Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika Nama
Author(s): Chandrashi Mahattar, Dhirajlal D Mehta
Publisher: Jain Dharm Prasaran Trust Surat

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Page 13
________________ 12 सत्तावीसं सुहुमे, अट्ठावीसं च मोहपयडीओ । उवसंतवीअराए, उवसंता हुंति नायव्वा ॥७७ ।। पढमकसायचउक्वं, इत्तो मिच्छत्तमीससम्मत्तं । अविरयसम्मे देसे, पमत्ति अपमत्ति खीयंति ।। ७८ ।। अनियट्टिबायरे थीणगिद्धितिग निरयतिरिअनामाओ । संखिज्जइमे सेसे, तप्पाउग्गाओ खीयंति ।। ७९ ।। इत्तो हणइ कसायट्ठगंपि पच्छा नपुंसगं इत्थिं । तो नोकसायछक्कं, छुहइ संजलणकोहंमि ।। ८० ॥ पुरिसं कोहे कोहं, माणे माणं च छुहइ मायाए । मायं च छुहइ, लोहे लोहं सुहुमं पि तो हणइ ।। ८१ ।। खीणकसायदुचरिमे, निहं पयलं च हणइ छउमत्थो । आवरणमंतराए, छउमत्थो चरिमसमयम्मि ।। ८२ ।। देवगइसहगयाओ, दुचरमसमयभवियंमि खीयंति । सविवागेयरनामा, नीयागोयं पि तत्थेव ।। ८३ ॥ अन्नयरवेयणीअं, मणुआउअमुच्चगोअ नव नामे । वेएइ अजोगिजिणो, उक्कोस जहन्न मिक्कारा ।। ८४ ।। मणुअगइ जाइ तस बायरं च, पजत्तसुभगमाइजं । जसकित्ती तित्थयरं, नामस्स हवंति नव एया ।।८५ ।। तच्चाणुपुव्विसहिया, तेरस भवसिद्धिअस्स चरमंमि । संतं सगमुक्कोसं, जहन्नयं बारस हवंति ।। ८६ ॥ मणुअगइसहगयाओ, भवखित्तविवागजीअविवागाओ । वेअणीयन्नयरुच्चं चरमसमयंमि खीयंति ।। ८७ ।। अह सुइयसयलजगसिहरमरुअनिरुवमसहावसिद्धिसुहं । अनिहणमव्वाबाहं, तिरयणसारमणुहवंति ।। ८८ ॥ दुरहिगम-निउण-परमत्थ-रुइर-बहुभंग-दिट्टिवायाओ। अत्था अणुसरिअव्वा, बंधोदयसंतकम्माणं ।।८९ ॥ जो जत्थ अपडिपुन्नो, अत्थो अप्पागमेण बद्धो त्ति । तं खमिऊण बहुसुआ, पूरेउणं परिकहंतु ॥९० ।। गाहग्गं सयरीए, चंदमहत्तरमयाणुसारीए । टीगाइनिअमिआणं, एगुणा होइ नउईओ ।। ९१ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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