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पर सफलता भी कम मिलती है। ऐसी अवस्था में जब दिगंबर संप्रदाय के सज्जनों पर प्रमाद देवता की खूब कृपा है, उसे देखकर अन्य लोग कोई प्रशस्ति बदलकर, कोई मंगलाचरण बदलकर, कोई कता की मरम्मत कर, कोई ग्रंथ के नाम को बदलकर, कोई अपने मतलब की बात को निकाल घुसेडकर, इस प्रकार तरह तरह से दिगंबर साहित्यों को सामने लारहे हैं । कुछ साहित्यप्रेमी सज्जनोंकी कृपासे हमारे न्याय, दर्शन व साहित्य तो केवल आंशिक रूपमें बाहर आये हैं । परंतु वैद्यक व ज्योतिष के ग्रंथ तो बाहर आये ही नहीं है। इन विषयोंकी कृति भी जैनाचार्यांकी बहुत महत्वपूर्ण हैं । परंतु उनके उद्धार की चिता जैन वैद्य य ज्योतिषियोंमें बिलकुल देखी नहीं जाती। धर्मवीर, दानवीर, जिनवाणीभूषण, विद्याभूषण स्व० सेठ रावजी सखाराम दोशी को प्रबल मनीषा था कि इस विभाग में कुछ कार्य होना चाहिए । इस विचार से उन्होंने इस ग्रंथ के उद्धार में अथ से इति तक प्रयत्न किया । जब उनको मालुम हुआ कि यह एक समग्र जैन वैद्यक-ग्रंथ मौजूद है तो उन्होने मैसूर गवर्नमेंट लायब्ररी से इस ग्रंथ की प्रतिलिपि कराकर मंगाई । तदनंतर मुझ से इसका संपादन व अनुवादन करने के लिए कहा । मुझे पहिले २ संकोच हुआ कि एक अनभ्यस्त विषय पर मैं कैसे हाथ डालूं । परंतु बादमें स्थिर किया कि जब जैन वैद्योंकी इस ओर उपेक्षा है तो एक दफे अपन इस पर प्रयत्न कर देखें । फिर मैने चरकादि ग्रंथोंकी रचना का अध्ययन किया जिस से मुझे प्रकृत ग्रंथ के संपादन व अनुवादन में विशेष दिक्कत नहीं हुई । कहीं अडचन हुई तो उसे मेरे विद्वान् मित्र संशोधकोंने दूर किया ।
धर्मवीरजी की लगन. इस ग्रंथ के उद्धार में सब से बडा हाथ श्री. धर्मवीर स्व० सेठ रावजी सखाराम दोशी का था यह हम पहिले बता चुके हैं। उन्होंने इस ग्रंथ की पहिली लिपि कराकर मंगाई। ग्रंथके अनुवादन व संपादन में प्रोत्साहित किया। इस ग्रंथके मुद्रण के लिए खास कल्याणकारक के नाम पर कल्याण मुद्रणालय को संस्थापित करने में पूर्ण सहयोग दिया । समय समय पर लगनेवाले संपादन साधनों को एकत्रित कर दिया । अनेक धर्मात्मा साहित्य-प्रेमियों से पत्र-व्यवहार कर इसके उद्धार में आर्थिक-सहयोग को भी कुछ अंशोंमें प्राप्त किया । उनकी बड़ी इच्छा थी कि यह ग्रंथ शीघ्र प्रकाश में आजावे । लोकमें अहिंसात्मक आयुर्वेद का प्रचार होने की बडी आवश्यकता है। वे चाहते थे कि इस ग्रंथ का प्रकाशन समारंभ बहुत ठाटवाट से किया जाय । वे गत दीपावली के पहिले जब बीमार पडे तब वैद्य
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