Book Title: Jinsahastranamstotram
Author(s): Jinsenacharya, Pramila Jain
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan

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Page 12
________________ * १३ * द्वितीय अध्याय में - भुवनेश्वर (३) हिरण्यनाभि, हिरण्यगर्भ (७) अध्याय तृतीय - पृथ्वीमूर्ति, वायुमुर्ति (५) व्योममूर्ति सूर्यमूर्ति (७) सोममूर्ति, मंत्रमूर्ति (६) परब्रह्म (१०) पुरुषोत्तम (११) चौथा अध्याय - पद्मनाभि पद्मसंभूति (१) ह्रषीकेश (२) पिता-पितामा १०) र अमार, - गुहारी-माल (१ षष्ठ अध्याय - प्रणव (११) सप्तम अध्याय - मनु (४) श्रीनिवास (७) अष्टम अध्याय - पद्मगर्भ (३) दैव (६) नवम अध्याय - आदिदेव, पुराण पुरुष (२) जगन्नाथ (५) दशम अध्याय - (लक्ष्मीपति, कल्पवृक्ष) (१०) त्र्यंबक (१२) जगत्पाल (१४) आदि महत्त्वपूर्ण शब्द विद्यमान हैं। हिन्दू धर्म के विष्णु सहस्रनाम में जैनधर्म में वंदित भगवान् वृषभदेव तथा वर्धमान को स्मरण किया गया है वृषाही वृषभो विष्णुर्वृषपर्वा वृषोदरः । वर्धनो वर्धमानश्च विविक्त: श्रुतिसागरः ॥४१॥ उसमें तीर्थकर का नाम भी दिया गया है. ___मनोजवः तीर्थकरः वसुरेता वसुप्रदः" ॥८७॥ नामस्मरण का महत्त्व : महाकवि भगवज्जिनसेन स्वामी ने महापुराण में लिखा है कि इस नाम-स्तुति के द्वारा जो निर्मलता प्राप्त होती है उससे भावक की समस्त अभिलाषाएँ पूर्ण होती हैं, उसका पापोदय क्षय को प्राप्त होता है। उसकी स्मरण-शक्ति विशुद्ध होती हैपुमान् पूतस्मृतिर्भवेत् । उसके द्वारा स्तोता अभीष्टफलं लभेत् - स्तुतिकर्ता की कामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस स्तुति का अन्तिम फल मोक्ष का सुख है- फलं नैश्रयसं सुखम्। इसलिए आचार्य जिनसेन स्वामी ने लिखा है- "ततः सदेदं पुण्यार्थी पुमान् पठतु" पुण्यार्थी पुरुष सदा इस सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करें। निवेदन : यह मेरा हिन्दी टीका करने का प्रथम प्रयास है। न तो मैं व्याकरण जानती हूँ और न ही संस्कृत का मेरा गहरा अभ्यास है। मात्र भक्ति ही कारण बनी है। सीकर चातुर्मास में मैंने यह स्तोत्र श्रावकों को पढ़ाया था। पूज्य माताजी समीप ही बैठा करती थीं, तब माताजी ने मुझे प्रेरणा दी कि इसका हिन्दी अर्थ कर दो, सबके लिए उपयोगी होगा। तब मैंने साहस करके यह कार्य किया है। त्रुटियाँ अवश्य होंगी जो मेरी अपनी हैं। कृपया विज्ञजन सुधार कर वाचन करें। डॉ. प्रमिला जैन संघस्था

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