Book Title: Kranti Ke Agradut
Author(s): Kanak Nandi Upadhyay
Publisher: Veena P Jain

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Page 129
________________ [ 108 ] सग-वा कोमारो, संजम-कालो हवेदि चोत्तीसं । अड़वीस भंग-कालो, एयारसमस कद्दस्स ॥1479॥ ग्यारहवें (सात्यकिपुत्र) रुद्र का कुमार-काल सात वर्ष, संयम काल चौतीस वर्ष और संयम-भङ्ग-काल अट्ठाईस वर्ष प्रमाण हैं। ___ रुद्रों की पर्यायान्तर प्राप्ति दो लद्दा सत्तमए, पंच य छट्ठम्मि पंचमे एक्को। दोष्णि चउत्थे पडिदा, एक्करसो तदिय-णिरयम्मि ॥1480॥ इन ग्यारह रुद्रों में से दो रुद्र सातवें नरक में, पाँच छठे में एक पाँचवे में, दो चौथे में और अन्तिम (ग्यारहवाँ) रुद्र तीसरे नरक में गया है। नारदों का निर्देश भीम-महभीम-रुद्दा, महरूद्दो दोष्णि काल-महकाला। दुम्मुह-णिरयमुहाधोमुह, णामा णव य गारदा ॥1481॥ भीम, महाभीम, रुद्र, महारुद्र, काल, महाकाल, दुर्मुख, नरक मुख और अधोमुख ये नौ नारद हुए हैं। रुद्दा इव अइरुद्दा, पाव-णिहाणा हवंति सव्वे दे। कलइ-महाजुज्म-पिया, अधोगया वासुदेव त्व ॥1482॥ रुद्रों के सदृश अतिरौद्र ये सब नारद पाप के निधान होते हैं कलह-प्रिय एवं युद्ध-प्रिय होने से वासुदेवों के समान ही ये भी नरक को प्राप्त हुए हैं। उस्सेह-आउ-तित्थयरदेव-पच्चक्ख-भाव-पहुदीसुं। एदाण गारदाणं, उवएसो अम्ह उच्छिण्णो॥1483॥ इन नारदों की ऊँचाई, आयु और तीर्थंकर देवों के (प्रति) प्रयत्क्ष-भावादिक के विषय में हमारे लिए उपदेश नष्ट हो चुका है। कामदेवों का निर्देश कालेसु जिणवराणं, चडवीसाणं हवंति चउवीसा। ते बाहुबलि-प्पमुहा, कंदप्पा णिरुवमायारा ॥14840 चौबीस तीर्थंकरों के काल में अनुपम आकृति के धारक वे बाहुबलि-प्रमुख चौबीस कामदेव होते हैं। ___ 160 महापुरुषों का मोक्ष पद निर्देश तित्थयरा तग्गुरओ, चक्की-बल-केसि-रुद्द-णारदा । अगंज-कुलयर-पुरिसा, भव्वा सिझंति णियमेण ॥1485॥ तीर्थकर (24), उनके गुरूजन (माता-पिता 24+24), चक्रवर्ती (12), बलदेव (9), नारायण (9), रुद्र (11), नारद (9), कामदेव (24), और कुलकर (14) ये सब (160) भव्य पुरुष नियम से सिद्ध होते हैं।

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