Book Title: Kranti Ke Agradut
Author(s): Kanak Nandi Upadhyay
Publisher: Veena P Jain

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Page 40
________________ [ 19 ] श्रणु देवि महान् पुत्रो भविता ते गजेक्षणात् । समस्त भुवन ज्येष्ठो महावृषभ दर्शनात् ॥ 155 || आदिपुराण द्वादशं पर्व हे देवी! सुन हाथी के देखने से तेरे उत्तम पुत्र होगा, उत्तम बैल देखने से वह समस्त लोक में ज्येष्ठ होगा । सिंहेनानन्त वीर्योऽसौ दाम्ना सद्धमं तीर्थकृत् । लक्ष्याभिषेकमाप्तासौ मेरोर्मू हिन सुरोत्तमैः ॥156 | आदि पुराण सिंह के देखने से वह अनन्त बल से युक्त होगा, मालाओं के देखने से समीचीन धर्म तीर्थ (आम्नाय) का चलाने वाला होगा, लक्ष्मी के देखने से वह सुमेरु पर्वत के मस्तक पर देवों के द्वारा अभिषेक को प्राप्त होगा । पूर्णेन्दुना जनाह्लादी भास्वता भास्वरद्युतिः । कुम्भाभ्यां निधिभागी स्यात् सुखी मत्स्य युगेक्षणात् ॥ 157 ॥ पूर्ण चन्द्रमा के देखने से समस्त लोगों को आनन्द देने वाला होगा, सूर्य के देखने से देदीप्यमान प्रभा का धारक होगा, दो कलश देखने से अनेक निधियों को प्राप्त होगा । मछलियों का युगल देखने से सुखी होगा । 115611 सरसा लक्षणोद्भासी सो ऽविधिना केवली भवेत् । सिंहासनेन साम्राज्यमवाप्स्यति जगद् गुरु: ॥158॥ सरोवर के देखने से अनेक लक्षणों से शोभित होगा, समुद्र के देखने से केवली होगा, सिंहासन के देखने से जगत् का गुरु होकर साम्राज्य को प्राप्त करेगा । स्वविमानाबलोकेन स्वर्गादवतरिष्यति । फणीन्द्र भवनालोकात् सोऽवधिज्ञान लोचनः ॥ 159 ॥ देवों का विमान देखने से वह स्वर्ग से अवतीर्ण होगा, नागेन्द्र का भवन देखने से अवधि ज्ञान रूपी लोचनों से सहित होगा । गुणानामाकरः प्रोद्यव्रत्नराशि निशामनात् । कर्मेन्धन धगप्येष निर्धूमज्वलनेक्षणात् ॥160॥ चमकते हुए रत्नों की राशि देखने से गुणों की खान होगा, और निर्धूम अग्नि देखने से कर्म रूपी ईंधन को जलाने वाला होगा । वृषभाकारमादाय भवत्यास्य प्रवेशनात् । त्वद्गर्भे वृषभो देवः स्वामाधास्यति निर्मले |161।। तथा तुम्हारे मुख में जो वृषभ ने प्रवेश किया है उसका फल यह है कि तुम्हारे निर्मल गर्भ में भगवान वृषभदेव अपना शरीर धारण करेंगे । अष्टाङ्ग निमित्त विद्या में एक स्वप्न निमित्त रूप विज्ञान है । स्वप्न के माध्यम से भूत-भविष्यत्, हानि, लाभ को जान लेना स्वप्न विज्ञान है । नीरोगी, चिंता रहित व्यक्ति योग्य समय में जो स्वप्न देखता है उसका शुभाशुभ फल निश्चित रूप में प्राप्त होता है । आचार्यों ने कहा है- "अस्वप्न पूर्व हि जीवानां नहि जातु शुभाशुभम् " जीवों के कभी भी स्वप्न दर्शन के बिना शुभ तथा अशुभ नहीं होता है ।

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