Book Title: Kranti Ke Agradut
Author(s): Kanak Nandi Upadhyay
Publisher: Veena P Jain

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Page 121
________________ [ 100 ] चक्रवतियों का संयम-काल एक्केरक-लक्ख-पुव्वा, पुण्णास-सहस्स वच्छरा लक्खं । पणवीस-सहस्साणि, तेतीस-सहस्स-सत्त-सय-पण्णा ॥1419॥ इगिवीस-सहस्साइं, तत्तो सुण्णं च दस सहस्साई । पण्णाहिय-तिण्ण-सया, चत्तारि सयाणि सुण्णं च ॥1420॥ कमसो भरहादीणं, रज्ज-विरत्ताण चक्कवट्टीणं । णिव्वाण-लाह-कारण-संजम-कालस्स परिमाणं ॥1421॥ राज्य से विरक्त भरतादिक चक्रवतियों के निर्वाण-लाभ के कारणभूत संयमकाल का प्रमाण क्रमशः एक लाख पूर्व, एक लाख पूर्व, पचास हजार वर्ष, एक लाख वर्ष, पच्चीस हजार वर्ष, तेईस हजार सात सौ पचास वर्ष, इक्कीस हजार वर्ष, फिर शून्य, दस हजार वर्ष, तीन सौ पचास वर्ष, चार सौ वर्ष और शून्य हैं। भरतादिक चक्रवतियों की पर्यायान्तर प्राप्ति अठेव गया मोक्खं, बम्ह-सुभउमा य सत्तमं पुढवि। मघवो सणक्कुमारो, सणक्कुमारं गओ कप्पं ॥1422॥ इन बारह चक्रवर्तियों में से आठ चक्रवर्ती मोक्ष को, ब्रह्मदत्त और सुभौम चक्रवर्ती सातवीं पृथ्वी को तथा मघवा एवं सनत्कुमार चक्रवर्ती सनत्कुमार नामक तीसरे कल्प को प्राप्त हुए हैं। बलदेव, नारायण एवं प्रतिनारायणों के नाम विजओ अचलो धम्मो, सुप्पहणामो सुदंसणो णंदी। गंविमित्तो य रामो, पउमो णव होंति बलदेवा ॥1423॥ विजय, अचल, धर्म, सुप्रभ, सदर्शन, नन्दी, नन्दिमित्र, राम और पद्म ये नौ बलदेव हुए हैं। होति तिविठ्ठ-दुविट्ठा, संयभु-पुरिसुत्तमा य पुरिससिंहो। पुरिसवर-पुंडरीओ, दत्तो णारायणो किण्हो ॥1424॥ त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयंभु, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुष पुण्डरीक, पुरुषदत्त, नारायण (लक्ष्मण) और कृष्ण ये नौ नारायण हुए हैं। अस्सग्गीतो. तारग-मेरग-मधुकोटमा णिसुंभो य । बलि-पहरणो य रावण-जरसंधा गव य पड़िसत्तू ॥1425॥ अश्वग्रीव, तारक, मेरक, मधुकैटभ, निशुम्भ, बलि, प्रहरण, रावण और जरासंध ये नौ प्रतिशत्रु (प्रति नारायण) हुए हैं। · पंच जिणिदे वदंति, फेसबा पंच आणुपुव्वीए । सेयंससामि-पहुदि, तिविट्ठ-पमुहा य पत्तेक्कं ॥1426॥ त्रिपृष्ठ आदिक पाँच नारायणों में से प्रत्येक नारायण क्रमशः श्रेयांस स्वामी आदिक पांच तीर्थंकरों की वन्दना करते हैं। (प्रारम्भ के पाँच नारायण क्रमशः श्रेयांसनाथ आदि पांच तीर्थंकरों के काल में ही हुए हैं।)

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