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इस ग्रंथका संपादन श्री. विद्यावाचस्पति पं. वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री के द्वारा हुआ है । श्री. शास्त्रीजी ने वैद्य न होते हुए भी जिस योग्यता से इस ग्रंथ का संपादन व अनुवादन किया है, वह श्लाघनीय है। उनको इस कार्य में उतनी ही सफलता मिली है, जितनी कि एक सुयोग्य वैद्य को मिल सकती है । उनके प्रति आयुर्वेद-संसार कृतज्ञ रहेगा।
__ ग्रंथ के अंतमें ग्रंथमें आए हुए वनौषाचे शब्दोंके अर्थ भिन्न २ भाषाओं में दिए गए हैं, जिससे हिंदी, मराठी व कानडी जाननेवाले पाठक भी इससे लाभ ले सकें। इससे सोनेमें सुगंध आगया है ।
आयुर्वेदीय विद्वान् प्रकृत ग्रंथ के योगोंसे लाभ उठायेंगे तो संपादक व प्रकाशक का श्रम सार्थक होगा । इति.
ता० १ - २ - १९४०
आपकागंगाधर गोपाल गुणे,
(वैद्यपंचानन, वैषचूडामणि) भूतपूर्व अध्यक्ष निखिल भारतीय आयुर्वेद महामंडल व विद्यापीठ, संपादक भिषाग्विलास, अध्यक्ष आयुर्वेदसेवासंघ, प्रिंसिपल आयुर्वेद
महाविद्यालय, संस्थापक आयुर्वेद फार्मसी लि. अहमदनगर.
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