Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 88
________________ (19) यश्चैवं कुरुते रदां, परमेष्टिपदैः सदा ॥ तस्य न स्याद् जयं व्याधि-राधिश्चापि शरीरजा। एवी रीतें वज्रपंजर स्तोत्र नण. एवी रीतें सकसीकरण कर्याबाद हाथे गेवासूत्रसहित मीढोळ बांधवो. __ पड़ी एक श्राव हाथमां केसरपुष्प विगेरे लेश्ने नीचे प्रमाणे दिग्बंधन करवं. आ था पूर्वस्यां' एम कहीने पूर्व दिशामा केसरनां बांटा नाखवा. पठी 'इदक्षिणस्यां' एम कहीने दक्षिण दिशामां तेना गंटा नाखवा. पली 'उज पश्चिमे' एम कहीने पश्चिम दिशामां तेना बांटा नाखवा. पड़ी नए ऐ उत्तरे' एम कहीने उत्तर दिशामां बांटा नाखवा. पली 'उऊ ऊर्ध्व' एम कहीने उंचे गंटा नाखवा. पली 'अं अः अधः' एम कहीने नीचे गंटा नाखवा. पली हाथमां गेवासूत्र लेश्ने, 'ॐ ह्री देवी सर्वोपजवाद बिंबं रद रद खाहा' एवी रीतनो मंत्र सातवार जणीने चारे दि. शाउँमा स्तंनोपर अथवा पीना चारे पाया उपरें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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