Book Title: Kranti Ke Agradut
Author(s): Kanak Nandi Upadhyay
Publisher: Veena P Jain

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Page 26
________________ [ 5 ] (आदि पुराण) हरिवंश पुराण, पद्म पुराण, पाण्डव पुराण आदि का अवलोकन करें। दोनों महापुरुष के अनन्तर अनेक करोड़ अरब वर्ष के बाद एक प्रसिद्ध धर्म क्रांतिकारी महापुरुष हुए जिनका पवित्र नाम अरिष्टनेमि (नेमिनाथ तीर्थंकर) है । वे प्रसिद्ध महापुरुष श्री कृष्ण नारायण के चचेरे भाई थे । श्री कृष्ण, कौरव पाण्डवों के समकालीन थे। कौरव पाण्डवों के बीच जो महाभारत रूप महायुद्ध हुआ था वह एक ऐतिहासिक घटना है जिसे वर्तमान ऐतिहासिक विद्वान् भी मान्यता देते हैं । महाभारत तथा श्री कृष्ण ऐतिहासिक प्रसिद्ध होने से उनके समकालीन चचेरे भाई अरिष्टनेमि भी ऐतिहासिक पुरुष स्वतः सिद्ध हो जाते हैं। अरिष्टनेमिनाथ का वर्णन केवल जैन साहित्य में नहीं परन्तु हिन्दुओं के प्रसिद्ध वेदादि में भी पाया जाता है। ऋषभदेव के बाद 20 तीर्थकर हुये थे । उनके 83650 वर्ष अनन्तर 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ हुए हैं जो कि अत्यन्त कठिन यातना रूपी परीक्षा से उत्तीर्ण होकर केवल्य ज्ञान को प्राप्त कर बिहार के प्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र सम्मेद शिखर से मोक्ष पधारे । उनके नाम से तीर्थराज पर्वत का नाम पार्श्वनाथ पर्वत प्रसिद्ध हुआ है। श्री पार्श्वनाथ तीर्थंकर के बाद 250 वर्ष के अनन्तर सुप्रसिद्ध अन्तिम तीर्थंकर वर्धमान महावीर हुए हैं। वर्धमान महावीर प्रसिद्ध महापुरुष, करुणा के अवतार महात्मा बुद्ध के समकालीन थे। दोनों महापुरुषों ने तत्कालीन, सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक विषमता अन्याय, अत्याचार को दूर करने के लिये भागीरथ प्रयास किये थे। भरी यौवन अवस्था में अतुल वैभव को तृणवत् त्याग कर कठोर आत्म साधन के माध्यम से स्वयं आध्यात्मिक ज्योति को प्राप्त करके तत्कालीन समस्त अन्धकार दूर किये थे। दोनों धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा को पाप, अनैतिक अधर्म, अनाचरणीय बताकर हिंसा के विरुद्ध अहिंसात्मक शांति पूर्ण महान क्रान्ति उत्पन्न किये थे जिससे यज्ञ में होने वाली पशु-हिंसा यहां तक कि नरबलि भी निषिद्ध हो गयी। हिन्दू धर्म में याज्ञिक क्रिया कलाप में होने वाली महान हिंसा इन दोनों महापुरुषों के कारण ही अधिकांश रूप से समाप्त हुई। हिन्दू धर्म में यज्ञ में होने वाले हिंसात्मक थोथे क्रिया कलापों से ऊबकर एवं असारता को हृदयंगम करके तथा अहिंसा के समर्थ प्रचार-प्रसार क्षत्रिय तीर्थकरों के तथा महापुरुषों के प्रभाव में आकर हिन्दू धर्म में भी कुछ आध्यात्मिक क्रान्तिकारी महापुरुष हुए। आध्यात्मिक साधना, ध्यान, मनन, चिंतन, मनइन्द्रिय, संयमन, आकिञ्चन आदि उपायों से ही स्व-पर इहलोक-परलोक एवं आध्यात्मिक उन्नति हो सकती है । पूर्ण रूप से समर्थन करके, आचरण करके, प्रसार करके भोले भ्रष्ट मानव समाज को सुपथ में लाने का अकथनीय भागीरथ प्रयास किये । यह सब उपर्युक्त विषयों का विवरण उपनिषद्, भागवत पुराण आदि से स्पष्ट प्रतिभास होता है। उन क्रान्तिकारी महापुरुष में से महर्षि याज्ञवल्क्य, मैत्रय, श्वेतकेतु, राजऋषि जनक, शुकदेव आदि का नाम अविस्मरणीय है।

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