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[ 60 ] (8) सुगन्धित वायु बहना :___ जनिताङ्ग सुख स्पर्शो ववो विहरणानुगः ।
सेवामिव प्रकुर्वाणः श्री वीरस्य समीरणः ॥20॥हरिवंश पु०/पर्व 3 शरीर में सुखकर स्पर्श उत्पन्न करने वाली विहार के अनुकूल-मंद सुगन्धित वायु बह रही थी जिससे ऐसा जान पड़ता था मानो भगवान की सेवा ही कर रही हो। जिस प्रकार वर्तमान भौतिक वैज्ञानिक युग में उष्णता शांत करने के लिये फेन, कूलर, वातानुकूल प्रकोष्ठ आदि का आविष्कार हुआ है उसी प्रकार देव लोग अपनी दैविक ऋद्धि वैक्रियक शक्ति से शीतल पवन प्रवाहित करते थे।
(9) जलाशय का जल निर्मल होना :
जिस प्रकार एक नक्षत्र विशेष के उदय से या निर्मली (कतक फल) घिसकर डालने से कीचड़ नीचे दब जाता है एवं पानी स्वच्छ हो जाता है उसी प्रकार देव लोग अपनी शक्ति से तीर्थङ्कर जहाँ-जहां विहार करते थे वहाँ के जलाशय को निर्मल जल से परिपूर्ण कर देते थे। (10) आकाश निर्मल होना :
जिनेन्द्र केवल ज्ञान वैमल्यमनुकुर्वता। घनावरणमुक्तेन गगनेन विराजितम् ॥26॥ नीरजोभिरहोरात्रं जनताभिरिवेश्वरः ।
आशाभिरपि नर्मल्यं विभ्रतीभिरपासितः ॥27॥हरिवंश पु०/सर्ग 3 मेघों के आवरण से रहित आकाश ऐसा सुशोभित हो रहा था मानो वह जिनेन्द्र देव के केवल ज्ञान की निर्मलता का ही अनुकरण कर रहा हो।
___जिस प्रकार रजोधर्म से रहित होने के कारण निर्मलता-शुद्धता को धारण करने वाली स्त्रियाँ रात-दिन अपने पति की उपासना करती हैं उसी प्रकार रज अर्थात् धूलि से रहित होने के कारण उज्ज्वलता को धारण करने वाली दिशायें भगवान् की उपासना कर रही थीं।
जिस प्रकार मेघाछिन्न आकाश तीव्र वायु प्रभाव से मेघ हटने के पश्चात् निर्मल हो जाता हैं उसी प्रकार देव लोग अपनी विशिष्ट दैविक शक्ति से आकाश स्थित बादल धूली, धुआँ आदि को दूर कर देते हैं । जिससे आकाश अत्यन्त निर्मल हो जाता है। ___ (11) सम्पूर्ण जीव निरोगी होना :
तीर्थङ्कर के सातिशय पुण्य प्रभाव से, पुण्य पवित्रमय वातावरण से एवं देवों के विशेष प्रभाव से सम्पूर्ण जीव रोग बाधाओं से रहित हो जाते हैं। पूर्वकृत पुण्य प्रभाव से देवों को विशेष ऋद्धि प्राप्त होती है जिसके माध्यम से वे लोग अनुग्रह निग्रह करने में समर्थ हो जाते हैं । तार्किक चूडामणी अकलङ्क देव राजवातिक में बताते हैं।
शापानुग्रह लक्षणः प्रभावः ॥2॥ शापोऽनिष्टापादनम् अनुग्रह इष्ट प्रतिपादनम् तल्लक्षणः प्रवृध्दोभाष प्रभाव इत्याख्यायेत।