Book Title: Kranti Ke Agradut
Author(s): Kanak Nandi Upadhyay
Publisher: Veena P Jain

View full book text
Previous | Next

Page 119
________________ [ 98 ] क्योंकि आपने साधारण मनुष्य के स्वभाव को उल्लंघन कर लिया है तथा जगत के सब देशों में भी आप पूज्य हैं । हे नाथ! इस कारण से आप सर्वोकष्ट देव हैं। हे धर्मनाथ जिनेन्द्र ! मोक्ष के लिये हम लोगों पर प्रसन्न हूजिये । विश्व के सातिशय अद्वितीय तीर्थंकर पुण्यकर्म के उदय से तेरहवां गुणस्थान वर्ती अरिहंत तीर्थकर भगवान् बनते हैं । आध्यात्मिक प्रमाण के साथ-साथ तीर्थंकर पुण्य प्रभाव से संयुक्त तीर्थकर होते हैं। तीर्थंकर साक्षात् आध्यात्मिक एवं भौतिक वैभव शक्ति एवं चमत्कार के पुंज स्वरूप होते हैं । चैतन्य शक्ति का पूर्ण विकास उस अवस्था में हो जाता है । तीर्थंकर के पुण्य कर्म के प्रभाव, शक्ति एवं चमत्कार सर्वाधिक होता है । भौतिक शक्ति की चर्मसीमा तीर्थंकर पुण्यकर्म है, इस प्रकार कहने पर कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आत्मा में जो अनन्त शक्तियाँ हैं, उसका भी पूर्ण विकास उस अवस्था में हो जाता है। विज्ञ पाठकों को ज्ञात होगा कि आत्मा में जैसे-जैसे अनंत शक्ति निहीत है, उसी प्रकार पुद्गल में भी है। विद्युत-शक्ति, रेडियो, टी. वी. एटमबम, कम्प्यूटर आदि वैज्ञानिक चमत्कार पूर्ण यन्त्र केवल पुदगल ही हैं। केवल पुदगल से कितने आश्चर्य पूर्ण कार्य हो सकता है, तब अनन्त शक्ति के पुंज स्वरूप आत्मा एवं पुद्गल के संयोग से तीर्थंकर के उपरोक्त अलौकिक चमत्कारपूर्ण अद्वितीय कार्य होने में क्या असम्भव है । जब तक हम द्रव्यों में निहीत अनेक वैचिपूर्ण अनन्त शक्तियों के बारे में नहीं जानते हैं, तब तक कोई विशेष सत्य घटना को असम्भव अतिरंजित मानते हैं, परन्तु जब वस्तु स्वरूप को यथार्थ से परिज्ञान करते. है तब आश्चर्य ही नहीं रहता है, विशेषत: अल्पज्ञ जड़ बुद्धि वाले मूर्ख संकुचित विचार वालों के लिये कोई एक सत्य घटना अविश्वसनीय आश्चर्य असम्भव प्रतीत होता है । "ज्ञानीनाम् किम् आश्चर्यम्' अर्थात् ज्ञानियों के लिये कोई सत्य तत्यपूर्ण घटना आश्चर्यकारी प्रतीत नहीं होती है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132