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मंगलमय पञ्च कल्याणक
ऊपर वर्णित महती 16 भावनाओं से जो महापुरुष भावित हो ( जो है) वे आगे जाकर उन भावनाओं के फलस्वरूप तीनों लोक के उपकारी धर्म तीर्थ के प्रवर्तक 5 कल्याणक से मंडित तीर्थंकर होते हैं ।
(1) गर्भ कल्याणक (स्वर्गावतरण) (2) जन्म कल्याणक (3) दीक्षा कल्याणक (परिनिष्क्रमण ) (4) केवलज्ञान कल्याणक (बोधि लाभ ) ( 5 ) मोक्ष कल्याणक | इस प्रकार कल्याणक 5 होते हैं । जो कल्याणमय, अभ्युदय सूचक मंगलमय विशेष असाधारण महत्त्वपूर्ण घटना होती है उसको कल्याणक कहते हैं ।
(1) गर्भ कल्याणक-
जिस प्रकार सूर्य उदय के बहुत ही पहले अंधकार शनैः शनैः विलय को प्राप्त हो जाता है, शनैः शनैः प्रकाश का आगमन होता है, आकाश लालिमा से रंजित होता जाता है उसी प्रकार महान् पुण्यशाली जगत उद्धारक, तीर्थंकर के अवतार के पहले ही इस भूमण्डल में अनेकानेक अलौकिक महत्त्वपूर्ण घटना घटी मानो तीर्थङ्कर के आगमन से पुलकित होकर विश्व, भूमण्डल, प्रकृति, ही भगवान का सुस्वागत कर रहे हैं ।
(A) रत्न वृष्टि -
जिस प्रकार -बड़े अतिथि के आगमन पर उनके श्रद्धालु आदि उनका सुस्वागत करने के लिये द्वार, नगर आदि सुसज्जित करते हैं, एवं पुष्प वृष्टि आदि करते हैं, उसी प्रकार तीन लोक के एकैक बंधु जगदुद्धारक तीर्थंकर के मंगलमय पृथ्वी पर आगमन के छ: महीने के पहिले ही देवों ने रत्न वृष्टि की ।
षड़भिर्मासैरथैतस्मिन् स्वर्गादवतरिष्यति ।
रत्नवृष्टिं दिवो देवाः पातयामासुरादरात् ॥ 84 ॥ आदि पुराण
तदनन्तर 6 महीने बाद भगवान वृषभदेव यहाँ स्वर्ग से जानकर देवों ने बड़े आदर के साथ आकाश से रत्नों की वर्षा की स्क्रन्दन नियुक्तेन धनदेन निपातिता ।
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पर्व 12
अवतार लेंगे ऐसा
साभात् स्वसंपदौत्सुक्यात् प्रस्थितेवाग्ततो विभोः ॥ 85 ॥
इन्द्र के द्वारा नियुक्त हुए कुबेर ने जो रत्न की वर्षा की थी, वह ऐसी सुशोभित होती थी मानो वृषभदेव की सम्पत्ति उत्सुकता के कारण उनके आने से पहले ही आ गयी हो ।
हरिन्मणि महानील पद्मरागांशु संकरैः ।
साधुतत् सुरचापश्रीः प्रगुणत्व मिवाश्रिता ॥ 86 ॥
वह रत्नवृष्टि हरिन्मणि इन्द्रनील मणि और पद्मरागे आदि मणियों की किरणों के समूह से ऐसी देदीप्यमान हो रही थी मानो सरलता को प्राप्त होकर (एक रेखा में सीधी होकर) इन्द्र धनुष की शोभा ही आ रही हो ।