Book Title: Kranti Ke Agradut
Author(s): Kanak Nandi Upadhyay
Publisher: Veena P Jain

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Page 122
________________ [ 101 ] अर-मल्लि-अंतराले, णादव्यो पुंडरीय-णामो सो। मल्लि-सुणिसुव्वयाणं, विच्चाले दत्त-णामो सो ॥1247॥ अर और मल्लिनाथ तीर्थंकर के अन्तराल में वह पुण्डरीक तथा मल्लि और मुनिसुव्रत के अन्तराल में दत्त नामक नारायण जानना चाहिए। सुव्वल-णमि- सामीणं, मज्झे णारायणो समुप्पण्णो। णेमि-समयम्मि किण्णो, एदे णव वासुदेवा य ॥1428॥ मुनिसुव्रत नाथ और नमिनाथ स्वामी के मध्यकाल में नारायण (लक्ष्मण) तथा नेमिनाथ स्वामी के समय में कृष्ण नामक नारायण उत्पन्न हुए थे। ये नौ वासुदेव भी कहलाते हैं। दस सुण्ण पंच केसव, छस्सुण्णा केसि सुण्ण केसीओ। तिय-सुण्णमेक्क-केसी, दो सुण्णं एक्क केसि तिय सुण्णं ॥1429 क्रमशः दस शून्य, पाँच नारायण, छह शून्य, नारायण, शून्य, नारायण, तीन शून्य, एक नारायण, दो शून्य, एक नारायण और अन्त में तीन शून्य हैं । (इस प्रकार नौ नारायणों की संदृष्टि का क्रम जानना चाहिए। संदृष्टि में अंक एक तीर्थंकर का, अंक 2 चक्रवर्ती का, अंक 3 नारायण का और शून्य अन्तराल का सूचक है।) नारायणादि तीनों के शरीर का उत्सेध सीदी सत्तरि सट्ठी, पण्णा पणदाल ऊणतीसाणि । बावीस-सोल-दस-धणु, केस्सीतिदयम्यि उच्छेहो ॥1430॥ केशवत्रितय-नारायण, प्रतिनारायण एवं बलदेवों के शरीर की ऊँचाई क्रमशः अस्सी, सत्तर, साठ, पचास, पैंतालीस, उनतीस, बाईस, सोलह और दस धनुष प्रमाण थी। नारायणादि तीनों को आयु सगसीदी सत्तत्तरि सग-सट्ठी सत्तत्तीस सत्त-दसा । वस्सा लक्खाण-हदा, आऊ विजयादि-पंचण्हं ॥1431॥ सगसठ्ठी सगतीसं, सत्तरस-सहस्स बारस-सयाणि । कमसो आउ-पमाणं, गंदि-प्पमुहा-चडपकम्मि ॥1432॥ विजयादिक पाँच बलदेवों की आयु क्रमशः सतासी लाख, सतत्तर लाख, सड़सठ लाख, संतीस लाख और सत्तरह लाख वर्ष प्रमाण थी तथा नन्दि-प्रमुख चार बलदेवों की आयु क्रमशः सड़सठ हजार, सैंतीस हजार, सत्तरह हजार और बारह सौ वर्ष-प्रमाण थी। चुलसीवी बाहत्तरि-सठ्ठी तीसं दसं च लक्खाणि । पणसठ्ठि-सहस्साणि, तिविट्ठ-छक्के कमे आऊ ॥1433॥ बत्तीस-बारसेक्कं, सहस्समाऊणि दत्त-पहुदीणं । पड़िसत्तु-आउ-माणं, णिय-णिय णारायणाउ-समा ॥1434॥

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