Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 67
________________ तथा रूपानाएं हाथमां लश्ने “जगत् गुरो नमः" इत्यादि आखु स्तोत्र नणी जवं. पडो नीचे प्रमाणे काव्य नणवं. जिनेंद्रजक्त्या जिननक्तिनाजां, येषां च पूजाबलिपुष्पधूपान् ॥ ग्रहा गता ये प्रतिकूलतां च, ते सानुकूला वरदा जवंतु ॥१॥ एवी रीतनुं काव्य नणीने, ते श्रीफल श्रादिक पाटलापर मुकवा. पछी ते पाटलो प्रजुनी पासे जमणी बाजुए स्थापवो. हवे दिग्पालपूजननो विधि कहेले. एक सवननो पाटलो प्रजुनी माबी बाजुए स्थापन करवो. पनी ब लघु श्रावकोए अनुक्रमे पाणी, चंदन, दीप, पुष्प, घंट, अने धूप लेश्ने रहे. पड़ी पहेलो ते पाटलापर जल गंटीने, चंदननां बांटा नाखवा पछी तेने पुष्पथी वधावीने दीपदर्शन कराव. पली धूप करीने घंट वगामवो. पली वृद्धश्रावके हाथमां कोरां बलिनी थाली सेइने, 'ॐ हैं। ॐ ह्रौं हुँ हा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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