Book Title: Kranti Ke Agradut
Author(s): Kanak Nandi Upadhyay
Publisher: Veena P Jain

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Page 23
________________ [ 2 ] महामानव जिस मार्ग में अपना दृढ़ उन्नतिशील पद को धारण करके आगे बढ़ते हैं, वही मार्ग दूसरों के लिये आदरणीय, अनुकरणीय, आदर्श पथ (मार्ग) बन जाता है । अर्थात् महापुरुष रत्नद्वीप स्तम्भ के समान स्वयं को प्रकाशित करने के साथ-साथ दूसरों को भी प्रकाश प्रदान करते हैं। प्रत्येक देश-विदेश के इतिहास पुराणों के पन्ने महापुरुषों की जीवन-गाथा से ही सजीवता प्राप्त किये हुए हैं । महापुरुषों की जीवन-गाथा यदि इतिहास पुराणों से निकाल दी जाये तो इतिहासों के पन्ने निर्जीव कोरे कागज के समान रह जायेंगे। महापुरुषों के जीवन, चलते-फिरते जीवन्त इतिहास के सदृश्य हैं। महापुरुषों से इतिहास बनता है किन्तु इतिहास से महापुरुष नहीं बनते हैं। महापुरुषों का जीवन निम्न प्रकार होता है चलते चलते राह है, बढ़ते बढ़ते ज्ञान । तपते तपते सूर्य है, महापुरुष महान् ॥ महापुरुषों के महा व्यक्तित्व से ही सभ्यता-संस्कृति एवं इतिहास को संजीवनी शक्ति मिलती है । प्रत्येक देश के महान् पुरुषों के पवित्र चरित्र आगामी पीढ़ी को मार्गदर्शन रूप में प्रस्तुत करने के लिये बड़े-बड़े ज्ञानी, इतिहास वेत्ता महापुरुषों ने लिपिबद्ध करके रखे जिसको इतिहास, पुराण, चरित्र, जीवन-गाथा आदि नामों से पुकारा जाता है । जैन-धर्म में एक महान् ज्ञानी ऋषि, पुराण, इतिहास के वेत्ता आचार्य जिनसेन स्वामी ने एक महान् ऐतिहासिक ग्रन्थ की रचना की है जिसका नाम आदि पुराण या महापुराण है । आदि पुराण भारतीय इतिहास ही नहीं बल्कि विश्व इतिहास का महान् कोष है । महा प्राज्ञ आचार्य श्री ने वृषभादि धर्म तीर्थ के नायक 24 तीर्थङ्कर, राष्ट्र के अधिनायक भरतादि 12 चक्रवर्ती, 9 नारायण, 9 प्रतिनारायण, 9 बलभद्र आदि ऐतिहासिक महापुरुषों का जीवन चारित्र-चित्रण के माध्यम से इतिहास, सभ्यता, संस्कृति, धर्म, राजनीति, समाजनीति आदि-आदि का सुन्दर स्पष्ट विशद् वर्णन किया है। स्वयं आचार्य श्री ने पुराण इतिहास एवम् आदि पुराण के बारे में वर्णन करते हुए निम्न प्रकार कहा है पुरातनं पुराणं स्यात् तन्मन्महदाश्रयात् । महद्भिरूपविष्टत्वात् महाश्रेयोऽनुशासनात् ॥21॥ आदि पुराण प्रथम पर्व यह ग्रन्थ अत्यन्त प्राचीन काल से प्रचलित है इसलिये पुराण कहलाता है । इसमें महापुरुषों का वर्णन किया गया है अथवा तीर्थङ्कर आदि महापुरुषों ने इसका उपदेश दिया है अथवा इसके पढ़ने से महान् कल्याण की प्राप्ति होती है इसलिये इसे महापुराण भी कहते हैं। कवि पुराणमाश्रित्य प्रसृतत्वात् पुराणता। महत्वं स्वमहिन्मेष तस्येत्यन्यनिरूच्यते ॥22॥

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