Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika Nama
Author(s): Chandrashi Mahattar, Dhirajlal D Mehta
Publisher: Jain Dharm Prasaran Trust Surat

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Page 11
________________ 10 उवसंते चउ पण नव, खीणे चउरुदय छच्च चउ संता। वेयणियाउय गोए, विभज्ज मोहं परंतुच्छं ।।४५ ।। चउ छस्सुदुन्नि सत्तसु, एगेचउ गुणिसुवेयणीयभंगा। गोए पण चउदो तिसु, एगट्ठसुदुन्नि इक्कम्मि ॥४६ ।। अट्ठच्छाहिगवीसा सोलस वीसं च बारस छ दोसु । दो चउसु तीसु इक्कं, मिच्छाइसु आउए भंगा ।। ४७ ।। गुणठाणएसु अट्ठसु, इक्किकं मोहबंधठाणं तु । पंच अनियट्ठिठाणे, बन्धोवरमो परं तत्तो ॥४८ ।। सत्ताइ दस उ मिच्छे, सासायणमीसए नवुक्कोसा।। छाई नव उ अविरए, देसे पंचाइ अद्वैव ॥४९ ।। विरए खओवसमिए, चउराई सत्त छच्चपुव्वम्मि । अणिअट्टिबायरे पुण, इक्को व दुवे व उदयंसा ॥५० ॥ एगं सुहुमसरागो, वेएइ अवेयगा भवे सेसा । भंगाणं च पमाणं, पुव्वुद्दिष्टेण नायव्वं ।।५१ ॥ इक्क छडिक्कारिकारसेव, इक्कारसेव नव तिन्नि । एए चउवीसगया, बार दुगे पंच इक्वम्मि ॥५२॥ बारस पणसट्ठिसया, उदयविगप्पेहिं मोहिया जीवा । चुलसीइ सत्तुत्तरि, पयविंदसएहिं विन्नेया ॥५३ ॥ अट्ठग चउ चउ चउरट्ठगा य, चउरो य हुंति चउव्वीसा । मिच्छाइ अपुव्वंता, बारस पणगं च अनियट्टि ।।५४ ।। अट्ठी बत्तीसं, बत्तीसं सट्टीमेव बावन्ना । चोयालं दोसु वीसा वि य, मिच्छमाइसु सामन्नं ।। ५५ ॥ जोगोवओगलेसाइएहिं गुणिया हवंति कायव्वा । जे जत्थ गुणट्ठाणे, हवंति ते तत्थ गुणकारा ।।५६ ।। तिन्नेगे एगेगं, तिग मीसे पञ्च चउसु तिग पूव्वे (नियट्टिए तिन्नि)। इक्कार बायरम्मि उ, सुहुमे चउ तिन्नि उवसंते ।। ५७ ।। छन्नव छक्कं तिग सत्त दुगं, दुग तिग दुगं ति अट्ठ चउ । दुग छच्चउ दुग पण चउ, चउ दुग चउ पणग एग चउ ।।५८ ।। एगेगमट्ठ एगेगमट्ठ, छउमत्थकेवलिजिणाणं । एग चऊ एग चऊ, अट्ठ चऊ दुछक्कमुदयंसा ।।५९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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