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श्री मुरानाजी गुरुदेवश्री के साहित्य एवं विकारों से अतिनिकट सम्पर्क में है। भुरुदेव के निर्देशन में उन्होंने अत्यधिक श्रम करके यह विसापू तथा सर्व साधारण जन के लिए उपयोगी विवेशन तैयार किया है । इस विवेचन में शक दीर्घकालीन अभाव की पूर्ति हो रही है । साथ ही समाज को एक सांस्कृतिक एवं दार्शनिक निधि मये रूप में मिल रही है, यह अत्यधिक प्रसमता की बात है।
मुझे इस विषय में विशेष रुचि है ? मैं गुरुदेव को तथा संपादक बन्धुओं को इसकी पूर्ति के लिए समय-समय पर प्रेरित करता रहा । प्रथम व द्वितीय भाग के पश्चात् यह तृतीय भाग नाम जनता के समक्षा रहा है । इसकी मुझे हार्षिक प्रसन्नता है।
पहले के दो भाग जिज्ञासु पाठकों ने पसन्द किये हैं, उनक स्वज्ञान-वृद्धि में के सहायक बने हैं, ऐसी सूचना मिली हैं । आशा है प्रथम व द्वितीय भाग की तरह यह तृतीय भाग भी ज्ञानवृद्धि में अधिक उपयोगी बनेगा।
...-सुकन मुनि