Book Title: Kranti Ke Agradut
Author(s): Kanak Nandi Upadhyay
Publisher: Veena P Jain

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Page 22
________________ अध्याय क्रान्ति के लिए अग्रदूतों के योगदान धर्म, सभ्यता एवम् संस्कृति का उद्गम, प्रचार-प्रसार, उन्नयन, क्रान्ति एवम् दृढ़ीकरण महापुरुषों से होता है । मनुष्य समाज एवम् पशु समाज दोनों समकालीन प्राचीन समाज होते हुए भी मनुष्य समाज उत्तरोत्तर सभ्यता एवम् संस्कृति की उन्नति करते हुए अविराम गति से आगे बढ़ता जाता है परन्तु पशु समाज प्रारम्भिक प्राचीन काल में जिस स्थिति में था आज भी सभ्यता और संस्कृति की दृष्टि से उसी स्थिति में है अथवा और पीछे भी हटा है। क्योंकि मनुष्य एक चिंतनशील, प्रज्ञावान, विवेकवान, प्रगतिशील समाज है। इस मानव समाज में कुछ ऐसे अलौकिक शक्ति प्रतिभा के धारी क्रान्तिकारी महान् पुरुष हुए हैं जिनसे मानव समाज को आगे बढ़ने के लिये दिशा, उत्साह, प्रेरणा मिली है। यदि मानव समाज में प्रगतिशील क्रान्तिकारी महापुरुष नहीं होते तो शायद आज भी मानव समाज पशु समाज के समकक्ष ही होता । पशु समाज में ऐसे कोई उन्नतिशील जीव नहीं होते, जिससे पशु समाज की उन्नति हो। जिस प्रकार "न धर्मो धार्मिक बिना" अर्थात् धर्मात्मा को छोड़कर धर्म का अस्तित्व ही नहीं है, उसी प्रकार सभ्य सांस्कृतिक मानव को छोड़कर सभ्यता एवम् संस्कृति का अस्तित्व ही नहीं है । उन्नतशील जीवन्त सभ्यता एवम् संस्कृति के विग्रह स्वरूप महामानव जो आहार-विहार, आचार-विचार करते हैं वही सभ्यता एवम् संस्कृति है । मानव समाज विशेषतः अनुकरण प्रिय होने से वे महापुरुषों का अनुकरण करके, उनके पदचिन्हों पर यथाशक्ति कदम-कदम रखकर, आगे बढ़ने का पुरुषार्थ करते हैं। प्राचीन भारतीय विचारक नीतिकारों ने कहा है यदाचरित श्रेष्ठ स्तत्तदेवेत्तरो जनः । स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ॥ जो जो आचरण, श्रेष्ठ महापुरुष करते हैं वे वे आचरण अन्य जन अनुकरण करते हैं। महापुरुष जिनको प्रमाणित करते हैं, समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत करते हैं। समाज उसको प्रमाणित मानता है। व्यास देव ने विश्व के महाकाव्य महाभारत में भी कहा है "महाजन गता सः पंथा।"

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