Book Title: Jal Yatradi Vidhi Author(s): Ratnashekharsuri Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 9
________________ ( 2 ) प्रतिमा लाववानी होय, ते स्थानक पण शुद्ध कराaj पी ते बन्ने जोए मांगवा बांधवा; तथा त्यां सांकी ने प्रभातियां प्रमुख देवराववां पढी संघमां तथा पोताना घरमांथी, डाह्या, उत्तम ने निदोंषी एवा पुरुषे दश दिवसोसुधि एकासणां करवां, ब्रह्मचर्य पाल, सचित्तनो परिहार करवो; मलीन व्यापार सजवा, भूमिशयन करयुं, तथा तेणें प्रसन्न चित्तथी रहे. पी जे देहरे प्रजुने स्थापवा होय, त्यां वकुं तथा क्रिया करनार पुरुषें, धूप ने दी - पक सहित, चित्तने स्थिर राखीने, तथा, बोट वस्त्र पेहेरीने, ऋण वखत साते स्मरण शुद्ध पाठथी जवां पढी एक रुपानी अथवा त्रांबानी वाटकीमां बोट पाणी जरीने सोनापाणी करवुं पडी सातनवकार जीने, "ॐ जिराजलापार्श्वनाथाय रक्षां कुरु कुरु स्वाहा” एवी रीतनो मंत्र सातवार जणीने, ते पाणीने मंत्रित कर; तथा तेने देहेरामां तथा घरमां sing. तथा उत्तम प्रकारनो धूप जखेववो. पनी तेज दिवसे, अथवा सात अथवा पांच दिवसो बाकी होय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 34 www.jainelibrary.orgPage Navigation
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