Book Title: Kranti Ke Agradut
Author(s): Kanak Nandi Upadhyay
Publisher: Veena P Jain

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Page 83
________________ [ 62 ] चक्रण यः शत्रुभयंकरेण जित्वा नृपः सर्वनेरन्द्र चक्रम् । समाधि चक्रेण पुनर्जिगाय, महोदयो दुर्जय मोह चक्रम् ॥770 स्वयंभूस्जोत शान्तिनाथ तीर्थंकर गृहस्थावस्था में भयंकर सुदर्शन चक्र रत्न के माध्यम से सम्पूर्ण नरेन्द्र चक्र (राज समूह) को जीतकर चक्रवर्ती पदवी को प्राप्त किये थे। सम्पूर्ण राजवैभव त्याग करके जब निर्ग्रन्थ मुनि बने तब समाधि चक्र (धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान समूह) से दुर्जय महाप्रभावशाली मोहचक्र (मोहनीय कर्म समूह) को जीतकर तीन लोक के अधीश्वर धर्मचक्री तीर्थंकर बने। यस्मिन्नभूद्राजनि राज चक्र, मुनी दयादीधिति धर्म चक्रम् । पूज्ये मुहुः प्राञ्जलि देवचक्र, ध्यानोन्मुखे ध्वंसिकृतान्तचक्रम 179॥ __जिस समय शान्तिनाथ तीर्थंकर गृहस्थ अवस्था में एकाधिपति सम्राट (चक्रवर्ती) थे, उस समय राजचक्र (राजा समूह) हाथ जोड़कर नम्र भाव से उनकी अधीनता स्वीकार किये थे । सर्वस्व त्याग करके जब वे मुनि अवस्था को धारण किये तब वे दयारूपी दैदीप्यमान, प्रकाश के धारण करने वाले धर्म चक्र (उत्तम क्षमा, मार्दव,, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिन्चन्य, ब्रह्मचर्य, सम्यक् दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र, ध्यान आदि) को स्वयं के अधीन कर लिए अर्थात् वे सम्पूर्ण धर्म को सम्यक् रूप से पालन किये । धर्म चक्र के माध्यम से कृतांत चक्र को ज्ञानावरण आदि कर्म को नष्ट करके सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशित करने वाला ज्ञानचक्र (ज्ञान समूह अर्थात् अखण्ड केवल ज्ञान) को प्राप्त किये, उस समय 1000 आरे वाले प्रकाशमान धर्मचक्र तीर्थंकर के अधीन हो गया। समवसरण में विराजमान होकर जब धर्मोपदेश देने लगे तब देवचक्र (देवसमूह) बद्धांजलि होकर भगवान की भक्ति करने लगे। अंतिम योग-निरोध समय में ध्यानरूपी चक्र से कृतांत चक्र (चक्रसमूह) को विध्वंस करके अध्यात्म गुण धर्म चक्र (अध्यात्मिक गुण समूह) को प्राप्त हुए। . बौद्ध धर्म में भी वर्णन है कि गौतम बुद्ध जब बोधि प्राप्त किये तब से वे धर्मचक्र का प्रवर्तन किये । उसे धर्म चक्र के स्मरण स्वरूप अशोक ने अशोक स्तम्भ के ऊपर (सारनाथ के अशोक स्तम्भ) धर्मचक्र की प्रतिकृति बनाया था। स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय चिन्ह यह अशोक स्तम्भ है। इस अशोक स्तम्भ में 24 आरे वाले चक्र के ऊपर चतुर्मुखी सिंह बैठा हुआ है । नीचे एक तरफ बैल है एक तरफ घोड़ा है। सूक्ष्म ऐतिहासिक दृष्टि से विचार करने में इसमें जैनों के बहुत कुछ संकेत रूप से इतिहास सिद्धान्त की गरिमा गाथा निहित है। 24 आरे जैनों के सुप्रसिद्ध 24 तीर्थकर के सूचना स्वरूप हैं। बैल जैनधर्म के वर्तमानकालीन आदि धर्म प्रवर्थक वृषभदेव (आदिनाथ) का लक्षण है। वृषभ का अर्थ धर्म और श्रेष्ठ होता है। बैल (वृषभ) बलभद्रता का प्रतीक है। वृषभ (साँड) स्वातन्त्र्य प्रेमी का भी प्रतीक है

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