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महामुनिर्महामौनी महाध्यानो महादमः । महाक्षमो महाशीलो महायज्ञो महामखः ॥1॥
आदिपुराण (सहस्रनाम) अ० 25 आध्यात्मिक सम्राट तीर्थंकर भगवान यथार्थ में महामुनि, महामौनी, महाध्यानी, महादम, महाक्षम, महाशील, महायज्ञ एवं महामख होते हैं। तीर्थंकरों की आहार चर्या एवं दान तीर्थ
दीक्षोपरान्त तीर्थकर मुनि कुछ निश्चित दिन तक अनशन व्रत को धारण करके तपश्चरण करते हैं। मार्ग-प्रवर्तन के लिए, आदर्श स्थापन के लिए, दानतीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकर भगवान दीक्षोपवास के अनन्तर आहारचर्या के लिये प्रयाण करते हैं । जो उत्तम धर्मात्मा श्रावक नवधा भक्ति से अनुरंजित होकर एवं सप्त गुण मंडित होकर प्रासुक आहार देते हैं, उन्हीं के घर पर तीर्थंकर भगवान प्रथम आहार ग्रहण करते हैं; तब विश्व को आश्चर्यचकित करने वाला पंचाश्चर्य होता है । पंचाश्चर्य
रत्नवृष्टि-आहारदाता के घर पर अधिक से अधिक साढ़े बारह करोड़ पचास लाख (125000000) रत्न की वृष्टि होती है और कम से कम एक लाख पच्चीस हजार (125000) रत्नों की वृष्टि होती है ।
मन्द, सुगन्ध तथा शीतल बयार बहने लगती है। दिव्य पुष्पों की दृष्टि होती है। जय-जय शब्दों का घोषण होता है ।
देव-दुन्दुभी की मधुर ध्वनि होती है। आहारदाता का महत्त्व
तपस्थिताश्च ते केचित्सिद्धास्तेनैव जन्मना। जिनांते सिद्धिरन्येषां तृतीये जन्मनि स्मृताः। 60-252॥
(हरिवंश पुराण) तीर्थंकर भगवान को प्रथम बार जो आहार दान देता है वह तद्भव में मोक्ष को प्राप्त करता है या स्वर्ग-सुख को अनुभव करके तीसरे भव में मोक्ष को प्राप्त करता है। तीर्थंकर को प्रथम बार दान देने वाला पूर्व भव से धार्मिक भाव एवं दानादि क्रिया से संस्कारित रहता है। पूर्वोपार्जित पुण्य-कर्म एवं संस्कार से प्रेरित होकर धर्म-तीर्थ के प्रवर्तक तीर्थंकर भगवान को जब भावोज्ज्वल सहित आहार दान देता है तब वह दान-तीर्थ का प्रवर्तन करता है। तीर्थंकर भगवान धर्मतीर्थ का प्रवर्तक है तो प्रथम दान देने वाला दान तीर्थ का प्रवर्तक है। भावोज्ज्वलता से एवं पुण्य के प्रभाव से दानकर्ता तद्भव में दीक्षा ग्रहण करके, सिद्ध, बुद्ध, नित्य, निरंजन, परमात्मा बन सकता है या पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग के अभ्युदय सुख को प्राप्त करके तीसरे भव में मोक्ष को प्राप्त करते हैं।