७ । ३२-३६) । वनयात्राके समय अर्जुनका बालू ( वन० १६८ अमें ) । निवातकवचों के साथ उड़ाते हुए जाने का रहस्य (सभा०८०।५-१५)। अपने युद्धका वर्णन ( वन० १६९ असे १७२ इनके द्वारा श्रीकृष्णका स्तवन (वन० १२ । ११-४३)।। अ० तक )। अपने द्वारा हिरण्यपुरवासी पौलोमों और इनके द्वारा द्रौपदीको आश्वासन (वन० १२ । १३३)।। कालकेयोंके वधका वृत्तान्त बताना ( वन. १७३ इनका वनमें साथ गये हुए प्रजावर्गको आश्वासन (वन. अ०में ) । इनका भाइयोंको दिव्यास्त्रोंका प्रयोग २३ । १३-१४ ) । द्वैतवनमें निवास करने के लिये युधिष्ठिर- दिखानेके लिये उद्यत होना ( वन. १७५ । ७)। को इनकी सलाह (वन० २४ । ५-११)। तपके लिये गन्धर्वोके हाथसे कौरवोंको छुड़ाने के लिये अर्जुनकी प्रतिज्ञा प्रस्थान और इन्द्रकीलपर इनकी इन्द्रसे भेंट, बातचीत ( वन० २४३ । २१)। अर्जुनका गन्धर्वोसे दुर्योधनको तथा इन्हें इन्द्रका वरदान (वन० ३७ । ३७-५८)। छोड़ने के लिये कहना और न छोड़नेपर उनके ऊपर इनकी चार मासतक उग्र तपस्या (वन०३८ । २२-२७)। बाण बरसाना (वन० २४४ । १२-२१)। इनके द्वारा इनके द्वारा मूक दानवका वध ( ३९ । ७-१६)। चित्रसेन गन्धर्वकी पराजय ( वन० २४५। १-२६)। किरातरूपधारी भगवान् शङ्करके साथ इनका युद्ध ___ जयद्रथ के अनुगामी पाँच सौ पर्वतीय महारथियोंका संहार ( वन० ३९ । ३२-६४ )। इनके द्वारा शिवजीकी (वन० २७१।८)। सौवीरदेशके बारह राजकुमारोंका स्तुति (वन० ३९ । ७४-८२)। इनकी पाशुपतास्त्रके वध ( वन० २७१ । २७)। शिबि, इक्ष्वाकु, त्रिगत लिये महादेवजीकी प्रार्थना ( बन० ४०।८)। और सिन्धुदेशके क्षत्रियोंका विनाश ( वन० २७१ । इन्हें पाशुपतास्त्रकी प्राप्ति ( वन० ४०।२१)। इन्हें २८) । द्वैतवनमें पानी लानेके लिये जाना और सरोवरपर यमद्वारा दण्डास्त्रकी प्राप्ति ( वन० ४१ । २५-२६)। मूञ्छित होना (वन० ३१२ । २२-३२)। अर्जुनका वरुणद्वारा पाश-अस्त्रकी प्राप्ति (वन० ४१ । ३१-३२)। युधिष्ठिरको अज्ञातवासके लिये कुछ उपयोगी राज्यों के कुबेरद्वारा अन्तर्धानास्त्रकी प्राप्ति (वन० ४१।४१)। नाम बताना ( विराट० १ । १२-१३) । विराटनगरमें इन्द्रका इन्हें स्वर्गमें चलनेका आदेश (वन० ४१ । ४३. 'बृहन्नला' नामसे रहनेकी बात बताना (विराट०२।२५४४)। अर्जनके चिन्तन करनेपर मातलिद्वारा इन्द्रके २७)। नपुंसक वेघमें राजा विराट के पास जाना और उनसे रथका आनयन और उसपर बैठकर इनका स्वर्गलोकके अपने यहाँ रखनेके लिये प्रार्थना करना ( विराट लिये प्रस्थान (वन० ४२ । १०-३१) । स्वर्गलोकमें ११।२-९)। बृहन्नलारूपमें इनका द्रौपदीसे अपना पहुँचनेपर इनका महान् स्वागत तथा इन्द्रसभामें पहुंचकर मनोगत दुःख प्रकट करना (विराट. २४ । २३-२५)। इनका इन्द्रदेवसे मिलना (वन० ४३ । ८-१५)। अपने आप (बृहन्नला ) को सारथि बनानेके लिये द्रौपदीइन्द्रभवनमें इन्हें अस्त्र और संगीतकी शिक्षा (वन०४४।। द्वारा इनका उत्तरको कहलाना (विराट०३६ । १०-१३)। For Private And Personal Use Only

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