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[ 65 ] प्रयोग करेंगे तब वह वस्त्र स्वच्छ के अतिरिक्त अस्वच्छ ही अधिक होगा । अत: पतित, पापी, दोषी, कलंकित, जीवों को पावन, पवित्र, मंगल, निर्दोष, अकलंकित धर्मात्मा बनाने के लिए एक अत्यन्त पवित्र, निर्दोष, निष्कलंक धर्म तीर्थ प्रवर्तक नेता की अत्यन्त आवश्यकता होती है ।
स्वच्छ दर्पण (आदर्श) से अपने मुख का अवलोकन करके मुख के ऊपर लगे हुए कलंक को हटा सकते हैं, परन्तु अस्वच्छ दर्पण से अपने मुख का यथार्थ अवलोकन नहीं हो सकता है उसके कारण मुख के कलंक को मिटा भी नहीं सकते हैं, परन्तु अस्वच्छ दर्पण से इसी प्रकार जो स्वयं निष्कलंक होकर आदर्श (अनुकरणीय) होता है वह दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है। अतः जो धर्म प्रचारक-प्रसारक उन्नयनकारी नेता होते हैं, उनका स्वयं निर्दोष होना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है इसलिए धर्म प्रचारक तीर्थंकर 18 दोषों से रहित होते हैं । जो मानव 18 दोषों से रहित होते हैं वे ही आप्त, तीर्थकर, अरिहन्त भगवान, धर्म संस्थापक, धर्मोपदेशक, केवलि, सत्यदृष्टा, परम ब्रह्म परमात्मा होते हैं। भगवान के स्वरूप बताते हुए महान ताकिक दार्शनिक महान प्राज्ञ समंतभद्र स्वामी ने निम्न प्रकार से वर्णन किया है
आप्तेनोच्छिन्नदोषेण, सर्वज्ञेनागमेशिना।
भवितव्यं नियोगेन, नान्यथा ह्याप्तता भवेत् ॥5॥ जो वीतरागी (मोह, ममता, आसक्ति से रहित), सर्वज्ञ (चराचर विश्व को जानने वाला), हितोपदेशी (कल्याणकारी उपदेश देने वाला) होते हैं वे ही यथार्थ से देव कहलाते हैं किन्तु, जो रागी (मोही, ममत्व वाला), असर्वज्ञ और अहितोपदेशी होते हैं वे यथार्थ से देव नहीं हो सकते। ___पुनः आचार्य श्री ने सच्चे देव का लक्षण बताते हुए दोषरहितता निम्न प्रकार
क्षुत्पिपासाजरात-जन्मान्तक-भय-स्मयाः।
न रागद्वेषमोहाश्च, यस्याप्तः सः प्रकीर्त्यते ॥6॥ (1) भूख, (2) प्यास, (3) बुढ़ापा, (4) रोग, (5) जन्म, (6) मरण, (7) भय, (8) गर्व, (9) राग, (10) द्वेष, (11) मोह, (12) आश्चर्य, (13) अरति, (14) खेद, (15) शोक, (16) निद्रा, (17) चिंता, (18) स्वेद । इन 18 दोष से रहित होता है । उसे आप्त (धर्मोपदेशक, तीर्थंकर) कहते हैं
जन्म जरा तिरखा क्षुधा, विस्मय आरत खेद । रोग शोक मद मोह भय, निद्रा चिन्ता स्वेद ॥ राग द्वेष अरु मरण श्रत, ये अष्टादश दोष ।
नाहि होत अरिहन्त के सो छवि लायक मोष ॥ (1) भूखअसातावेदनीय कर्म के सम्पूर्ण क्षय से तथा आध्यात्मिक अनंत सुख का भोग सतत करने से तीर्थंकर भगवान दीर्घकालीन तीर्थंकर अवस्था में कभी भी रोटी, भात मिष्ठान आदि का भोजन नहीं करते हैं।
बताये हैं पुनः आ