Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TIMATIADEMINS ॥ रत्नशेखरमूगिविरचित ॥ जलयात्रादिविधिः॥ छपावी प्रसिद्ध करनार श्रावक भीमसिंह माणेक. मंडवी, शाकगली मुंबइ. संवत १९७७ सने १९२१ आवृति बीजी SEACHERS Jein Education internatione Se For Personal and Private Use Only www.lainelibrary.org Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जिनाय नमः। रत्नशेखरसूरि विरचित । अथ श्री जलयात्रादिविधिः। प्रथम एकसोने आठ कुवानुं जल मेळवईं; तेमां गंगाजल मेळव. पनी एक त्रांवानो घडो लेवो; तेने धोश्ने तथा सुगंधिधूपथी वासित करीने, ते माहे केसरनो साथी करवो. तथा ते साथीयापर रुपानाj अने पंचरत्न मैलवां. पली दूध, दही, घी, साकर अने खांम तथा सोनां रुपानां फूल मंत्रीने तेमां नांखां. पठी तेमां एक सो ने आठ कुवानुंजल रेम. अने ते पण सधवा स्त्री तथा उत्तम श्रावक पासे रेमाव. पडी ते घमापर कोरं बुगडं ढांक. तेनापर वासदेप करवो. पली ते घमाना कंठे मीढोल, मरमासींगी अने गेवा. सूत्र (नाडु) बांधवू. पछी ते जलनी धारावमी देवी. हवे बलबाकुलानो विधि कहे जे. घलं, मग, चोळा, चणा, अमद, जुवार, जव, धोळा तथा राता सरसव टोपरां खारेक बदाम, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोपारी, द्राख, साकर, पस्ता, काजु, सवींग, एलची, नागरवेलनां पान, फुल, खांग शेरा;घीशेरा, ए सघळांने एकगं करवा. पनी एक त्रांबानो त्रांस लेवो, तेमां केसरनो साथीयो करवो. पडी उपरनी सघळी एकठी करेली वस्तुओ ते त्रांबाना त्रांसमां नरवी. पड़ी तेपर भूतबति मंत्रथी त्रणवार वासदेप मंत्रीने नाखवो. पछी ते त्रांसपर कोरं बुगडें ढांक. पछी ते थाळ अने पाणीना कळश आगळ दीवो तथा घूप करीने सात स्मरणो गणवां. पनी सधवा स्त्री पासे त्रांबाना चार कलशो धोई धूपीने साफ कराववा; अने तेमां केसरनो साथी करावीने, मांहीं सेोपारी, चोखा तथा रुपानाणुं मुकद्, पड़ी ते कलशोपर श्रीफल तथा चार पान मुकवां. पली तेपर चुंदमी ढांकवी. तथा सेठने कंठे मीढोल अने मरमाशींगी बांधवी. पड़ी वाजते गाजते शुभ वखते प्रजुने रथनी अं. दर पधराववा. पळी वाजते गाजते शेहेर बहार जदूं तथा त्यां जल स्थानकें वमनी नीचे, चोखी जग्या जोश्ने लींपवी; तथा ते जग्यापर चंदनी बांधवी; तथा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्यां सिंहासनपर चोवीशी तथा पंचतीर्थीनी मूर्ति पधराववी तथा त्यां स्नात्र पूजा जणवी. .. पली सधवा ( सुवासिनी ) स्त्रीपासे कुंज उपमावीने जलपूजा करवामाटे कुवापर जवं. त्यां प्रथम कुवाउपरे पूर्व अथवा उत्तर सन्मुख बेसीने, कुवाप. रवी जगो चोखा पाणीथी धोश्ने साफ करवी. पडी त्यां चोखानो साथीयो करीने, तेपर सोपारी, तथा लामवा नंग बे, अने सुबाली नंग बे मुकवां. पली नीचे प्रमाणे जलदेवीनी अष्टप्रकारी पूजा करवी. “ॐ ही क्ली छु” एवी रीतनो मंत्र नणीने, जल, चंदन, पुष्प, अक्षत, सोपारी नैवेद्य, दीप, अने "धूपं स. मर्पयामि स्वाहा” एम जणीने तेथी जलदेवीनु पू. जन करवू. पली पसलीमां पान खश्ने, उपर बदाम, चोखा, बाकुला, नालीएर तथा तेपर कंकुनो साथी करीने, नीचे प्रमाणे त्रणवार मंत्र जणवो."ॐाँ ही क्रॉ जलदेवि पूजाबलिं गृह्ण गृह्ण स्वाहा” एवी रीतनो मंत्र त्रणवार जणीने ते कुवामां पधरावq. पड़ी, अंकुश, मब, अने कछप एम त्रण प्रकारनी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) मुडा देखामवी. पडी "ॐ अमृते, अमृतोनवे, अवृतवर्षिणि, अमृतं स्रावय लावय, सें से क्ती ही ब्छु हुँ डाँडाही ही प्रावय प्रावय, छी जलदेवी देवान् अत्रागच आगन्छ स्वाहा” एवी रीतनो मंत्र त्रणवार जणीने उपर कहेली नणे मुसा देखामवी. पड़ी,हीरोदधिवयंभूश्च, सरे पद्ममहाउहे॥ सीता सीतोदका कुंडे, जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु॥१॥ गंगे च यमुने चैव, गोदावरि सरस्वति ॥ कावेरि नर्मदे सिंधो, जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु॥२॥ एवी रीतना श्लोको लणीने, ते कुवामांयी पाणी कहामीने कुंन जरवा. पड़ी ते कुंनो उपमावती द. खते, “ॐ ही षन, अजित, महावीर तीर्थकर परमदेवास्तस्याधिष्टायका देवाः शांति, तुष्टि, पुष्टि, रुद्धि, वृद्धि जयमंगलं कुरु कुरु पां पां वां व नमः खाहा" एवी रीतनो मंत्र जणवो. पड़ी ते कुंजो उ. पमावीने आवq. पठी ग्रहोनी फल नैवद्य विगेरे श्री अष्ट प्रकारे पूजा करवी. पडी पसलीमां पान, सोपारी, चोखा, पईसो, रुपानाएं, तथा नालीयेर ल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इने, तथा उना थने, 'जगत्गुरु' कहीने ते पाटला उपरे मुका. पडी ते पाटलो प्रतुनी सामे जमणी बाजुए मुकवो. पबी एवीज रीते दिग्पालोनो पाटलो पंण पूजवो. अने ते पाटलो पण ग्रहोनां पाटलानी जोडे मूकवो. पळी अष्ट मंगलनी पूजा करवी, पड़ी नीचे प्रमाणे आठ थोश्थी देववंदन कर. प्रथम इरियावही पमीकमवा, पनी चैत्यवंदन करी नमुत्थुणं कहे. पली शांतिनाथ आराधनार्थ करेमि काउस्सग्गंनो पाठ कहीने, तथा नोकार ग. णीने नीचे प्रमाणे थोर कहेवी. श्रीशांतिः श्रुतशांतिः प्रशांतिकः स्यादशांतमुपशांतिः॥ जयंतु सदा यस्य पदाः सुशांतिदाःसंतु शांतजने॥१॥ पनी द्वादशांग्याराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं, एवी रीतनो, तथा नमोऽईत्नो पाठ कहीने, नीचे प्रमाणे थोई कहेवी. सकलार्थ सिकिसाधन,बाजोपांगा सदा स्फुरदुपांगा॥ जवतादनुपहतमहा, तमोपहा हादशांगी वः ॥ पली शांतिदेवयाए करेमि कावस्प्लग्गं तथा नमो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हत्नो पाठ कहीने, नीचे प्रमाणे थोश कहेवी. श्रीचतुर्विधसंघस्य। शासनोन्नतिकारिणी ॥ शिवशांतिकरी भूयात्। श्रीमती शांतिदेवता ॥३॥ पड़ी शासनदेवता आराधनार्थ करेमि काउस्सगं, तया नमोऽर्हत्नो पाठ कहीने सा पाति शासनं जैनं। सद्यः प्रत्यूहनाशिनी। सानिप्रेतसमृद्ध्यर्थ। भूयात् शासनदेवता॥४॥ एवी रीतनी थोर कहेवी. पली देत्रदेवयाए करेमि काउस्सग्गं, तथा नमो. ऽर्हत्नो पाठ कहीने, नीचे प्रमाणे थोश कहेवी. यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य । साधुनिःसाध्यते क्रिया॥ सा क्षेत्रदेवता नित्यं । नूयान्नः सुखदायिनी ॥५॥ पली अनुतादेवीए करेमि काउस्सग्गं, तथा नमोऽर्हत्नो पाठ कहीने, नीचे प्रमाणे थोइ कहेवी. चतुर्जुजा तमिहर्णा। कमलाक्षी वरानना ॥ जद्रं करोतु संघस्या-लुप्ता तुरगवाहना ॥६॥ पनी समस्तवेयावच्चगराणं करेमि काउस्सग्गं,तथा नमोऽर्हत्नो पाठ कहीने नीचे प्रमाणे थोर कहेवी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संघत्रये गुरुगुणौघनिधौ सुवैयावृत्त्यादिकृत्यकरगैकनिबद्धकदाः ॥ ते शांतये सह जवंतु सुराः सुरीनिः । सदृष्टयो निखिल विघ्नविघातददाः ॥७॥ पठी जलदेवयाए करेमि काउस्सग्गं, तथा नमोऽहतनो पाठ जणीने नीचे प्रमाणे थोइ कहेवी. मकरासनसमासीना,कुलिशांकुशचक्रपासपाणिसया॥ आसामासापाला, विकिरतु दुरितानि वरुणो वः॥॥ पली नोकार कहीने, नमुत्थुणं तथा जयवीयराय कहेवा. पठी मोटी शांत कहेतां थकां अखंम धाराथी कुंज नरीने उपमाववा. हवे जिनचैत्यमां विंबना प्रवेशनो विधि कहे . निमित्तियापासे (ज्योतिषीपासे) अदत श्रीफल आदिक मुकीने शुज दिवस जोवरावत्रो. पड़ी ते शुजदिवसनी पेहेलाना दश, सात, पांच अथवा त्रण दिवप्त पहेला घेर तथा बहार जघन्यथी एकसो हाथ सुधिनी जमीन शुद्ध करवी; अर्थात् त्यां पडेलां कलेवर आदिक अशुचि पदार्थोंने दूर करवा. पनी जे स्थानकेंथी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 2 ) प्रतिमा लाववानी होय, ते स्थानक पण शुद्ध कराaj पी ते बन्ने जोए मांगवा बांधवा; तथा त्यां सांकी ने प्रभातियां प्रमुख देवराववां पढी संघमां तथा पोताना घरमांथी, डाह्या, उत्तम ने निदोंषी एवा पुरुषे दश दिवसोसुधि एकासणां करवां, ब्रह्मचर्य पाल, सचित्तनो परिहार करवो; मलीन व्यापार सजवा, भूमिशयन करयुं, तथा तेणें प्रसन्न चित्तथी रहे. पी जे देहरे प्रजुने स्थापवा होय, त्यां वकुं तथा क्रिया करनार पुरुषें, धूप ने दी - पक सहित, चित्तने स्थिर राखीने, तथा, बोट वस्त्र पेहेरीने, ऋण वखत साते स्मरण शुद्ध पाठथी जवां पढी एक रुपानी अथवा त्रांबानी वाटकीमां बोट पाणी जरीने सोनापाणी करवुं पडी सातनवकार जीने, "ॐ जिराजलापार्श्वनाथाय रक्षां कुरु कुरु स्वाहा” एवी रीतनो मंत्र सातवार जणीने, ते पाणीने मंत्रित कर; तथा तेने देहेरामां तथा घरमां sing. तथा उत्तम प्रकारनो धूप जखेववो. पनी तेज दिवसे, अथवा सात अथवा पांच दिवसो बाकी होय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 34 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्यारे शुज दिवस जोश्ने तथा कुंनस्थापना चक्र जोश्ने, जे जगोए बिंब स्थापवानुं होय, त्यां जमणी दिशाए, ब्रह्मचारी अथवा ब्राह्मणपासे चार कोरां सरावलामांहीं जवारा ववरावा. वळी त्यां सधवा स्त्रीपासे सवाशेर चोखानो स्वस्तिक कराववो तथा ते स्वस्तिकना चारे खुणापर जवारानां पात्र मुकाववां, पली काळा माघ विनानो लालरंगनो कुंन लश् तेने कंठे गेवासूत्र बांधवं. तथा त्यां मरमाशींगी अने मी. ढोल पण बांधवां. पनी ते कुंनमां चंदननो साथीग करवो. पड़ी तेनी चारे बाजुए “ॐ ह्री श्री सर्वोपअवं नाशय नाशय स्वाहा” एवी रीतनो मंत्र आलेखवो. तथा त्यां एक रुपानो सिको मुकवो. तथा माणेक, मोती, प्रवालुं, त्रांचं अने सोनुं एवी रीते पंचरत्ननी पोटली एक मुकवी. पनी उत्तम एवी स. धवा स्त्रीपासे ते कुंनथी बमणा एवा वासणमा पवित्र पाणी मगावq; पठी एक श्रावके कुंजना मुखपर कलश लश्ने रहे. पनी ते उपर पाणी नांखq. तथा ते अखंग धारथी रेमवं. एवी रीते ते कुंजने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) पाणीथी नरवो. पड़ी ते लीलां अथवा पीळां वस्त्रथी ढांकवो. तथा तेने पुष्पोनी माला पहेराववी. मुखपर श्रीफल मुकवू. पछी 'ॐ ह्री ः ः वः स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र सातवार जणीने, तथा श्वासने स्थिर राखीने, ते कुंचने स्वस्तिक पर स्थापवो. पडी ज्यां बिंब होय, त्यां बन्ने जगोए कुंजस्थापन करवं; तथा ते कुंजस्थापननी जगोए एक हाथनी दीवट करीने, चोवीश पहोरसुधि अखंग दीवो राखवो. त्रणे काल त्यां धूप करवो, वळी त्यां बिलामी प्रमुख हिंसक प्राणीने आववा देवू नहीं; तथा रजस्खला प्रमुख मलीन स्त्रीनी त्यां दृष्टि पमवा देवी नहीं. पली ते कुंज आगळे त्रण टंक हमेशां सुहागण स्त्री पासे गहुली कढाववी. तथा बन्ने वखत हमेशां सु. हागण स्त्रीपासे धवलमंगल गवरावां. गानारी स्त्रीउने तांबोल आदिकनी परजावना देवी. त्यां श्रावक तथा श्राविकाए नरकादिकनां दुःख गर्जित, तथा मुनिउँनां उपसर्गगर्जित, आलोयणानां स्तवन आदिक गावां, पण राजिमतीना विलाप आदिकना, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अने अनित्य तथा अशरण जावनानांगीतोगावां नही. ___ हवे जे घरे ते स्थापनबिंब होय, त्यां दश दिवसो सुधि विधिपूर्वक स्नात्र कर. ___ स्नात्रिया पुरुषोए “ ॐ ही अमृते अमृतोऽनवे अमृतवर्षिणि अमृतं स्रावय स्रावय स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र सात वखत जणीने जलशुद्धि करवी. पली 'ॐ ही यदाधिपतये नमः' एवी रीतनो मंत्र सातवखत नणीने दातण करवं. पली 'ॐ ह्री श्री क्ली कामदेवाधिपतिर्ममानीप्सितं पूरय पूरय स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र सात वखत जणीने मुख प्रदालन करवू. पली 'ॐ ही अमले विमलोनवे सर्व तीर्थजलोपमे पापां वां वां अशुचिः शुचिर्नवामि स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र सातवार जणीने, हाथेथी सर्व अंगने स्पर्श करीने, स्नात्र करवं. पली ॐ ह्री ॐ को नमः' एवी रीतना मंत्रथी सातवार वस्त्र मंत्रीने पहेर, पनी 'ॐ नमो आँ ही क्ली अर्हते नमः एवी रीतनो मंत्र सातवार नणीने तिलक करवू.पी. 'ॐ है। अवतर अवतर सोमे सोमे कुरु कुरु वद्यु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) तीवल्गु सुमणे सोमणसें महुमहुरे ॐ कवलीकं दः स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र सातवार जणीने, गेवासूत्र तथा मिंढोल आदिक मंत्रीने पोताने हाथे तथा स्नात्रीने हाथे बांधे; तथा रुद्धिवृद्धि प्रमुख कुंजने एकसो ने वार मंत्रीने बांध. पठी 'ॐ ॥ " भूर्भुवे स्वाध्याय स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र जणीने वास, पुष्पादिकथी भूमिशोधन करवुं पढीक्षीरोदधि स्वयंभूश्च, सरे पद्ममहा सीतासीतोदकाकुंडे, जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥ २ ॥ गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ॥ कावेरि नर्मदे सिंधो, जलेऽस्मिन् संन्निधिं कुरु ॥ २ ॥ तथा "अमृते" इत्यादि सातवार जणेला मंत्रयी स्नपनीय जलनी शुद्धि करवी. अर्थात् तेवी रीतना मंत्रथी कळशने धोइ, धूपीने तेमां जळ जरवुं. पबी, "ॐ हूँ। श्री परम परमात्मने, अनंतानंतज्ञानसक्ताय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते जिनेंद्राय, जलं चंदनं, पुष्पं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, दीपं, धूपं यजामहे स्वादा" एवी रीतनो मंत्र जणीने अष्टप्रकारी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only PRODE Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) पूजा करवी, तथा एवी रीतें दश दिवसो सुधि शुरू स्नात्र करवु. वळी ते दशे दिवसोमां को साथे क्रोध करवो नहीं, क्लेश करवो नहीं, अपशब्दो बोलवा नहीं, तथा घेर आवेल याचक निकुक विगेरेने निराश करवा नहीं; तेने यथाशक्ति दान देश्ने खुशी करवा, एम करतां मुहूर्तने ज्यारे त्रण दिवसो बाकी रहे, त्यारे विशेष प्रकारे धूप करवो, रात्रि जागरण करवू तथा ऋण दिवसो बाकी रहे त्यारे रात्रिए एक पोहोर पड़ी देहेरांना रंगमंझपमा नैवेद्य मुकQ. तेम प्रजुने बेसाड्या पली पण एवीज रीतें त्रण दिवसो सुधि करवं. हवे ते नैवेद्यनो विधि कहे बे. लापशी, पुमला, जात, दही, खीर, खांम, वमां, कंकु, हलदर, तोकापरिसोल, पाननी बीमी, सोपारी तथा कणकनी दीवमी नंग सोल चोरस, तेमां वाट नंग चोसठ मुकदी. वळी चोळानां, मगनां तथा चणाना बाकुला मुकवा. एवी रीतें पेहेलानां तथा पलीना त्रण दिवसोसुधि रंगमंम्पमा मुक. दरेक दिवसें नैवेद्यनां वासणो नवां अने कोरां भाटीनां मुकवा. ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) सघली नैवेद्यनी जणसो पंदर पात्रोमां मुकवी. वळी ते सघळां पात्रोमा एकेकी दीवमी मुकवी. एक पात्रमा चोखं पाणी आजुषो देइ मुक. धूप उखेववो. वळी ते दरेक पात्रो मेलती वखते, “ॐ ग्रहाचंद्रसूर्यांगारकबुधबृहस्पतिशुक्रशनैश्चरराहुकेतुसहिताः सलोकपालाः सोमयमकुबेरवासवादित्यस्कंद विनायकोपेता ये चान्येपि ग्रामनगरक्षेत्रदेवता ये ते सर्वे प्रीयंतां प्रीयंतां स्वाहा” एवी रीतनो मंत्र नणवो. वळी ते वखते कंकु अने हलदरनुं पाणी करीने, सुहागण स्त्रीपासे बहार छंटाव. तथा चारे बाजु पु. प्पोथी वधावां; तथा पंचरंगी गेवासूत्रना एकवीश तातणा लेश्ने, “ॐ ह्री देवी सर्वोपत्रवान् रद रद स्वाहा” एवीरीतनो मंत्र सातवार नणीने गनारा बेवल उंचुं तोडे वींटq, थांने अथवा चारपाये बांधq. पनी मुहूर्तने पहेले दिवसे लापशी, सर्व बलवाकुला, करंबो, तथा पाणी, एवी रीतें चारे वस्तुके कोरां चार सरावलांमां नरवी. पठी तेपर वासदेप नाखवो, तथा तेने धूप देवो, तथा पड़ी ते द. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५) रेक पात्र क्रिया करनारे हाथमां लश्ने, “ॐ जुवणवइवाणव्यंतर, जोश्सवासी विमाणवासी य । जे के पुट्ट देवा, ते सवे उवसमंतु मम स्वाहा” ॥१॥ ॐ संतिसंतिकरं, संतिणं सवनया। संति थुणामि जिणं, संति विएन मे रासानंदियं स्वाहा ॥२॥ ॐ रोगजलजलण विसहर, चोरारिमरंदगयरणनयाइं। पास जिण नामसंकि-तणेणं पसमंति सवाई॥३॥ एवी रीतनी गाथा कहीने, घरमां तथा देहेरा आगळ आकाशे ते चारे पात्रो मूकवां, पढी त्यां धूप करीने नीचे उतरवू. पनी ज्यां स्थापनीय बिंब होय त्यां रात्रिजागरण करवू. वळी तेज रात्रिए एक पोहोर गया पठी, शुद्ध अदरथी उवसग्गहरंनी एक नोकरवाली देवगृहना मध्यनागमा उनी धूपपूर्वक गणवी. पडी मध्य रात्रिवखते धूमरहित अंगारानुं पात्र जरी बागासे मुकवू तथा तेमां एक घमीसुधि चाले एटलो दशांगधूप नाखवो. “ तथा सर्व देवदेवता मने अनुकूल थाजो.” एम कहीने घरमांथी श्राव. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनी मुहूर्तना दिवसनी प्रजातमा नवे ग्रहोनी, तथा दश दिग्पालोनी पूजा करवी. तेमां तेश्रोनुं मंमल आलेख. त्यां चतुर्विध संघने एकठो करवो. पली उत्तम ब्रह्मचारी पुरुचे मंत्रपूर्वक स्नान करी, तथा शुरू नवां अने उत्तम वस्त्रो पेहेरीने; श्री जिनमंदिरमांथी अंग अवयवोए करीने संपूर्ण एवी पंचतीर्थी प्रजुनी प्रतिमा लाववी. पछी एक शुरु थाल लेवो, तथा तेमां केसर चंदननो साथीयो करवो, तेनी उपर अखंग एवा सवाशेर चोखानो साथीयो करवो; तथा ते उपरे एक सोपारी मुकवी. पड़ी ते थालमा ते पंचतीर्थीनी प्रतिमा पधराववी. पडी ते थाल हाथमां लश्ने जत्तम ब्रह्मचारी पुरुषे उभा रहे. पड़ी एक बीजा नक्त माणसे एक थालमां चोखा शेर तेरनुं अख्याणुं लश, तथा तेमा रुपानाणुं मुकीने ते थाल काली त्यां जिनबिंब आगळ उना रहे. पठी एक त्रीजा पुरुषे एक थालमां चार हांसनो माणिक्य दीवो खश्ने बिंबपासे जमणी बाजुए जना रहे. ते दि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वामा एकसाने थाठ तारनी चार दीवटो करवी, तथा तेमां संपूर्ण घी जर अने मांहे रुपानाणुं मुक. तथा एक चोथो पुरुष एक थालमां अखंग चोखाथी पारखेला अष्टमंगलने लश्ने बिंब सन्मुख उनो रहे, ते अष्टमंगलने वास पुष्प विगेरेथी पूजवां. पड़ी एक पांचमा पुरुषे एक थालमां अंगवुणा लश्ने सन्मुख उजा रहे, ते अंगबुणांउपर केसरनो नंदावर्त साथी करवो. पठी बे सौजाग्यवंती, तथा पुत्रोवाली स्त्री सोल शणगार सजीने बिंबने जमणे तथा माबे परखे बे वरघमा (नानाघमुया) मस्तकें लश्ने उन्ने. ते घमामां चोखा पाली एक, तथा सात सोपारी नाखवी. तथा ते उपर श्रीफल एकेक मुकवू; अने ते घमाउँपर लीडं अथवा कसुंबी कोरूं वस्त्र ढांक, अने तेने कंठे गेवासूत्र तथा पुष्पनी माला नांखवी. पठी श्री संघने तांबूल, श्रीफल, मीगर, प्रेमा प्रमुखनी यथाशक्ति प्रनावना आपवी. पली चतुर्विध संघने अगामी करीने, तथा पंचशब्दनां वाजित्रो वगमावीने, तथा पाछळ सुहागण स्त्रि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ अनेक धवलमंगल गाते बते, तथा अगामी थनेक जातनुं नाटक होते बते, तथा अनेक शणगारेखा हाथी घोमा विगेरे चालते ते, तथा सेंकको गमे सांबेला चालते ते, तथा याचक लोकोने दान देते बते, तथा अपवाद अने अपशब्द तजते बते, तथा एवीरीतें जैनशासननी उन्नति करते बते, ज्यां स्थापनाबिंब होय त्यां ववं. ते वखते ते घरनो धणी सुहागण स्त्रीपासे श्रीफल अख्याएं विगेरे धरावे, तथा सोना रुपानां फुल अने अदतथी ते स्त्री वधावे, तथा जिनबिंबने रुपानाणांथी बुंडणुं करीने ते याचकोने आपे, पडी संघसहित घरमां थावे; तथा घरना घारपर कंकुना हाथा (थापा) आपे, तथा नवीन बिंब आगळ पांचशेर चोखानो साथीयो करे, उपर सोपारी तथा चोखंगो रुपीयो मूके; पली सकल संघ त्रण खमासणां देने प्रजुने वांदे. पड़ी त्यां स्नात्र नणावी देववंदन करे. पड़ी ते घरनो स्वामी तथा प्रतिमा सेवा आवनार श्रावक था. पसबापसमा पहेरामणी करे तथा केसरनां गंटणां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए) करे, पढी सघळा संघने तंबोल आदिकनी परनाबना थापे, पनी पूर्वे त्यां थापेला कुंचने पूजीने, सुवर्णपत्रथी मढेवू श्रीफल तेपर मुकीने, सुहागण स्त्री ते कुंन मस्तके लश्ने अगामी चाले. पनी घरधणी चंडस्वर वहेते बते, श्वासने कुंचक करीने प्रतिमाने उपाडे, ते वखते ते प्रतिमा लेनार पण श्वासने कुंजक करीने, बे हाथें थाल पकमीने उजो रहे; ते थालमा प्रजुने पधरावे. तथा जे प्रतिमा साथेसाव्या होय ते प्रतिमा पण तेनी जोडे राखे. पड़ी घरधणी तेने "मनोरथ सिह फलजो” एवी आशिष थापे, पडी प्रतिमा लेनार “ॐ नमो ही श्रीजी. राउलापार्श्वनाथाय नमः” एम सातवार मंत्र जणीने जो चंद्रस्वर वहेतो होय तो पहेलां चार पगला माबां उपाडे, अने जो सूर्यस्वर वहेतो होय, तो पेहे. लां पांच जमणां पगला उपाडे. पठी अष्टमंगलिकनो थाल, तेनी आगळ मंगळकुंन, तेनी आगळ माणिक्य दीवो, धूपधाणुं, तेनी आगळ आरीसो धरनार घंटा वगामनार, तथा कालर वगामनार, जलपात्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) धरनार, पुष्पचंगेरी धरनार, कोरां बखि परमार, त. था तेनी आगळ संघ, पडी वळी धूप धरनार चाले, आगळ पंच शब्द वाजां, निशान प्रमुख पण चाले. पाबळ सुहागण स्त्रीयो अनेक प्रकारनां धवलमंगल गाय. मार्गमां 'ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रियंतां प्रियंतां' विगेरे मंत्रो बोलीने कोरां बलिबाकुला उमामवा. वळी ते वखते बलिबाकुला उमामतां थकां नीचे प्रमाणे दश दिग्पालोने बोलाववानो मंत्र पण नणवो. ___ॐ नमो इंसाय, ॐ नमो अग्नये, ॐ नमो यमाय, ॐ नमो नैझताय, ॐ नमो वरुणाय, ॐ नमो वायव्याय, ॐ नमः कुबेराय, ॐ नम श्शानाय, ॐ नमो ब्रह्मणे, ॐ नमो नागाय. समस्त क्षेत्रदेवदेवाय, सायुधाय, सपरिकराय, श्रीजिनबिंबप्रवेशमहोत्सवे आगजंतु स्वाहा' एवी रीतनो दिग्पालमंत्र जणीने बलबाकुला उमामवा. ते कोरा बलबाकुलामां गहुँ, चणा, ज्वार, मग, चोला, जव, अमद, अथवा सरसव, द्राख, बदाम, विगेरे मेवा, तथा टोपराना नाना नाना टुकमा एकठा करीने उबालवा. पाणीनो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छंटकाव देतो जाबो. वचे वचे जिनबिंबपरथी बुडणां करीने पैसा जैनयाचकोने देवा. ___ एवी रीतें मोटा महोत्सवपूर्वक ज्यारे पोताना घरनी नजदीक आवे, त्यारे पूर्ण जरेला कलशवाली बे अथवा चार सुहागण स्त्री, अथवा कुंवारी कन्यायो सामें आवे. वली को उत्तम पुरुष आगलथी आवीने घरना हारपर कंकुना बांटा नाखे, तथा तोरण बांधे. पली घरनो धणी श्रीफल तथा थालमां अख्याएं जरीने सामो आवी प्रतिमासन्मुख उन्ने; तथा ते धरीने प्रतिमाने नमस्कार करे; तथा 'अविधि था. शातना थइ होय ते मिठामि मुक्कम' एवो पाउनणे. वली त्यां बाकी रहेला बलिबाकुला उगले. पली घरधणी जरा सन्मुख आवी 'स्वामि पधारो' एम बोले. ___पनी ज्यारे प्रतिमा घरनां तोरण नजदीक आवे; त्यारे सधवा स्त्री; धुंदमी ओढीने हर्षनरी पोखj करे, ते पोखणांनो सामान नीचे मुजब बनतांसुधी रुपानो होवो जोश्ए. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) बाजोउ, (लीला रेशमथी ढांकेलो), सरीया, इ. मिपमी, करवमों, धुसरं, त्राक; कंकुनी वाटकी, मू. सळ, रवाश्यो, पुष्प, पत्र विगेरेश्री प्रजु, पोखj करे. ते वखते घरधणी देवव्यनी वृद्धि करे. पडी ते प्रतिमाने पगेथी संपुट चांपीने घरमांहें लावे. त्यां जो मुहर्त्तने वखत होय तो खीली विनाना बाजोपर पधरावे. पनी मुहर्तवखते प्रतिमाजीने रंगमंम्पमाले उनो रहे. पठी त्यां जे जगोए प्रतिमाजी पधराववां होय, त्यां चंदनना बांटा नांखीने, कुंजारना चकनी माटी, वृषजना शींगमांनी माटी, हाथीना दांतनी माटी, रुपानो काचबो, मूलसहित मान, धोला सरसव, पुर्वा, जव, श्रीखंम, तथा तंमुल मुकवां. वळी तेनी वच्चे चोखंमो रुपीयो एक मुकवो. पड़ी तेपर सोनानो पाटलो मुकवो. पनी सुखम, केसर, कस्तू. री, बरास, अंबर, अगर, मारिच, कंकोल, तथा सो. नारुपाना वर्गने मेळवी, घसीने एक सोनां अथवा रुपानां कचोलामा उतारवी. अने तेथी ते पाटला. पर दक्षिणावर्त उत्तम आकारनो स्वतिक करवो. प. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) बी ते स्वतिकनी चारे पांखमी पर एक श्वासे नीचे प्रमाणे कूर्ममंत जणवो. “ ॐ कूर्म निजपृष्ठे जिनबिंबं धारय धारय स्वाहा " पढी गुरुए नीचे प्रमाणे मंत्रथी दिग्बंधन कर. "ॐ ह्री वी सर्वोपद्रवाबिंबं रक्ष रक्ष स्वाहा” एवी रीतना मंत्री दि. बंधन कर. पी केसर, कपूर तथा वासक्षेप करीने शुभ मुहूर्ते स्वरोदय साधीने “ॐ ह्री जी राजलापार्श्वनाथाय नमः " एवी रीतनो मंत्र सातवार कहीने तथा सात नोकार जीने, “ ॐ हूँ। जिराजला पार्श्वनाथाय रक्षां कुरु कुरु स्वाहा” एवी रीतनो मंत्र प्रजुनी पीठे जींतपर लखवो. पनी धूपसहित “ ॐ पुष्यादं पुष्यादं प्रीयंतां प्रीयंतां" एवी रीतनो उच्चार कर्याबाद “ ॐ कूर्म निजपृष्ठे जिनबिंबं धारय धारय स्वाहा " एवी रीतनो मंत्र जणीने, तथा श्वासने कुंजक करीने, श्री जिनबिंबनुं स्थापन करवुं. तथा त्यां माभ, हलदर, वरियाली, वालो, मोथ, पीपरामूळ, लविंग, मरिच, कंकोल, जायफल, जायंत्री, नखला, सुखमनो जुको, विगेरे पण स्थापवा. For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) पढी प्रजुना जमणा पासापर मंगलकुंन स्थापवो. पी एकसोने आठ तारनी दीवट करीने, गायना घीथी संपूर्ण नरेला पात्रमां दीपक करवो, ते दीवामां चोखको रुपीयो एक नांखवो. पढी पूर्बे करेलो माणिक्य दीपक पण प्रगटावीने प्रजुपासे मुकवो. तथा ते दीवो चोवीश पोहोरसुधी अखंम राखवो. पढी चित्रे वरघमा प्रमुखागळ मुकवा. पढी एक लाख अखं चोखानो प्रभु आगळ स्वस्तिक करवो. पछी सवाशेर तथा पांचशेरनो माणीक लानु प्रभु पासे मुकवो, ते लाऊमां रुपानाएं मेलवुं पढी त्रण खमासणां देईने नमस्कार करवो. पछी ते जिनमंदिरना करनार सुतार, कडीया, सलाट विगेरेने ईनाम देवु. पढी उत्तम स्त्रिये पवित्रपणे बनावेलां खीर, लापसी, गल्यामोळा पुमला, वमा, कूर, करंबो, चणानां, मगनां, चोळानां, अडदनां, घनां, जवारनां, तथा जवना बाकुला विगेरे कुल मळी एकवीश शेर तैयार कर, पढी ते सघळु एक मोटी कथरोटमां नरवुं, तथा ते कथरोटने आखली आपर स्थापन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) करवी. पनी ते नैवेद्य तथा बलकाकुलापर गायन घी शेर सवा, तथा खांमर्नु बुरुं शेर सवा नांखq. वळी तेपर सफेद अने रातांकणेरनी तथा पचरंगी माळा पढेराववी.पछी भूतबलिमंत्रथीत्रणवार मूठी जरीने तेपर वासदेप करवो. पछी ते सघळाने नीचेना मंत्रथी मंत्रित करवा. ॐ नमो अरिहंताणं, ॐ नमः सिद्धाणं, ॐ नमो थायरियाणं, ॐ नमो उवसायाणं, ॐ नमो लोए सव्वसाहणं, ॐ नमो आगासगामिणं, ॐ नमोचा. रणाश्ल द्विणं, जोश्मे किंनर; किंपुरिस, महोरग, मरुल, सिद्ध, गंधर्व, जख्खरख्खस्स सारणी, माश्षी भूयपीयपिसाय सारणीमाएणी पनीरजो जिणघरशिवासिणो निय निय निलयठिया, पवीयारिणों समाहिया, असन्नहिया ते सव्वे इम विलेपन, फूल भूष, फल पइव सणाहवली पमिछता, तुहिकराजमंतु, संतीकरा नवंतु, सुत्थं जणं कुणंतु, सव्वजिणावसन्निहाणप्पनावउ, पसन्नजावतपेण सवत्थ रकं कुणंतु, सव्वत्य दुरियाणि नासंतु, सव्वालियभुवस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) मंतु, संति, तुष्टि पुति सिव सुत्थयणकारिणो जवंतु स्वाहा” एवी रीतनो मंत्र जणीने ते बलिदानने मं. त्रित करवू. पड़ी ते बाकुलाना बे नाग करीने ए. कांत पवित्र स्थानके मुकवां; पठी तेमांथी एक नाग लईने चैत्यना आगळना जागमा जर्बु, तथा जिनपीथी उंचे स्थानके उजवू. ते वखते मांजवाळा, तथा इंद्रिहीन विनानां सर्वसंपूर्ण अंगवाळा खंमि. तअंगवगरना बार स्नात्रिया पुरुषोने साथे लेवा, तेमांथी जेनां मस्तकपर चोटलो होय, तेए ते चोटखो उखेमीने खुखो मुकवो. पठी ते बलिबाकु. सानो एक खोबो गरीने पूर्व सन्मुख उजवं. एक जणे हाथमां केसरनी कचोळी लव उना रहेवू, एके पुष्प चंगेरी लेई जना रहेg, एके थाळी देश उजा रदेवू, एके धूप लेइ जना रहे, एके दीपक लेश उना रहे, एके चामर बेश् उना रहे, एके घंट से उना रहे, एके पाणी लेव उना रहेवू, तथा एके परिवारसहित पूर्व सन्मुख उना रहे, पछी जेणे बक्षिबाकुलान। पसली नरेली होय, तेवा श्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) वके, नीचे प्रमाणे दशदिग्पालो, थाह्वाहन करवू. अने बीजाए पण ते प्रमाणे बोलवू. तेमां प्रथम अनुं आह्वाहन नीचे प्रमाणे करवू. "ॐ नमो इंसाय, सायुधाय, सवाहनाय, सपरिकराय, अमुकनगरे, श्रीजिनबिंबप्रवेशमहोत्सवे थागह आगड स्वाहा” एवी रीतनो मंत्र जणीने बाकुला उमामवा. ते मंत्र बोलाती वखते बाजीत्रो वगामवां नहीं, पण वाकुला उमामतां थकां ते सर्वे वगामवां. पली अग्निखुणातरफ उत्नीने नीचे प्रमाणे आहाहन करवू. 'ॐ नमो अग्नये' इत्यादि सर्व पाठ उपर प्रमाणे कहेवो. पड़ी 'ॐ नमो यमाय' 'ॐ नमो नैश्त्याय' 'ॐ नमो वरुणाय,' 'ॐ नमो वायवे, 'ॐ नमो धनदाय,' 'ॐ नमो शानाय:' 'ॐ नमो ब्रह्मणे;' तथा 'ॐ नमो नागाय,' एवी रीतनां दरेकप्रत्ये उपर प्रमाणे पाठ जणीने बाकुला उबालवा, तथा ते वखते वाजीत्रो वगामवां. हवे बिंबप्रवेशने दिवसे प्रजातमां शिवननां पादबापर यक्षकर्दमथी यंत्रमा कहेला विधिपूर्वक नव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) होनुं मंगल आलेखवुं. तेपर लाल रंगनुं वस्त्र ढांकवुं. वली ते एकेक मंगल पर ऋणी शुद्ध एकेकुं पान मुकवुं, तेपर चोखानी ढगली करवी, तेपर राता रंगनी सोपारी मुकवी, तेपर त्रांबानाएं मुकबुं, एवी रीते ते नवे खंमपर चमाववां, पछी धूप करवो, पबी श्रीफल, मोदक तथा खाजलुं विगेरे नैवेद्य मुकवां, पढी पुष्प, वास चोखा अने पाणी हाथमां लेइने, 'ॐ श्रादित्य, सोम, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनैश्वर राहु केतवो जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठतु स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र त्रणवार जणीने ते पुष्प विगेरे चमावां पढी ते पाटलो जमणी बाजुए स्थापवो, पछी एक बीजा शिवननां पाटलापर यक्षकर्दमथी दिग्पालोने आलेखवा, तथा तेपर पीळा रंगनुं वस्त्र ढांक. पबी ते दशे मंगलोपर पान, चोखानी ढगखी, सफेद सोपारी, तथा त्रांबानाएं मुकवु, पछी धूप करवो, पढी फुल, वास, चोखा, पाणी विगेरे हाथमां लेइने, 'ॐ इंद्राग्नियम नैरुत वरुणसमीरण कुबेरेशानब्रह्मनागा जिनपतिपुरतोऽव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए) तिछंतु स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र त्रण वार जणीने ते चमाववां, पढी ते पाटलो डाबी बाजुए स्थापवो. ते बन्ने पाटलानां मध्यनागमा रहीने, हाथ जोमीने, 'ॐ जो इंसादयो दिग्पाला श्रादित्यादयो प्रहाश्व खखदिशि स्थिता विघ्नप्रशांतिकरा जवंतु स्वाहा' एवी रीतनो प्रार्थना मंत्र जणवो. एवी रीते दिपालनी स्थापना कर्याबाद प्रजुने पधरावे, पठी वाकुला उठाळे. (वळी कोइक आचार्यना मत. प्रमाणे बाकुला उडाळीने प्रजुने पधराववायूँ कहे. झुंडे) पडी बाउ मुहुपत्ति लेईने देव वांदे, पली थाचार्य उपाध्याय अथवा गीतार्थ, गुरुए दीधेली वर्धमान विद्याथी सघळी करणी करीने; मस्तकपर वासदेप करे, तथा विधिपूर्वक प्रवृत्ति पाठ जणे, अने जो तेनो योग म मळे, तो कोई उत्तम ब्रह्मचारी श्रा. वक त्रण नोकार गणी वासदेप करे, पली पांच शेर सुखमी श्रागळ मुफवी. पली गुरु उभा थईने शां. तिकर तथा मोटी शांति कहे, पली 'बिंब स्थापमकीय गृहाधिपतये सौख्यं कुरु कुरु खाहा' एवी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) रीतनो मंत्र जणीने कुंकुमना छांटा माखवा. पठी विंब स्थापन करनार गृहस्थे एक मोकरवाली 'संतिकरं 'नी गणवी. जो ते वखते वक्त न मले तो संध्याकाले गणे, अथवा वेली गणी लीए, तोपण चाले. पबी जलजात्रा महोत्सवथी जे पाणी शुभ दिवसे लाच्या होय. तेमां पंचामृत तथा गंगाजल मेलवीने स्नात्र करे. तथा आरती ने मंगलदीवो पण विधिपूर्वक करे. पछी पांच जातनी सुखमी, लापसी, सोपारी नंग एकसोने आठ; श्रीफल नंग नव, तथा उत्तम जातिनां फल नंग चोवीस एवी रीते नैवेद्य धर. पी श्री सिद्धचक्रजीनी पूजा करवी. पढी श्री गुरुनी नव अंगे पूजा करवी. पढी यथाशक्ति श्रीसंघने परभावना पेहेरामणी विगेरे करतुं ने जो ते शक्ति न होय तो खात्री वार्डनेज परामणी करे. पी गुरु उदान्त (उंचा) अने मोटा शब्दयी - जितशांति स्तवन जणे; पछी बीजा श्रावक श्राविकास्नान करी पवित्र थने, प्रभुने पूजे, तथा यथा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) शक्ति प्रजु, मुख जोश व्यनी नेट करे. तेवार पछी गुरु, संघसहित त्रण खमासणां दे इरियावही पमिकमे, तथा चार थोइ कहीने, देव वांदे,जे प्रजुने घरमा थाप्या होय, तेनीज थोश कहे, पछी बेसीने 'नमुत्थुण'श्री मामीने जयवीयरायपर्यंत कहे, तेमां स्तवननी जगोए मोटी शांति कहे.पछी गुरु उना थश्ने, क्षेत्रदेवता आराधनार्थ करेमिकाउस्सग्गं, अनत्थ एक लोगसनो सागरवर गंभीरा सुधि काउसम करीने:यस्याः देत्रं समाश्रित्य, साधुनिः साध्यते क्रिया॥ सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥१॥ एवी रीतनी थोश कहे. पड़ी आखो नवकार कहीने 'ॐ नुवनदेवीयाए करेमि कानस्सग्गं, अनत्य, लोगसनो सागरवरगंजीरा सुधिनो काउसग्ग करीने, ज्ञानादिगुणयुतानां, नित्यं स्वाध्यायसंयमरतानां ॥ विदधातु जुवनदेवी, शिवं सदा सर्व साधूनां ॥१॥ एवी रीतनी थोर कहेवी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) पड़ी संपूर्ण नोकार कहीने, तथा खमासणुं देश्ने हुप्रोपनवनिवारणाय करेमि काउस्सग्गं, अनत्थ, एक नोकारनो काउसग्ग, (बीजा श्राचार्यना मत प्रमाणे उवसग्गहरंनो काउसग्ग) तथ नमोऽर्हत्नो पाठ कहीने, सर्वपदांबांबिकाद्या, वैयावृत्यकरा जिने ॥ कुखोपभवसंघातं, ते सुतं जावयंतु मे ॥१॥ एवी रीतनी थोश कहेवी. पछी एक नोकार प्रकट कहीने, "उपसर्गाः क्षयं यांतिथी मामीने जैनं जयति शासनं” सुधिनो पाठ कहेवो. पछी एक नोकार, उपसग्गहरं, अने लोग. स्स पुरो सातवार कहीने हे बेसे, तथा बिंबप्रवे. शमहिमानो उपदेश दीये. - पछी बाकी रहेला अरधा बाकुळा खेईने, नीचे प्रमाणे देवोने विसर्जन करे. ॐनमो इंद्राय, पूर्वदिमधिष्ठाय, एरावणवाहनाय, सहस्रनेत्राय, वज्रायुधाय, सपरिजनाथ, अमुक न. गरे अमुक गृहे श्रीजिनबिंबप्रवेशमहोत्सवे सर्वोप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३ ) जवाद रक्ष रक्ष, बलिं गृह, गृह, गछ, गछ, स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र जणीने इंद्रने विसर्जन करवो. पी 'नमो निमूर्त्तये, सगतिहस्ताय, मेषवाहनाय, सायुधाय' ईत्यादि उपर प्रमाणे निमंत्र जा वो. पछी 'ॐ नमो यमाय, दक्षिणदिगधिष्ठायकाय, महिषवाहनाय, दंडायुधाय, कृष्णमूर्तये इत्यादि उपर प्रमाणेज यममंत्र जाणवो पढी 'ॐ नमो नैकृतायं खमूगहस्ताय, सवाहनाय, सायुधाय' इत्यादि उपर प्रमाणेज नैकतमंत्र पण जाणवो. पछी ॥ ॐ नमो वरुणाय, पश्चिमदिगधिष्ठायकाय, मकरवाहनाय, पाशहस्ताय, सपरिजनाय नम इत्यादि उपर प्रमाणेज वरुणमंत्र जापवो. पडी 'ॐ नमो वायव्याग्र, वायव्याधिपतये, ध्वजहस्ताय दरिवादनाय, सपरिजनाय' इत्यादि उपरप्रमाणेज वायव्यमंत्र पण जाणी लेवो. पढी : ॐ नमो धनदाय, पाताल निवासनाय, पद्मवाहनाय, सायुधाय, सपरिजनाय, छामुक नगरे अमुकचैत्ये, श्रीजिनबिंब प्रवेश महोत्सवे, लिपूजां गृह गृह्ण, सर्वोपद्रवान् नाशय नाशय, ग For Personal and Private Use Only Jain Educationa International # " Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) गड वाहा' एवी रीते विसर्जन विधि जाणवो. पली विसर्जन मुजाथी हाथ जोमीने, . देवदेवार्चनार्थ च, पुराहूता हि ये सुराः॥ ते विधायाहतां पूजा, यांतु सर्वे यथागताः॥१॥ ___एवी रीतनो श्लोक जणवो. पली संघसहित गुरुने घेर बोलावी, प्रनावना करे, गुरुने अन्न वस्त्र आपे, श्री संघने केसरनां गंटणां करे, तथा तेमने श्रीफल तंबोळ विगेरे देई विसर्जन करे. पळी संध्याकाळे अथवा रात्रिए घरधणी मूलनायकना नामनी नोकरवाळी गणे. पनी दश दिवसो सुधि सवारे तथा सांजरे, शुद्ध स्त्रियोपासे सांजी अने प्रजातीयां देवरावे, तेउने तंबोल आदिकनी परजावना आपे, तथा दश दिवसोसुधि रात्रिजागरण करे. तेटवू न बने तो त्रीजे, पांचमे अने नवमे दिवसे तो अवश्य करे, वळी दश दिवसो सुधि आंबेल, एक जक्त आदिक तप करे, पोताथी न बने, तो बीजापासे करावे, आठमे दिवसे कुंजोत्था Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) पन करे, नवमे दिवसे कुटुंबमा सर्वेने आंबेल करावे. दशमे दिवसे शक्ति होय तो अष्टोत्तरी स्नात्र करे. ते दशे दिवसोसुधि एकसो आठ नोकार, तथा एकसो आठ उवसग्गहरंना पाठ फुलगुंथणीए गणे तथा मूळनायकजीनी पण नोकरवाली गणे. दशमे दिवसे संध्याकाले अखंग चोखा शेर सवा, खांमनुं बुरुं शेर सवा, तथा गायनुं घी शेर सवा, उत्तम पात्रमा जरीने, गुरुसहित, अने तेमनो जो योग न होय तो दश ब्रह्मचर्य श्रावकसहित, जिनमंदिरना मंगपमध्ये आववं, तथा त्यां उन्ना रहीने. थने ते चोखा विगेरेनी पसली जरीने नीचे प्रमाणे स्तोत्रं जण. श्रुणिमो केवलिवत्थं, वरविजाणंदधम्म कित्तित्थं ॥ देविंदनयपयत्थं, तित्थयरं समोवसरणत्थं ॥१॥ पयामेसमस्थन्नावो, केवली जावो जिणाण जत्थानवे॥ सोहंति सम्पतिहिं, महिमा जोयणमनिलकुमाराश परिसंति मेहकुमारा, सुरहिजलंरिंउसुराकुसुमपसरं विरयंति वलामणिकणग, रयणचितं महिलं तो।३। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) अस्पबतरमबिंबहि, तिवबमणीरयणकणयकविसिसा रयण अजुलरूवमया, वेमाणीयजोनवणवया ॥४॥ वहंमितिसंगुल, तितिसधाणु पिहुलपणसयधणुच्चा॥ उधणुमय नकोसं, ईतरायरयणमय चउदारा॥५॥ चबरंसे ईगधणुलय, पिहुवखासदकोसअंतरया ॥ पढमबियाबियंतश्या, कोसंतरंपुवमीवसेसं ॥६॥ सोवाणलहसदलकर, पिहुंचगंतु जुवो पढमवप्पो ॥ तो पनावणुंपयरो, तबसोवाणपणसहस्सा ॥७॥ तो बियवप्पो पन्नध, पयरसोवाणसहसपणतत्तो ॥ तश्वप्पोत्यसय, धणुंगकोसेहिंतोपिढं ॥॥ चउदारंति सोवाणं, मज्के मणीपीढयंजिणतणुच्चं ॥ दोध[सयपिहुदिहुं, सट्टदुकोसेहिंरचणीअप्पं ॥ए॥ जिणतणुखारगुणुच्चो, समहिजोअण पिहुंअसोकतरं तय होय देवं वंदे, चउसीहासण सपयपीढा ॥१०॥ तवरि चढउत्ततया, पमिरुवतिगंतहठचमरधरा ॥ पुरऊकणयकुसेसय, वियफाखिअधम्मचक्कचन॥१९॥ फयचयरमंगल, पंचालियदामवेश्यकलसे ॥ पडिदारंमणीतोरण, तिमधुवधमी कुणंतिवणा॥१२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) जोयणसहसदमा, चेश्यधम्मामाणगयसीहा ॥ ककुजाइजुआसवं, माणामिणं नियमिअरेण ॥१३॥ पविसीअपुवाइ, पटुपयाहिणं पुव्व बासणनिविद्धो पयपीमववि आपा, पणमिअतित्थो कह धम्म मुणी विमाणीणीसमणी, समवण जोश्वणदेवदेवतिथं कप्पसुरनरिस्थितिअं, विंतिग्गियाइविदिसासु ॥१५॥ चलदेविसमणीउ-दविया निविद्यानरि बिसुरसमणा। श्यपणसगपरिसुणंति, देसणं पढमवप्पंतो ॥१६॥ श्व श्रावस्सयवित्ति, वन्तचुणिपपुणमुणीनिविज्ञा॥ विमाणोणिसमणीदो, उद्धासेसाउछियानव ॥१७॥ विश्रतोतिरीइशाणो, देवचंदो अजाणतश्यतो ॥ तहचरंसे उवावि, कोणव हि एकेका ॥ १० ॥ पिअसिअरत्तसामा, सुरबणजोश नवणारटामवखे॥ प्रणुदंम्सासगयहत्थ, सोमयमवरुणधपदवजरका १५ जयविजया जिअ अपरा-जयति सीअथरुणपीयनीला बाए देवी जुयला, अजंगकुसपासमग्गकरा ॥२०॥ बाइबहिसुरातुंबरू, खटुंगकर लिजममउमधारी॥ प्रवरदार पासातुं-बरुदेवो अगमिहारो ॥ २१ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) सामन्नसमोसरणे, एसविहीजस्म हिदिसुरो॥ सम्मिणं एगोबिहु, सकुणजयणेयरसुरेसु ॥१५॥ पुघनजायं जत्थर्ड, जत्थई सुरोमहाट्टिमघवा ॥ तथा सरणं नियमा, सययपुणपारिहेराहिं ॥३॥ दुस्थि असमन्तअस्थिय,जणपस्थिअत्थसत्थसुमत्थो॥ इत्थं थुठलहुजणं, तित्थयरो कुणउ सपयत्थ ॥२४॥ ___एवी रीतनुं समवरण स्तवन, शांतिकरं तथा मोटी शांतिनो पाठ कही हाथमा रहेली वस्तुउँने उडा. लीने तेनो वरसाद वरसाववो, एवीरीते त्रणवारमा सर्व वस्तुऊनी वृष्टि करी लेवी.तथा पठी हाथ जो. मीने नीचे प्रमाणे स्तुति करवी. या पाति शासनं जैनं, संघप्रत्यूहनाशिनी ॥ सानिप्रेतार्थदा नित्यं, भूयाछासनदेवता॥१॥ आह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनं ॥ पूजार्चा नैव जानामि, त्वं गतिः परमेश्वरी ॥२॥ आशाहीनं कियाहीनं, मंत्रहीनं च यत्कृतम् ॥ तत्सर्व दमयामि त्वं, दमख परमेश्वरी ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३ए) एवी रीतनी स्तुति करीने दीपकमां घी पूरीने पाने पगे हतो थको, तथा नमस्कार करतो थको बहार आवे; पड़ी जिनमंदिरनां छारने बंध करीने, तालु मारे, तथा ते ताळु प्रजातसुधि उघाडे नहीं; पली त्यां आखी रात जागरण करे; पडी प्रजाते घ. रनो धणी श्रीफल तथा रुपी लईने ते देवमंदिर उघाडे, तथा ते श्रीफल अने रुपीयो नेट करे, तथा तंमुलनी वृष्टि करे, पळी ते जतनापूर्वक नपानीने, ज्यां को 3ळंगे नहीं, एवी जगोए परउववा पनी देहेरे श्रावी अष्टप्रकारी पूजा करवी, तथा कुटुंबने हर्षनुं जमण जमामी रजा आपवी, वली वरस दहामा परी ज्यारे तेज दिवस आवे, त्यारे विशेष पूजा करवी, तथा रात्रिजागरण करवं, एवी रीतें श्रीजिनचैत्यबिंबप्रवेशनो विधि जाणवो. हवे अष्टोत्तरी स्नात्रनो विधि कहे ले था अष्टोत्तरी स्नात्रनो विधि जीर्णकल्प, प्रतिष्टाकल्प, तथा समाचारी ग्रंथ इत्यादिने अनुसारें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहे , पेहेलो तेउमा खप श्रावतां उपकरणो कहे है. श्री आदिनाथ, अजितनाथ, शांतिनाथ तथा श्रीपार्श्वनाथनी एम चार प्रतिमा, अथवा चोवी. सवटो, परनालवालो बाजोड नंग एक, सिंहासन नंग चार, बत्र नंग चार, माटली नंग एक सवामणनी, माघाविनानां कोरा राता कुंन नंग बे, तेमां एक एक मण माय तेवमो, अने बीजो दश शेर माय तेवमो, एक मण माय तेवा बीजा मोटा कलशा नंग चार, त्रांबाकुंमी नंग बे, अथवा न्हवण अने पंचामृत जरवानां रातां कुमां नंग बे, रुपा धादिकना कलशा नंग चार, अथवा आठ, नाना कल शिक्षा नंग चार, एकसो ने बाउ नालवांनो कलस नंग एक मोटो, ग्रह तथा दिग्पालोने थाप. वाना शीशमना चोखमा पाटला नंग बे, बीजा ना. ना पाटला नंग त्रीश, ब्रह्मचारी स्नात्रीया पुरुषो एकसो ने आठ, अथवा सत्तावीश, गेवासुत्र शेर सवा अथवा दोढ, नानी दोवेट नंग एकसो ने अाठ अथवा सत्तावीश, मोटां सरावला नंग बे, आ. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) रती नंग एक, मंगलदीवो नंग एक, सगमी अथवा रातुं कुंडं नंग एक, धूपधाणां नंग बे, खेरना, बावलना, रायणना, तथा पीपलाना कोलसा, पी. तलनी वाढी नंग बे, दिवा नंग त्रण, नानां सरावला नंग चार, मूलसहित माल, मरमासींगी नंग त्रण, आखा रुपाना सिक्का नंग अगीयार, ते अग्यार सिकाउँमाथी चार कलशमां, एक माटलीमां, ए. क त्रांबाकुंमीमां, एक पीउनीचे, बे ग्रह थने दिरपालनी स्थापनापर, एक कुंलमां, तथा एक मंगलदीवामां मुकवो, वलीत्रांबाना अधेला अथवा दाकमा नंग एकसो ने पांत्रीश, तेमांथी नंग दश दि पालोपर, नव नंग ग्रहोपर, आठ नंग अष्टमंगलिकोपर, तथा एकसो ने आठ दरेक स्नात्री प्रत्ये मुकवानां जाणवां. एवी रीतें पान आदिकनी संख्या पण एकसो ने पांत्रीशनी जाणवी. मोटा पश्. सा नंग बे, तेमांथी एक पीठदेशे संपुट मध्ये, अने बीजो पीठ खुबनमां मुकवो, रुघु, सोनू, मोती, चुनी अने प्रवाला; एवी रीतें पंचरत्न, अवामानी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) अथवा सरीयानी लेखण नंग एक, कचोला नंग बे वाटकी नंग त्रण, बाबमी नंग चार, कंकुनी वाटकी नंग एक, चामर नंग एक, घंट नंग़ एक, फालर नंग एक, नालीएर नंग नव, मोटा वाटका नंग दश, थाख नंग त्रण, गायना घीनो पांचशेरनो गामुन नंग एक, चंडवो नंग एक, ध्वजा नंग बे, निखारे. लां अंगदुणां नंग चार, धोतीयांना जोटा नंग ए: कसो ने आठ, अथवा सत्तावीश, परधोतीयां नंग चार, स्नात्रीयाउने अंगमईन तथा स्नानमाटे सुगंधि तेल विगेरे, मुहपत्ति नंग एकसो ने आठ अथवा सत्तावीश, मावाली धोली पडेमी नंग बे, (विध्यंतरे राती पण कही .) दरीया तास्तो गज एक अथवा सवा, कमलवरj कपडं गज बे; पीलु कापम गज दोढ, तथा एकसो ने बावजलाशयोनां पाणी, तेमां प्रथम गंगाजलनुं पाणी, शक्ति होय तो जलजात्रा महोत्सवथी ते पाणी लाव, अने तेम न बने तो आठ जलाशयतुं पाणी लावबुं. ते पाणी पाठ सधवा स्त्रियो वाजते गाजते लावे; ते पाणी लेती वखते जलाशयतुं श्रीफल, सो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) पारी, धूप विगेरेथी पूजन करे, अने पढ़ी जलशुघिमंत्र जणीने, अंकुश मुखाथी ते पाणी बहार कहामवं. ते पाणी उपामी लावनार स्त्रीने तंबोल थादिक परजावना देवी. तथा गानारी स्त्रिउने पण परजावना देवी. सुखम शेर अढी अथवा सवानां टुकमा नंग बे, कस्तूरी टांक सवा, केशर टांक दश अथवा पांच, हींगलो टांक अढी, गोरोचन टांक सवा, जीमसेनी शुरु बरास टांक पांच अथवा थही, चीना कपुर टांक अढी अथवा सवा, गोल टांक पांच, मीठं, माटी, तथा कंकु शेर सवा, वास अगर शेर सवा अथवा अरध, अगरबत्ती शेर सवा, वालाकुंची नंग बे, वींऊणो नंग एक, अबोट अख्याणाना चोखा शेर एकवीस, अखंड चोखा शेर दश, अथवा आठशेरनी एकसो ने बाउ ढगली करावी, तथा कपुर कस्तुरीए वासित दूध, दही, घी, शेलमीनो रस, अने पाणी, प्रत्येक शेर सवा, सेवारसथी को दीधेली जघन्यथीं औषधी बारर्नु पूर्ण शेर पा, ते औषधीयोमा मूलसहित माल, ह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ m4 सदर, वरीयाली, वालो, मोथ, पीपळीमूल, लवींग कंकोल, जायफल, जावंत्री, नखला, तथा सुखम जागवां. सेवंतरां नंग चारसो ने बत्रीश, फुल गुंथेला शेर पांच, अथवा दश, पाणीवाळां श्रीफल नंग एकसोने सामनीश, अथवा एकसोने वीस, सोपारी राती नंम एकसोने चालीस, सोपारी धोळी नंग एकसोने चालीस, चोखी बदाम नंग एकसो ने थाउ, खारेक नंग एकसो ने आठ, जाख नंग एकसो ने आठ, शींगोमां नंग एकसो ने आठ, निमजा नंग एकसो ने आठ, पस्तां नंग एकसो ने आठ, नालीयेरना गोटा नंग एकसो ने आठ, अथवा तेनां टुकमा नंग एकसो ने आठ, साकरना गांगमा नंग एकसो ने याठ, अखोम नंग एकसो ने बाउ, कमलकाकमी नंग एकसो ने उ, सेलमीना टुकमा नंग एकसो ने पाठ, केला नंग एकसो ने आठ, जंबीरां नंग एकसो ने आठ, नारंगी नंग एकसो ने बाउ, कमरख नंग एकसो ने आठ, दामीम नंग एकसो ने आठ, अंजीर नंग एकसो ने बाउ, एलचीनां मोमा नंग एकसो ने आठ, सेवइया लामु नंग एकसो ने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४५ ) आठ, खाजला नंग एकसो आठ, जलेबी नंग ए कसो ने आठ, मोतीया लाऊ नंग एकसो ने आठ, वरीयाली पाकनां चोसलां नंग एकसो ने छाव, वळी घेवर, पेंमा, मेसुब, एलचीदाणा, गुलाबपाक, अमृतपाक, नालीयेरपाक, सूत्रफेणी, सकरपारा, गुंदवमां, बरफी विगेरेनां पण एकसो ने आठ चो सलां जाएवां. वळी पस्तां आदिक उत्तम जातिनां मेवानां नंग एकसो ने आठ जाणवां, तथा खांबा, रायण, बीजोरां यादिक ते कतुमां मळतां फलो पण एकसो ने श्राव जाणवां. थोमामां थोमी सुखमी शेर सत्तावीसनी करवी. ते सुखमी पण शुद्ध सधवा स्त्री चोखां लुगमां पेहेरीने बनावे, ते बनाववानी जगोए बिलाडी प्रमुखने याववा देवी नही. ते नैवेद्यमां वळी, खीर, कंसारपोळी, घीना पुरुला, कूर, दाल, विगेरे करावबुं. तथा ते सघळं लघुस्नात्र कर्याबाद मुकवुं. वळी दिक्पालोने तेकवा, तथा विसर्जन करवा माटे घर्ज, जव, सरसव, चणा मली शेर चा ना कोरा वाकुला कराववा. तथा रांधेला बाकुलामां कूर, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४६ ) लापशी, पोळी, पुरुला, चोला, जारनो खीचको विगेरे सर्व मली ऋण शेर करवो. तथा ते स्नात्रने अंते दि. पालोने विसर्जन करती वखते उमाडवु. एवी रीते अष्टोत्तरी स्नानां उपकरणोनो विधि जावो. हवे उपरनi उपकरणो शिवाय बाकी रहेलां ग्र. हदिक्पालनी पूजाना उपकरणो कहे बे. सुखम, केशर, अगर, बरास, कस्तुरी, मरिच कंकोल, गोरुचंदन, हींगळो, रक्तचंदन, तथा सुवर्णरज, एटलानो यक्षकर्दम करीने, तेर्जना पाटलापर लेपन करवुं. हवे invस्थापननो विधि कहे बे. स्नात्रकारकें मुहूर्तना दिवसथी, सात, पाच, त्रण, अथवा एक दिवस पेहेलां जमीनथी एक गज - ने नव तंसु उंची, बे गज अने ग्यार तसु पोहोबी, तथा बे गज ने सत्तर तसु लांबी स्नात्र क " रवानी जगोए एक वेदिका कराववी, तथा अंदर शुद्ध माटी पुरवी, मंरुपनी बहार चारे दिशाए ज घन्यथी सात हाथ प्रमाणनी जमीन शुद्ध कराववी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) वळी जो डोबंध जगोपर तथा मालपर स्नान कराव, होय, तो भूमिने सधवा स्त्री पासे लाल अथवा धोली गायना बाणथी लीपावी शुद्ध करवी. प. बी एक नाना संपुटमां सोपारी, चोखा, त्रांबानाएं, रुपाना', तथा पंचरत्ननी पोटली नाखोने, ते संपु. टने ते वेदिकापर मुकवं. अने ते वखते "ॐ कूर्म निजपृष्टे जिनबिंबं धारय धारय स्वाहा” एवीरीतनो मंत्र एकसोने आठवार, अथवा सत्तावीसवार जणवो. पड़ी ते संपुटपर माटी नाखीने वेदिकाने सरखी करवी; के जेथी ते देखाय नहीं. पली ते वेदिकाउपर चोखानो चोक पुरावीने घडली करवी. तेनापर कंकुथी पूजीने एक श्रीफल मुकवू. पठी तेपर सुखम, केशर अने कंकु, एम त्रण रेखाथी चोखंडं मंगल करवं. पठी “ॐभूरसिजूतधात्री विश्वाधारे नमः” एवी रीतनो मंत्र सातवार नणीने, वास तथा पुष्पथी ते वेदिकानुं पूजन करवं. ते वेदिकापर प्रथमथीज चंदरवो बांधवो. तथा बे ध्वजार्ड चमाववी. पडी मु. हूर्त्तनां दिवससुधि त्रण टंक धूपदीप सहित त्यां सात Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ () स्मरणो शुझ परतपरथी जणवां. त्यां रजस्वला स्त्री सुतकी अने बीलाडी प्रमुखने आववा देवां नहीं; बन्ने वखत स्त्रिांपासे त्यां मंगलिकनां गीतो गवरावां; वळी ते स्त्रिजेने तंबोल यादिकनी परजावना देवी. रात्रि जागरण करवू, अमर पळाववी. __पठी स्नात्रिया श्रावकोए प्रनाळवाळा बाजोग्ने धो धूपीने, पूर्व अथवा उत्तर सन्मुख मांमवो. प. बी “ॐ ही अर्हत्पीठायनमः" एवीरीतनो मंत्र सात वखत बोलीने पोटपूजा करवी. पडी तेने उत्तम पु. प तथा अदतनी पसली जरीने वधावे; पडी पवित्र पांचशेर गोलपापमीने घंटाकरण मंत्रथी-एकसो थाग्वार मंत्रीने बाळकोने वेंची आपवी. ते घंटाकरण मंत्र नीचे प्रमाणे जाणवो. ॐ ही घंटाकर्णमहावीर, सर्वव्याधिविनाशक । विस्फोटकनयप्राप्तेः, रद रद महाबल ॥१॥ यत्र त्वं तिष्ठसे देव, लिखितोऽदरपंक्तिनिः ॥ रोगास्तत्र प्रणश्यति, वातपित्तकफोनवाः ॥२॥ तल राजनयं नास्ति, यांति कर्णे जपाः दायं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए) शाकिनीभूतवेताला, राक्षसाः प्रनवंति न ॥३॥ नाकाले मरणं तस्य, न च सर्पण दश्यते ॥ अग्निचौरजयं नास्ति, ही घंटाकर्णो नमोस्तु ते।। उः वः स्वाहा” एवी रीते घंटाकर्ण मंत्र जणवो. हवे मुहूर्तने दिवसे स्नात्र करावनारे, इन्द्रियोनी खोम विनाना, तथा मांज विनाना, स्पष्ट बोलनारा, अखंम शिखावाळा एकसोने आठ, अने जघन्यथी चार स्नात्रियायोने एकठा करवा. ते स्नात्रियाओए 'ॐ ही अमृते, अमृतोनवे,अ. मृतवर्षिणि अमृतं श्रावय श्रावय स्वाहा' एवी री. तनो मंत्र सात वखत कहीने, जलशुद्धि करवी. पली ॐ ह्री यदाधिपतये नमः' एवी रीतनो मंत्र सात वखत कहीने दातण करवू. पठी हाथमां पाणीनी अंजलि चरीने, 'ॐ ह्री श्री क्ली कामदेवाधिपतिर्मम अजीप्सितं पूरय पूरय स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र सा. तवार जणीने, ते पाणीथी मुखशुद्धि करवी. पठी पूर्व सन्मुख बेसीने, सुगंधि तेल आदिकधी मर्दन करवं. पनी 'ॐ ही अमले विमले विमलोनवे सर्व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५० ) तीर्थजलोपमे पां पां वां वां अशुचिः शुचिर्जवामि स्वादा' एवी रीतनो मंत्र त्रणवार जणीने सर्व अंगे स्पर्श करी स्नान करवुं पढी 'ॐ ह्री खाँ काँ नमः' एवी रीतनो मंत्र त्रणवार जणीने शुद्ध वस्त्रो पहेरवां. पठी तेर्जए बीजा त्रण श्रावको पासे केसर घसावीने, तेनी त्रण वाटको जराववी, तेमांथी एक देवपूजामाटे बीजी तिलक यादिक करवामाटे तथा त्रीजी ग्रह आदिक खालेखवामाटे राखवी. पढी बीजा बे पासे श्रावको पींजेला शुद्ध रुनी बसोने चौद वाटो कराववी, तथा बे मोटी गेवासूलनी वाटो एवी रीतें बसोने सोल वाटो कराववी. (वली विध्यंतरे एकसोने आठ वाटो पण कहेली बे.) पढी चार मुख्य श्राकोए तथा बीजा स्नात्रियाउए तिलकनुं केसर हा थमां लइने 'ॐ ॐ ह्री क्ली अर्हते नमः ' एवी रीतनो मंत्र सातवार जणीने तिलक कर पढी एक वृद्ध स्नात्रियाए गेवासूत्रनो दो हाथमां लइने, 'ॐ ही तर अवतर सोमें सोमें कुरु कुरु वग्गु वग्गु निवग्गु वीसुम सोमणसें महुमहुरे ॐ कक For Personal and Private Use Only Jain Educationa International 4 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) वली कः कः स्वाहा' एवी रीतना मंत्री एकसोने आग्वार अथवा एकवार मंत्रीने सर्व स्नात्रियाउँने हाथे ते बांधवं, तथा मीढोल आदिक बीजां उपकरणो पण बांधवां; वळी ते स्नात्रियाउँने जघन्यथी आठ दिवससुधि ब्रह्मचर्य पाळवानुं प्रत्याख्यान देवं. पली चार वृक्ष स्नात्रियाए आदिनाथ प्रमुखनी चारे प्रतिमाउनुं देरासरमा सामान्य प्रकारे पूजन करवू. पड़ी ते चार स्नात्रियाए ते एकेकी प्रतिमाने थालमां बेश्ने, जीहां पीठस्थापन होय, त्यां 'ॐ नमोऽर्हत्परमेश्वराय, चतुर्मुखाय, परमेष्टिने, दिक्कुमारीपरिपूजिताय, देवाधिदेवाय, त्रैलोक्यमहिताय, अत्र पीठे तिष्ट तिष्ट स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र त्रण वार जणीने, अनुक्रमें अकेकी प्रतिमा स्थापन करवी. पड़ी ते प्रनालिकावाला बाजोग्ने दरेक पाये अख्याएं शेर पांच तथा श्रीफल नंग चार मुकवां, पठी त्यां उत्तम धूप करवो. पठी त्रांबानां बे कोमी. यामां सधवा स्त्रीपासे गायनुं घी पुराव. पड़ी वृद्ध स्नात्रियाए 'ॐ घृतमायुर्वृद्धिकरं जवति परं जैन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) दृष्टिसंपर्कात् तत्संयुतं प्रदीपः पातु सदा शाबदुःखेन्यः स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र ऋण वार जणीने ते दीपको प्रकटवा. पनी ते दीपकोमांदेथी एक सधवा स्त्रीपासे जिननी जमणी बाजुए, तथा बीजो माबी बाजुए मूकाववो. पठी तेपर केसरनां बांटा नांखवा. ते कोमीयांथोने स्थिर करवामाटे दीवीनां चामांसाथे गेवासूत्रथी बांधवां. पनी वृक्ष श्रावके स्नात्रियायोने हाथे कंकण बांधवां. बे श्रावकोना हाथमा देवद्रव्य वधरावीने घीनी वाढीयो आपवी; तथा तेश्रोने दी. पकोपासे उना राखवा, अने तेयोने हाथे तेमां घी पुरावता रहे. एवी रीते जे जे उपकरणो श्रावकोने आपवां, ते ते देवप्रव्य वधरावीने आपवां. पली वृद्ध श्रावके प्रजुनी पेठे पाटलापर बेसबुं. तथा माटलीने धेश धुंपीने, बीजा श्रावकोपासे फलाबी राखी, तेमां केसरनो साथी करवो, तथा तेपर ॐ ह्रीश्री सर्वोपड़वान् नाशय नाशय स्वाहा" एवी रीतनो मंत्र लखवो; पड़ी रुपाना तथा पंचर• ननी पोटलीने, “ॐ हँ। बाहास्वाहा,सुगंधिपुष्पाधि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) वासितं नीरं, पतताविचित्रवर्णनमंत्राढयं स्थापनाबिंबे स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र जणीने माटलीनी अंदर मुकवी. पड़ी ते माटलीने एक पवित्र इंडोणी. पर "ॐ ही ठः ठः ठः स्वाहा” एवीरीतनो मंत्र सातवार जणीने, स्थापना मुद्राएं करीने प्रतिमानां जमणा पासामां मुकवी, पठी पंचामृत एकठां करीने, जिनबिंबोपरि निपतत्, घृतदधि पुग्धादिनिः परिपूतं ॥ गंधोदकसंमिश्रं, पंचशुष्ट्या हंतु दुरितानि ॥१॥ एवी रीतनो श्लोक त्रण वार नणीने, ते माटलीमा मुकवा. (विध्यंतरे त्रांबाकुंमीमां पण मु. कवान कयु) पली, "ॐ ह्रीनः जलधि नदी ह. दकुंडेषु यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि, तैर्मत्रसंस्कृतैरहद्विबं स्नापयामि शुद्ध्यर्थ स्वाहा” एवी रीतनो मंत्र सात वार जणीने, वृक्ष श्रावके पोते अथवा सधवा स्त्री पासे, ते माटलीमां एकसाने आठ न. वाण- पाणी रेमावq. पडी मूलवाळो मान, तथा मींढोल अने मरमासींघीने गेवासुत्रथी, मंत्रथी पवित्र करीने, ते माटलीने कंठे बांधवू. पड़ी ते पर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दरीया तास्तो बांधवो. (विध्यंतरे वाळानु बातद्वं ढोकवू. पड़ी ते माटलीने चंदनथी पूजवी, तथा तेने पुष्पोनी माळा पदेराववी. पड़ी उत्तम शुरू बोलनार श्रावके, नोकार; उवसग्गहरं, संतिकरं, तिजयपहुत्त, नमिऊण, अजितशांति, तथा जक्ता. मर, एम सात स्मरणो गणवां, ते वखते एक बीजा श्रावके अगरनो धूप करवो, पनी जे एकसो ने आठ नवाण- पाणी बाकी रह्यु होय, तेथी नाना मंगल कुंचने नरीने, ते माटलीनी जोडे, अणुवरनीपरें स्थापवो. सात स्मरण गणतां वचे कंई बीजुं बोलबुं नहीं. - हवे ग्रह दिक्पासनां पूजननो विधि कहेले. वृद्ध नत्रीयाए सवननां पाटलाने शुद्ध जलथी धोक्ने, उत्तम धूपथी वासित करवो. पड़ी अघेमानी लेखणथी सुखम, केसर, कपुर, कस्तूरी अने हींगलाना कर्दमथी तेने लिप्त करवो. पठी ते पा टलाने प्रजुनां जमणे पासे स्थापवो. पनी चंद्र था. दिक- आगल विस्तारथी कहेवामां आवशे, तेवी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए५ ) * रीतें पूजन करवुं तेमां प्रथम चंदननी, पढी पुष्पनी, तथा पढी पंचरंगी रेशमी वस्त्र अथवा रातां रेशमी वस्त्रथी पूजा करवी. वली तेर्जना प्रत्येक मं कलपर, खंग पान, कंकुथी रंगेला चोखा, राती सोपारी, तथा त्रांबानाएं तथा रुपानाएं मुकबुं. पबी धूप करवो पढी सेवा अथवा मोतीचुरनो लामवो, खाजनुं विगेरे नैवेद्य मुक. पढी ते ग्रहोना वर्णनी नोकरवाळी तेमना मंत्रो सहित गणवी. पढी पुष्प, वास, काने चोख्खं पाणी अंजलिमां लेइने, त्रणवार तेर्जनो मंत्र जणीने अर्घ्य देतुं पढी श्रीफल चमाववुं. पछी एक बीजा सवनना पाटलापर सुखम केशर यादिकथी दिग्पालोनुं लेखन करवुं पछी ते प्रजुने गावे पासे मुकवो पढी चोकमां आवीने छलघु श्रावकोए अनुक्रमे पाणी, चंदन, दीप, पु. रूप घंट, तथा धूपथी पूजन करवुं पढी वृद्धश्रावके चाळीमां मंत्रित एवा कोरा बलबाकुला आह्वान श्रादिकनी विधिपूर्वक ऊछाळवा, तथा पूर्व प्रमाणे बंदन, फल, पीळं वस्त्र अथवा पंचरंगी रेशमी का Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) पम (विध्यंतरे रातुं अथवा सफेद कपडं) श्वेत रं. गनां पान, अखंग सफेद सोपारी, तथा त्रांबा अने रूपानाणांथी पूजन करवं. पछी पूर्वप्रमाणे अर्घ्य देश्ने, तथा उपर श्रीफल मूकीने पूजन करवू. त. था पछी ते पाटलो प्रनुनी माबी बाजुए मुकवो. हवे ते ग्रहपूजननो विधि विस्तारथी कहेले. तेमां प्रथम नीचे प्रमाणे आदित्यनी पूजा करवी. __ 'ॐ ही शशांकसूर्याय सहस्रकिरणाय नमोनमः स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र जणीने लाल चंदनथी आदित्यममलनु आलेखन करवू. पछी, 'ॐ आदित्याय सवाहनाय, सपरिकराय; सायुधाय, अमुकगृहे वृक्षस्नात्रोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र जणोने, तेनुं बाह्वाहन करवं, पबी, 'ॐ आदित्याय सवाहनाय इत्यादि उपर प्रमाणे पाठ कहीने, अत्र तिष्ट तिष्ट स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र जणीने स्थापना मुसाथी तेनुं स्था पन करवू. पठी उपर प्रमाणे मंत्र जणीने, गंधादिकं समर्पयामि स्वाहा, एम कहीने धूप करवो, पछी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेज मंत्र पूर्वक चंदनादिकं समर्पयामि स्वाहा, एम कहीने केसरनी पूजा करवी. पड़ी तेज मंत्रपूर्वक पुष्पं समर्पयामि स्वाहा, एम कहीने कणेरनां पुष्पो चमा. ववां. पड़ी तेज मंत्र पूर्वक वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा, एम कहीने वस्त्र चमावq. पडी तेज मंत्रपूर्वक फलं सम. र्पयामि स्वाहा, एम कहीने बाद यादिक फलो चमावां, पनी तेज मंत्रपूर्वक दीपं समर्पयामि स्वाहा, एम कहीने दीपक करवो. पनी तेज मंत्रपूर्वक नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा, एम कहीने, गोलधाणीनो अथवा चुरमानो लामको चमाववो. पठी तेज मंत्रपूर्वक अक्षतादिकं समर्पयामि स्वाहा; एम कहीने, पान, चोखा, राती सोपारी, तथा अरधो पैसो चमाववो. पड़ी उपर लखेला मंत्रपूर्वक एकसोने आठ मंत्रथी प्रवालांनी नोकरवाली गणवी. पनी पुष्प, वास तथा चोखापाणीनी अंजली नरीने, त्रण वार जपमंत्र जणीने अर्ध्य देवू. पनी हाथ जोमीने नीचे प्रमाणे प्रार्थनानो श्लोक जणवो. पद्मप्रनजिनेंद्रस्य नामोच्चारणजास्कर ॥ शांति पुष्टिं च तुष्टिं च, रदां कुरु जयश्रियं ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) एवी रीते आदित्यनी पूजानो विधि जाणवो. हवे चंजनो पूजाविधि कहे जे. अंजलिमा पुष्प, वास, चोखा तथा पाणी खेश्ने, 'ॐरोहिणीपतये चंडाय ॐही ही ही चंद्राय नमः' एवी रीतनो मंत्र जणीने चंद्रना मंगलने वधावq. पली एकला सुखमयी चंजनुं मंडल आलेखवू. पड़ी ॐ चंद्राय इत्यादि सूर्यनां मंत्र पूर्वक सघळा मंत्रो जणीने तेनुं आह्वाहन, स्थापन, चंदन, पुष्प, वस्त्र, फूल, दीप, धूप, नैवेद्य, अक्षत, तांबुल विगेरेथी पूजन करवू. तेमां पुष्पमां कुमुद अथवा चंबेलीनां पुष्पो चमावां. वस्त्रमा सफेद वस्त्र चमावq. फळमां शेरमी चमाववी. तथा नैवेद्यमां मरमरानो, अथवा घेसीया दळनो लामु चमाववो. तथा बीजी सघळी विधि आदित्यपूजनना सरखी करवी. स्फटिकना परवाळांनी चंद्रना मंत्रथी नोकरवाळी गणवी. वळी अर्घ्य देइने, नीचे प्रमाणे तेनी स्तुति करवी. चंद्रप्रनजिनेंस्य, नाम्ना तारागणाधिप ॥ प्रसन्नो जव शांतिं च, रदां कुरु जयश्रियं ॥१॥ एवी रीते चंपूजननो विधि जाणवो. हवे जौ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (पए) मपूजननो विधि कहे पुष्प आदिकथी अंजली जरीने, 'ॐ नमो भूमिपुत्राय, जुक्तत्रुकुटिलनेत्राय, चक्रवदनाय इंडःसः मंगलाय स्वाहा' एवो रीतनो मंत्र जणीने जोमना ममलने वधावq. पछी रतांजली अथबा केसरथी तेनुं मंगल आलेख. पछी 'ॐ नमो नौमाय' इत्यादि पूर्वनी पेठे सघळा मंत्रो जणीने, आह्वान पू. जन आदिक करवू. तेमां चंदनपूजा वखते एकला केसरनी प्रजा करवी, पुष्पमा जासुदनां पुष्पो चडावां; वस्त्रमा रातुं रेशमी कापम, फलपूजामा राती सोपारी, नैवेद्यमां गोलधामीनो लामवो अथवा कंसार चमाववो; तथा बीजी बाकीनी सघळी विधि आदित्यपूजन प्रमाणे जाणवी. परवाळांनी नोकरवाली उपर लखेला मंत्रपूर्वक गणवी. पडी अर्घ्य दीधाबाद नीचे प्रमाणे तेनी स्तुति करवी. सर्वदा वासुपूज्यस्य; नाम्ना शाति जयश्रियं ॥ रदां कुरु धरासूत, अशुनोऽपि शुजो जव ॥१॥ एवी रीतें नौमपूजननो विधि जाणवो. हबे बुध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६० ) पूजननो विधि कहे बे. - उपर प्रमाणे पुष्पचादिकनी अंजलि नरीने, 'ॐ नमो बुधाय श्री श्री खः दः स्वादा' मंत्री रीतनो मंत्र जणीने बुधना मंगलने वधाववुं पढी सुखम केसर खने कस्तुरीवडे बुधना मंगलनुं चालेखन कर. पी पूर्वी पेठे 'ॐ नमो बुधाय' इत्यादिक मंत्री तेना आह्वाहन यादिकनी विधि करवी. पठी वासपूजामां तेनी चंदनथी, पुष्पपूजामां चंपांना पुष्पोनी, अथवा मरवानी, वस्त्रपूजामां लीली बटनां कापरुनी, नैवेद्य पुजामां मगजनां लाऊनी पूजा करवी. बाकी बीजुं सघळं यादित्यपूजा प्रमाणे करवुं पडी तेना मंत्र पूर्वक केरवानी हाथवा नीलमनी नोकरवाळी गणवी. पठी अर्ध्य दीधा बाद तेनी नीचे प्रमाणे स्तुति करवी. विमलानंतधर्मार - शांतिकुंथुन मिस्तथा ॥ महावीरश्च तन्नाम्ना, शुजो जव सदा बुध ॥ १ ॥ एवी रीतें बुधना पूजननो विधि जाणवो. हवे गुरुनां पूजननो विधि कहे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुष्प श्रादिकनी अंजलि जरीने; ॐ मां मां ग्नूं बृहस्पते सुरपूज्याय नमः' एवी रीतनो मंत्र जणीने गुरुनां मंगलने वधावq. पनी गोरोचन चंदनथी तेनुं मंगल आलेखवू. पड़ी आगळनीज पेठे 'ॐ नमो बृहस्पतये' इत्यादि मंत्रथी तेनां आह्वाहन आदिकनी क्रिया करवी. वळी चंदनपूजामां वासचूर्ण, पुष्पपूजामा सेवंत्रा तथा सोन चंबेलीनां पुष्पो, व. स्त्रपूजामां पीलू रेशमी कापम, फळपूजामां जंबीरांनां फळो, नैवेद्यमां चणानी दाळनो लाडु चमाववो, बाकीनी सर्व विधि आदित्यपूजननी पेठेज जा. णवी. सुवर्णनी अथवा केरबानी तेनां मंत्रपूर्वक नो. करवाळी गणवी. पडी पुष्पादिकथी त्रणवार अर्घ्य दीधाबाद नीचे प्रमाणे तेनी स्तुति करवी. षजोऽजितः सुपार्श्व-श्चानिनंदनशीतलौ ॥ सुमतिः संजवः स्वामी. श्रेयांसश्च जिनोत्तमः ॥१॥ एतत्तीर्थकरनाम्ना, पूज्योऽशुनः शुनो नव ॥ शांतिं तुष्टिं च पुष्टिं च, कुरु देवगणार्चितः ॥२॥ एवी रीतें गुरुपूजननो विधि जाणवो. हवे शुक्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६२ ) पूजननो विधि कहे. पुष्प यादिकनी अंजलि जरीने, 'ॐ यः अमृताय, अमृतवर्षाय, दैत्यगुरवे नमः' एवी रीतनो मंत्र जणीने, शुक्रना मंगलने वधाववुं, पत्नी सुखमथी शुक्रनुं मंगल यालेख तथा पढी 'ॐ नमः शुक्राय, इत्यादिक मंत्रोएं करीने तेनां श्रह्वाहन यदिकनो विधि करवो. पढी चंदननी पूजामां सुखमनी पूजा करवी, पुष्पपूजामां जाइ ने मोगरानी, वस्त्रपूजामां सफेद सुतराज कापरुनी, फलपूजामां बीजोरांनी, तथा नैवेद्यपूजामां घेसीया दलनी अथवा मरमरानां लाकुनी पूजा करवी. तथा बाकीनी साली विधियादित्यपूजन प्रमाणे करवी. स्फटिक अथवा रूपानी तेनां मंत्रपूर्वक नोकरवाली गणवी, पढी पुष्प यादिकथी त्रणवार अर्ध्य दीधाबाद नीचे प्रमाणे तेनी स्तुति करवी. ॐ पुष्पदंत जिनेंद्रस्य, नाम्ना दैत्यगणार्चितः ॥ प्रसन्नो जव शांतिं च, रक्षां कुरु जयश्रियं ॥ १ ॥ एवी रीतें शूक्रपूजननो विधि जाणवो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हवे शनिपूजननो विधि कहे. पुष्प थादिकथी अंजलि जरीने, 'ॐ शनैश्चराय आँ काँ ही क्रोमाय नमः' एवी रीतनो मंत्र नणीने; शनिना मंगलने वधाव. पनी चुयामां कस्तुरीने मेलवीने तेथी तेनुं मंगल आलेखq. पनी आगलनी पेठे 'ॐनमः शनैश्चराय' इत्यादिक पाठपूर्वक तेना आह्वान आदिकनो विधि करवो. चंदनपूजामां कंकु; पुष्पपूजामां ममरो, वस्त्रपूजामां आसमानी रंगनुं व. स्त्र, फलपूजामां खारेक, तथा नैवेद्यपूजामां अमदनी दालनो लामु चमाववो. बाकीनो बीजो सघलो वि. धि आदित्यपूजननी पेठेज जाणी लेवो. अकलबेरनी नोकरवाली तेना मंत्रपूर्वक गणवी. पठी पुष्पयादि. कथी त्रणवार अर्घ्य देश्ने, नीचे प्रमाणे स्तुति करवी. श्रीसुव्रतजिनेऽस्य, नाम्ना सूर्यांगसंगवः ॥ प्रसन्नो नव शांति च, रहां कुरु जयश्रियं ॥१॥ एवी रीते शनिपूजननो विधि जाणवो. हवे राहुपूजननो विधि कहे . पुष्प आदिकथी अंजलि जरीने; ॐ वां ाँ वः Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) बावः पिंगलनेवाय, कृष्णरूपाय, राहवे नमः स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र जणीने राहुनां ममलने वधाव. पड़ी धागलनीज पेठे कस्तुरी मेळवीने, तेथी तेनुं मंगल आलेख. पड़ी आगळनीज पेठे 'ॐ नमो राहवे' इत्यादि पाठपूर्वक तेनो आह्वान थादिकनो विधि करवो. वली चंदनपूजामा कंकुनी, पु. ष्पपूजामां मुचकुंदनां पुष्पोनी, वस्त्रपूजामां कालां कपमांनी, फल पूजामां श्रीफलनी तथा नैवेद्यपूजामां अमदना लामुनी अथवा तलवटनी पूजा करवी. बाकीनो सघलो विधि आदित्यपूजनप्रमाणे जाणवो. वली अकलबेरनी तेनां मंत्रपूर्वक नोकरवाली गणवी. पत्री पुष्प आदिकथी त्रणवार अर्घ्य देश्ने, नीचे प्रमाणे तेनी स्तुति करवी. श्रीनेमिनाथतीर्थेश, नाम्ना त्वं सिंहिकासुतः॥ प्रसन्नो जव शांतिं च, रदां कुरु जयश्रियं ॥१५॥ एवी रीतें राहुपूजननो विधि जाणवो. हवे केतु. पूजननो विधि कहे . अंजलिमा पुष्प आदिक बेश्ने 'ॐ काँ को के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) टः टःटः बत्ररूपाय राहुतनवे केतवे नमःखाहा' ए. वी रीतनो मंत्र नणीने केतुनां मंगलने वधाव. पछी यक्षकर्दमथी केतुनुं मंगल आलेख. पली आगळनीज पेठे 'ॐ नमः केतवे' इत्यादिक पाठ पूर्वक तेना आह्वान आदिकनी क्रिया करवी. पड़ी कंकुपूजामां चंदननी, पुष्पपूजामां पचरंगी पुष्पोनी, वस्त्रपूजामां श्याम रंगनां कापडनी, फलपूजामा दामीमनी, तथा नैवेद्यपूजामां मगनी दाळना लामुनी पूजा करवी. बाकीनो बीजो सघळो विधि आदित्यपूजन प्रमाणेज जाणवो. वळी गोमेदकनी अथवा अकलबेरनी तेनां मंत्रपूर्वक नोकरवाळी गणवी. पनी पुष्प आदिकथी त्रसवार अर्घ्य देइने, तेनी नीचे प्रमाणे स्तुति करवी. राहोः सप्तमराशिस्थः, कारणे दृश्यतेम्बरे ॥ श्रीमलीपार्श्वयोर्नाम्ना, केतो शांतिश्रियं कुरु ॥ एवी रीते केतुपूजननो विधि जाणवो. ॥ एवी रीते नवे ग्रहोना पूजननो विधि संपूर्ण थयो. पड़ी उन्ना थश्ने, पचरंगी पुष्प, अक्षत, श्रीफल, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तथा रूपानाएं हाथमां लश्ने “जगत् गुरो नमः" इत्यादि आखु स्तोत्र नणी जवं. पडो नीचे प्रमाणे काव्य नणवं. जिनेंद्रजक्त्या जिननक्तिनाजां, येषां च पूजाबलिपुष्पधूपान् ॥ ग्रहा गता ये प्रतिकूलतां च, ते सानुकूला वरदा जवंतु ॥१॥ एवी रीतनुं काव्य नणीने, ते श्रीफल श्रादिक पाटलापर मुकवा. पछी ते पाटलो प्रजुनी पासे जमणी बाजुए स्थापवो. हवे दिग्पालपूजननो विधि कहेले. एक सवननो पाटलो प्रजुनी माबी बाजुए स्थापन करवो. पनी ब लघु श्रावकोए अनुक्रमे पाणी, चंदन, दीप, पुष्प, घंट, अने धूप लेश्ने रहे. पड़ी पहेलो ते पाटलापर जल गंटीने, चंदननां बांटा नाखवा पछी तेने पुष्पथी वधावीने दीपदर्शन कराव. पली धूप करीने घंट वगामवो. पली वृद्धश्रावके हाथमां कोरां बलिनी थाली सेइने, 'ॐ हैं। ॐ ह्रौं हुँ हा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) धैं हूँ कः वज्राधिपतये इंद्र संबौषट' एवी रीतनो मंत्र जणीने तेथी पूर्व दिग्पालने वधाववो. पठी गोरोचनथी इंद्रनुं मंमल थालेखq. पनी 'ॐ नमो ईजाय, पूर्व दिगधिष्टायकाय, ऐरावणवाहनाय, सहस्रनेत्राय, वज्रायुधाय, सपरिजनाय, अमूकगृहे, वृद्धस्नात्रमहोत्सवे, बागल बागल वाहा' एवी रीतनो मंत्र नणीने, आह्वान मुद्राथी तेनुं आह्वान करवं. पनी 'ॐ नमो इंद्राय इत्यादिक उपर प्रमाणे कहीने, अत्र तिष्ट तिष्ट स्वाहा' एम कहीने स्थापन मुशाथी तेनुं स्थापन करवू. पडी 'ॐ नमो इंद्राय' इत्यादिक उपर प्रमाणे कहीने पूजां गृह्ण गृह्ण स्वाहा' एम कहीने अंजलिमुद्राथी तेमने निमंत्रणा करवी, पनी ॐ नमो इंद्राय इत्यादि उपर प्रमाणे कहीने, गंधादिकं समर्पयामि स्वाहा' एवी रीते कहीने चंदन आदिक आठ वस्तुयोगी आदित्यनी पेठेज पू. जन करवू. तेमां चंदनपूजा मध्ये केसर अथवा वासचूर्णथी, पुष्पपूजामां चंपाश्री, फलपूजामां जंबीराथी, वस्त्रपूजामां पीळां वस्त्रथी, तथा नैवेद्य पूजा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) मां मोतीचुरनां सामुथी पूजन करवं. बाकीनो स. घळो विधि आदित्यपूजननी पेठेज जाणी लेवो. प. डी पुष्प आदिकथी तेनां मंत्रपूर्वक त्रणवार अंजलि देइने नीचे प्रमाणे तेनी स्तुति करवी. ऐरावणसमारूढः, शक्रः पूर्वदिशः पतिः ॥ संघस्य शांतये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रपतु ॥१॥ एवी रीतें इंदिग्पालनी पूजानो विधि जाणवो. हवे अग्निदिग्पालनी पूजानो विधि कहे . । हाथमां पुष्पादिकनी अंजलि जरीने, 'ॐ ह्री ₹ रो रो अग्निसंबोषट् एवी रीतमो मंत्र जणीने अग्निमंमलने वधावतुं, पड़ी लाल चंदनथी तेनुं मंगल आलेख. पली 'ॐ नमो अग्निमूर्तये, शक्तिहस्ताय, मेषवाहनाय, सपरिजनाय, अमुकगृहे वृद्धस्नात्रमहोत्सवे आगढ आगड स्वाहा' एवी रीतना मंत्रथी पूर्वनी पेठेज आह्वान आदिक विधि करवो. चंदनपूजामा एकलु केसर, पुष्पपूजामां जासुदनां पुष्पो, फलपूजामा लालसोपारी, वस्त्रपूजामां लाल रंगनुं वस्त्र, तथा नैवेद्य पूजामां चुरमानो लामु चमाववो. बाकीनो सपळो विघि था. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६९) दित्यपूजन प्रमाणेज जाणवो. पनी पुष्पादिकनी अंजलि जरीने त्रणवार अर्घ्य देश्ने, अंजलि जोमी नीचे प्रमाणे तेनी प्रार्थना करवी. सदा वह्निदिशो नेता, पावको मेषवाहनः॥ संघस्य शांतये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रयच्छतु ॥ १॥ एवी रीतें अग्निदिग्पालनां पूजननो विधि जाणवो, हवे दक्षिणाधिपनी पूजानो विधि कहे . पुष्पांजलि जरीने, 'ॐ हूँ हुँ हा क्षः यमाय संबौषट्' एवी रीतनो मंत्र नणीने, तेनां ममलने वधाव. पड़ी चुवामां कस्तुरी मेलवीने तेनुं मंमल थालेखवू. पली 'ॐ नमो यमाय, दक्षिण दिगधिष्टायकाय, महीषवाहनाय, दंमायुधाय, कृष्णमूर्तये, सपरिजनाय, अमुकगृहे' इत्यादि मंत्रं करीने उपरप्रमाणेज तेनां आह्वाहन आदिकनो विधि करवो. चंदनपूजामां कंकुनी पूजा, पुष्प पूजामां दमणानी, फळपूजामां काळी सोपारीनी; वस्त्रपूजामां काळां वस्त्रनी, तथा नैवेद्यपूजामां अमदना लाडुनी पूजा करवी. बाकीनो सघळो विधि आदित्यपूजन प्रमाणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (30) जाणवो. पड़ी पुष्पादिकथी त्रणवार मंत्र जणी अय॑ दीधाबाद नीचे प्रमाणे तेनी प्रार्थना करवी. दक्षिणस्यां दिशि स्वामी, यमो महिषवाहनः॥ संघस्य शांतये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रयच्छतु ॥१॥ एवी रीते यमपूजननो विधि जाणवो. हवे नैश्तपूजननो विधि कहेले. पुष्पादिकथी अंजलि नरीने, 'ॐ ग्लौ हों नैशतसंबौषट्' एवी रीतनो मंत्र जणीने, तेना मंगलने वधाव. पली एकली कस्तूरीथी नैकतनुं मंगल आलेखवं, पली 'ॐ नमो नैकताय, खड्गहस्ताय, सीववाहनाय, सपरिजनाय, अमुकगृहे' इत्यादि मंत्र जणीने तेनां आह्वान आदिकनो विधि करवो. चंदन पूजामां चुयो अने सुखम नेगुं करी, तेनुं पूजन क. रवं. पुष्पपूजामां बोलसरीनां पुष्पोनी, फलपूजामां दामिम तथा सीताफलनी, वस्त्रपूजामा उदारंगनां वस्त्रनी, तथा नैवेद्यपूजामां तलवटनी पूजा करवी; बाकीनो सघलो विधि आदित्यपूजनना जेवोज जा. एवो. पठी पुष्पादिकथी त्रणवार मंत्र जणी, अर्ध्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) देईने, हाथ जोमीने, तेनी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी. यमापरांतरालोऽसौ, नैतिः शिववाहनः॥ संघस्य शांतये सोस्तु, बलिपूजां प्रयचतु ॥१॥ एवी रीतें नैश्तपूजननो विधि जाणवो. हवे वरुणपूजननो विधि कहेजे. पुष्पादिकनी अंजलि नरीने 'ॐ श्री ह्रौ वरुणसंवौषट् ' एवी रीतनो मंत्र जणीने, वरुणना मंमलने वधाव. पनी कस्तूरी अने चुबाने मिश्रित करीने, वरुण, मंमल आलेखQ. पड़ी ॐनमो वरुणाय, पश्चिम दिगधिष्टायकाय; मकरवाहनाय, पाशहस्ताय, सपरिजनाय, अमुकगृहे' इत्यादि मंत्र करीने पूर्वनी पेठेज तेना आह्वान आदिकनो विधि करवो. चंदनपूजामां चुाथी मिश्रित करेला सुखमनी, पुष्पपूजामां दमणानी, फलपूजामां दामिमनी, वस्त्रपूजामां आस्मानी वस्त्रनी, तथा नैवेद्यपूजामां तलवटनी पूजा करवी. बाकीनो सघलो विधि श्रादित्यपूजन प्रमाणे जाणवो. पड़ी पुष्पादिकनी अंज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) लिथी त्रणवार मंत्रपूर्वक अर्घ्य देश्ने, तेनी नीचे प्रमाणे स्तुति करवी. यः प्रतीची दिशो नाथो, वरुणो मकरस्थितः ॥ संघस्य शांतये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रयतु ॥१॥ एवी रीतें वरुणपूजननो विधि जाणवो. हवे वायव्याधिपना पूजननो विधि कहे जे. पुष्पादिकमी अंजलि नरीने, 'ॐ क्ली हो वायुसंबौषट' एवी रीतनो मंत्र नणीने, वायुनां मंगखने वधावq. पनी सुखम, केसर अने कस्तूरीने मिश्रित करीने तेनुं मंगल आलेख. पठी 'ॐ नमो वायवे, वायवीपतये, वजहस्ताय, हरिणवाहनाय, सपरिजनाय, अमुकगृहे' इत्यादि मंत्रपाठ जणीने, तेनां आह्वान आदिकनो विधि पूर्वपेठे करवो. चंदनपूजामां वास, चुर्ज अने कस्तूरीना मिश्रणनी, पु. पपूजामां चंपो अने मरवानी, फलपूजामा नारंगी अने केळांनी, वस्त्रपूजामां लीला तास्तानी, तथा नैवेद्यपूजामा मगदलनी पूजा करवी. बाकीनो स. घलो विधि आदित्यपूजन प्रमाणे जाणवो. पनी पु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) पादिकनी अंजलिथी त्रणवार मंत्रपूर्वक श्रय दे श्ने, नीचे प्रमाणे तेनी स्तुति करवी. हरिणो वाहनं यस्य, वायव्याधिपतिर्मरुत् ।। संघस्य शांतये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रयन्तु ॥१॥ एवी रीते वायुपूजननो विधि जाणवो. हवे कुबेरपूजननो विधि कहे . पुष्पादिकनी अंजलि जरीने, 'ॐ लो हो कु बेरसंबौषट्' एवी रीतनो मंत्र जणीने, कुबेरनां मंमलने वधाव. पडी सुखम अने बरासने नेलवीने तेनं मंगल आलेखवं. पली 'ॐ नमो धनदाय, उत्तरदिगधिष्टायकाय, गदाहस्ताय, नरवादनाय, सपरिजनाय, अमुकगृहे' इत्यादि मंत्रं करीने पूर्वनी पेठे तेना आह्वाहन थादिकनो विधि करवो. चंदनपूजामां सुखम अने बरासना मिश्रणनी, पुष्प पू. जामां जाइ अथवा सेवंत्रांनां पुष्पोनी, फलपूजामा बीजोरानी, वस्त्रपूजामां सफेद वस्त्रनी तथा नैवेद्यपूजामा पेंमा अथवा घेसीया दखनी पूजा करवी. बाकीनो सघळो पूजाविधि आदित्यपूजन प्रमाणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४) जाणवो. पड़ी पुष्पादिकनी अंजलिपूर्वक त्रणवार मंत्र जणी अर्घ्य दीधाबाद तेनी नीचे प्रमाणे स्तुति करवी. निधाननवकारूढ, उत्तरस्यां दिशि प्रजुः ॥ संघस्य शांतये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रयन्तु ॥२॥ एवी रीते कुबेरपूजननो विधि जाणवो, हवे ईशानपूजननो विधि कहेले. पुष्पादिकनी अंजलि जरोने, ॐ ह्रीं हुँ हः इ. शानसंबौषट् ' एवी रीतनो मंत्र जणीने, इशानना मंमलने वधाववं. पली एकला चंदनथी तेना मंगखने आलेख. पड़ी ॐ नमो इशानाय, इशानपतये, त्रिशूलवाहनाय, सपरिजनाय; अमुकदे' - त्यादि मंत्रपूर्वक पूर्वनी पेठेज तेना आह्वाहन थादिकनी क्रिया करवी. चंदनपूजामां सुखमनी, पुष्पपूजामां कुमुदनी, फलपूजामा सेलडीनी, वस्त्रपूजामा सफेद वस्त्रनी, तथा नैवेद्यपूजामां घेसीयादलनी पूजा करवी. वाकीनो सघलो विधि श्रादित्यपूजन प्रमाणेज जाणवो. पड़ी पुष्पादिकनी अंजलि नरीत्रणवार मंत्रपूर्वक अर्घ्य देश्ने, नीचे प्रमाणे तेनी प्रार्थना करवी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) सिते वृषेऽधिरूढश्च, इशान्यां च दिशि विजुः॥ संघस्य शांतये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रयच्छतु ॥१॥ एवी रीतें इशानदिग्पालनो पूजाविधि जाणवो. हवे ऊर्वलोकाधिपति एवाब्रह्मपूजननो विधिकहेले पुष्पादिकनी अंजलि नरीने, “ॐ हूँ। हूँ ब्लू चंड ब्रह्मसंबोषट् ' एवी रीतनो मंत्र जणीने, ब्रह्ममंमलने वधाव. पठी सुखम केसर अने कपूरने मिश्रित करीने ब्रह्ममंगलने वालेखवू. पड़ी 'ॐ नमो ब्रह्मणे ऊर्वलोकाधिष्ठाय राजहंसवाहनाय, सा-- युधाय, सपरिजनाय, अमुकगृहे' इत्यादि मंत्रना पाठपूर्वक तेना आह्वाहन थादिकनो विधि करवो. पछी चंदनपूजामा एकला सुखमनी, पुष्पपूजामां सेवंत्रांनां पुष्पोनी, फलपूजामां बीजोरांनी, वस्त्रपूजामां सफेद वस्त्रनी; तथा नैवेद्यपूजामा घेवरनी पूजा करवी. बाकी सघली विधि आदित्यपूजन माफकज जाणवी. पठी पुष्पादिकनी अंजलिपूर्वक तेने त्रणवार मंत्रथी अर्घ्य दीधा बाद नीचे प्रमाणे तेनी स्तुति करवी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्मलोकविजुर्यस्तु राजहंससमाश्रितः॥ संघस्य शांतये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रयच्छतु ॥१॥ एवी रीते ब्रह्मपूजननो विधि जाणवो. हवे पातालाधिपति जे नाग, तेना पूजननो विधि कहे . - पुष्पादिकनी अंजलि जरीने, 'ॐ आँ ही क्राँ एँ इंसः पद्मावतीसहिताय धरणेंद्रसंबोषट्' एवी रीतनो मंत्र जणीने नागराजनां मंगलने वधाव. पठी सुखम अने दूधनुं मिश्रण करीने, तेथी तेना मंगलने आलेख. पछी 'ॐ नमो नागाय, पातालनिवासनाय, पद्मवाहनाय, सायुधाय, सपरिजनाय, अमुकगृहे' इत्यादि मंत्रपूर्वक तेना थाहाहन था. दिकनी क्रिया करवी. चंदनपूजामा सुखमनी, पुष्पपूजामां मोगरानी, फळपूजामां सफेद बदामनी, वस्त्रपूजामां श्वेत वस्त्रनी, तथा नैवेद्यपूजामां दूधमानी पूजा करवी. बाकीनो सघळो पूजन विधि थादित्यपूजनपेठेज जाणवो. पनी पुष्पादिकनी अंजलि जरी; त्रणवार तेना मंत्रोच्चार पूर्वक अर्घ्य देइने, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नीचे प्रमाणे तेनी स्तुति करवी: पातालाधिपतिर्यस्तु, सर्वदा पद्मवाहनः ॥ संघस्य शांतये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रयतु ॥१॥ एवी रीते नागराजना पूजननो विधि जाणवो. ‘एवी रीते दिग्पालपूजननो विधि संपूर्ण थयो. पडी पीयु रेशमी कपहुं गज सवा ते पाटलापर ओबामनी पेठे ढांक. हवे ते समस्त दिग्पालने अर्घ्य देवानो विधि कहे . पूजा करावनारे श्रीफल, अक्षत, अनेकवर्णनां पुष्पो तथा रुपानाणुं हाथमां बेश्ने, 'ॐ इंसाग्नि यम नैझतवरुणवायुकुबेरेशानब्रह्मनागेतिदशजिनपतिपुरतोऽवतिष्ठतु खाहा' एवी रीतनो मंत्र जणीने, ते श्रीफल आदिक पाटलापर मूकवां. __पड़ी ते पूजन करावनारे ग्रह तथा दिग्पालनां पाटलायोनी वच्चे उना रहीने, कोशमुद्राथी नीचे प्रमाणे तेयोनी प्रार्थना करवी. _ 'ॐ नम इंद्रादयो दिग्पाला, थादित्यादयो ग्रहाश्च खखदिशि स्थिता विनशांतिकरा जवंतु स्वाहा' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( SG ) एवी रीतनो मंत्र बोली तेमनी प्रार्थना करवी. दवे बलि बाकुला उमारुवानो विधि कहे. तेमां सघला मली जघन्यथी बार श्रावको जोइएं. तेमां चार श्रावको तो माथे शिखावाला (चोटलीवाला) जोइएं. लांबी चोटली न होय, तो गेवासूत्र वालमां बांध; अने तेथी लांबी शिखा करवी. पी उत्तम छाने निर्दोष सधवा, तथा पुत्रवती स्त्री पासे रंधावेलां, खीर; लापसी, गल्या मोळा पुरुला, मां, कूर ( विध्यंतरे खीचको ) पोली विगेरे एकवीश शेर लस एक मोटी कथरोटमां एकठो करवो. पछी ते कथरोट मंरुपमां लावी, बाजोठीपर मुकवी. पढी शिखावाला वृद्ध श्रावकें, पूर्व अथवा उत्तर सन्मुख बेसीने, तेमां गायनुं घीइ शेर सवा रेमवुं पडी तेपर खांकनुं बुरुं शेर सवा जजराव. पढी तेपर चंदननां बांटा नांखीने, उपर कणेरविगेरेनां पुष्पो नांस्ववां पढी वासनी मूठी जरीने, ते बलिने नीचे प्रमाणेनां मंत्री मंत्रित करवो. ॐ नमो अरिहंताणं, ॐ नमः सिद्धाणं, ॐ नमो . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए) शायरियाणं, ॐनमो उवकायाणं, ॐनमो लोए मव साहूणं, ॐनमो आगासगामिणं, ॐनमो चारणाश्सद्धिणं, जेश्मे किन्नरकिंपुरिसमहोरगगरूलसिछगंधवजख्खरख्खसपिसायभूयपिसाइणी माश्णी प. नईजिणघरनिवासिणो नियनिय निलयठिया, पविधाणा सन्निही सन्निहिया असन्निहिया ते सवेमं विसेवण धूप पुष्पफलपश्वसीणेवबलि पमिबंतां, तु. किरा नवंतु, शिवंकज्ञ नवंतु, सुत्थं जणं कुणंतु, सबजिणाणं सन्निहाणिप्पहा चउसप्पन्ननावतणेणं सवत्थरख्खं कुणंतु, सवत्थ कुरियाणि नासंतु; सवासिवमुवसमंतु, संति तुहिपुष्टिवसुत्थयणकारिणो नवंतु स्वाहा' एवी रीतनो भूतबलिमंत्र त्रणवार नणीने, ते वासनी मुवित्रणवार बलिपर अंटवी. पड़ी ते बलि. ना बे जाग करीने, एक नाग पवित्र स्थानकमां वासणमां जरी राखी मेलव. पछी एक शिखाबंध श्रावकें ते बलिनुं नाजन बे हाथे उपामवं. एक श्रा. वकें चंदन अने केसरनुं कचोळु झाली राख. एक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (GO) श्रावके पाणीनो कलश पकमीने उना रहे. 'एक श्रावकें पुष्पनी बाबमी पकमीने उजा रहे. एक श्रावकें धूपधाणुं लेवू. एक श्रावके यत्नपूर्वक दीपक धारी राखवो. एक श्रावके चामर ग्रहण करवं. एक श्रावके घंट लेवो. एक श्रावके आरिसो ग्रहण करवो. एक श्रावकें थाली ग्रहण करवी. एक श्रावकें अक्षतफल आदिक ग्रहण करवू तथा एक शिखाबध उत्तम श्रावके शुद्धमंत्रपाठ उच्चारण करवो. एवी रीतें बारे श्रावको, तथा बीजा पण स्नात्रिआयओए, ते ते वस्तुओ बेश्ने, स्नात्रघरने पागले जागे आवी, स्नात्रपीथी जंचे स्थानके अगासे पेहेलां पूर्वसन्मुख उना रहेq. पछी पाठ उच्चारण करनार श्रावके बखिनो खोबो जरीने उदात्त स्वरथी नीचे प्रमाणे इंदिग्पालतुं आह्वाहन कर. ॐ नम इंघाय, पूर्व दिगधिष्टायकाय, ऐरावणवाहनाय, सहस्रनेत्राय, बज्रायुधाय, सपरिजनाय अमुकगृहे वृक्षस्नात्रमहोत्सवे आगठ, आगर, ब Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ) लिपूजां गृह गृह स्वाहा' एवी रीतनो मंत्रपाठ जश्रीने पूर्व दिशासन्मुख ते बलि उबालबुं. ते वखते ते बारे श्रावकोए पण पोतपोताना उपकरणनो पूर्वदिशा सन्मुख उपयोग करवो. पी वली पण बलिनो खोबा जरान, तथा -- निखूणा तरफ उजीने 'ॐ नमो निमूर्त्तये, शक्तिहस्ताय, मेषवाहनाय, सपरिजनाय, अमुकगृहे वृ-स्नात्रमहोत्सवे श्रागच यागष्ठ बलिं गृह्ण गृह स्वाहा' एवी रीतनो मंत्रपाठ जणीने, ते खूणातरफ ते बलि उबालवो. तथा बीजाओ ए पण उपरप्रमाणेज पोतपोताना उपकरणोनो उपयोग करवो. पढी दक्षिण दिशासन्मुख बलिसहित उत्नीने, 'ॐ नमो यमायः दक्षिण दिधिष्ठायकाय, महिषवाहनाय, मायुधाय, कृष्णमूर्त्तये, सपरिजनाय' इत्यादि पूर्वप्रमाणे पाठ जणीने ते दिशातरफ बलि उबाळवो. तथा बीजाओए पण पोतपोताना उपकरणोनो ते दिशातरफ उपयोग करवो, पनी नैकतखूणा सन्मुख तेवीज रीतें बलिसहित उजीने, ॐनमो नैकताय, खमूगहस्ताय For Personal and Private Use Only Jain Educationa International - Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) शिववाहनाय, सपरिजनाय, इत्यादि उपरप्रमाणेज मंत्रपाठ जणवो. तथा ते दिशातरफ बलि उबगळवो. अने बीजायोए पण पोतपोतानां उपकरणोनो ते दिशातरफ उपयोग करवो. पडी पश्चिम दिशासन्मुख उनीने 'ॐनमो वरुणाय, पश्चिमदिगधिष्ठायकाय, म. करवाहनाय, पाशहस्ताय, सपरिजनाय' इत्यादि उपर प्रमाणेज मंत्रपाठ जणीने, ते दिशातरफ बलि उबाळवो. तथा बीजायओए पण पोतपोतानां उपकरणोनो ते दिशातरफ उपयोग करवो. पडी वायव्यखूणा त. रफ तेवीज रीतें बलिसहित उनीने, “ॐनमो वायव्याधिपतये, ध्वजहस्ताय, हरिणवाहनाय, सपरिजनाय' इत्यादि उपरप्रमाणेज मंत्रपाठ जणीने, ते दिशा तरफ बलि उबाळकुं; तथा बीजाशोए पण पोतपोतानां उपकरणोनो तेज दिशातरफ उपयोग करवो. पछी उत्तर दिशासन्मुख तेवीज रीतें बलिसहित उना रहीने, 'ॐनमो धनदाय, उत्तरदिगधिटायकाय, गदाहस्ताय, नरवाहनाय, सपरिजनाय, अमुक गृहे' इत्यादि उपर प्रमाणेज मंत्रपाठ जणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ने, ते दिशातरफ बखि उबाळवो. तथा बीजाए। पण पोतपोतानां उपकरणोनो ते दिशातरफ उपयोग करवो. पड़ी शानखुणा सन्मुख तेवीजरीतें बलिसहित उन्ना रहीने, 'ॐ नम शानाय, श्शानपतये, त्रिशूलहस्ताय, वृषनवाहनाय, सपरिजनाय' इत्यादि उपर प्रमाणेज मंत्रपाठ जणीने, ते दिशातरफ बलि उगळवो. तथा बीजारोए पण पोतपोतानां उपकरणोनो तेज दिशातरफ उपयोग करवो. पली उर्डखोकप्रत्ये जंचे मुखे बलिसहित रहीने, 'ॐ नमो ब्रह्मणे, उर्वलोकाधिष्ठायकाय, राजहंसवाहनाय, सायुधाय, सपरिजनाय' इत्यादि उपर प्रमाणेज मंत्रपाठ जणीने जंचे बळि उबाळवो. तथा बीजाए पण पोतपोतानां उपकरणोनो ते दिशातरफ उपयोग करवो. पठी नीचे मुख राखीने, तथा बलिनो खोबो जरीने, 'ॐ नमः पातालाधिपाय, नागाधिष्ठायकाय, पद्मवाहनाय, सायुधाय, सपरिजनाय,' इत्यादि उपर प्रमाणेज मंत्रपाठ जणीने, नीचे बलि नांखवो. तथा बीजाउए पण पोतपोतानां उपकरणोनो नीचेनी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४) बाजुह उपयोग करवो. (अहिं मंत्रपाठ उच्चारण करती वखते, बीजाउए पण बोलावनार बोलावे तेम बोलवू, अने ते वखते वाजीत्रो वगामवां नहीं; पण बलि बगळती वखते ते वगामवां.) एवी रीतें दिग्पालोना आह्वोहननो विधि जाणवो. हवे मुहूर्त्तने दिवसे एक वृद्ध शुद्ध श्रावके शीव. ननां पाटलापर यदकर्दमत्री अष्ट मंगलो आलेखवां. पठी ते प्रत्येकपर एकेकुं उज्वल पान मुकवू. तेपर चोखानी ढगलीयो करीने, उपर उज्वल सोपारीयो मेलवी. अने पड़ी तेपर त्रांबांनाणुं मुकीने तेने जज्वल वस्त्रधी ढांक. (विध्यंतरे घणा ढांकता नथी.) पठी पंचवर्णनां पुष्पो तथा श्रीफल खोबामा खेश्ने, __ नमोजिणा जिणनामा, उवणजिणाजिणपुणजिणं. दपमिमा। दवजिणा जीणजीवा, नावजिणे समवसरणत्था ॥१॥ एवी रीतनी गाथा नणीने, ते मुकवा. पनी ते पाटलो प्रजुनी जमणी बाजुए उंचे स्थानके मुकवो. हवे सघला स्नात्रिया शुद्ध मुहपत्ति बेश्ने, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इरियावही पमिकमीने चैत्यवंदन करे, चार थोइएं करीने देव वांदे; पनी नमुत्थुणं कहीने, स्तवननी जगोए नानी शांति कहे. पठी जयवीयरायनो पाठकहे. __पड़ी त्रांबाकुंमी लेवी. तेने शुद्ध पाणीथी धोत्र, धूपीने साफ करवी. पड़ी तेने गेवासूत्र बांध. पठी ते त्रांबाकुंमीमां यक्षकई में करीने, “ॐ ही नमः" एवी रीतनो मंत्र लखवो. तेपर कुंकुम, वास तथा पुष्पोएं करीने पूजन करेलां नालियेरने स्थापवू. पली ते त्रांबाकुंमीने प्रनालिकावाला बाजोपासे मुकवी. __सघळा स्नात्रियाउने आभूषणो पहेराववां. ते न होय, तो आठ द६ श्रावकोने नीचे प्रमाणे सकली. करण कर. ___ ॐ नमो अरिहंताणं हृदयाय नमः' एवीरीतनो मंत्र जणीने, हृदयने स्पर्श कराववो. पछी 'ॐ नमो सिद्धाणं शीर्षाय नमः' एम कही मस्तकने स्पर्श करवो. पली "ॐ नमो आयरियाणं शिखायैवषट्" एम कहीने शिखाप्रत्ये स्पर्श करवो. पली 'ॐ नमो उफायाणं कवचाय हुँ' एम कहीने सर्व अंगें स्पर्श Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६) करीने कवच करवं. पनी ॐ नमो सवसाहणं अ. स्वायषट् ' एम कहीने अस्त्रमुखाथी अस्त्र धारण कर. पली एक माह्या श्रावके उदात्तस्वरथी नीचे प्रमाणे वज्रपंजरस्तोत्र कहे. अने बीजाए ते सांजळवू. परमेष्टिनमस्कार, सारं नवपदात्मकं आत्मरक्षाकरं वज्र, पंजरानं स्मराम्यहं ॥१॥ ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितं ॥ ॐ नमःसिझाणं च, मुखे मुखपटांबरं ॥२॥ ॐ नमो थायरियाणं, अंगरदातिशायिनं ॥ ॐ नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयो१ढं ॥३॥ ॐ नमोलोए सवसाहणं, मोचकं पादयोः शनं॥ एसो पंचनमुक्कारो, शिलावज्रमहीतले ॥४॥ सवपावप्पणासणो, वप्रोवनमयोबहिः॥ मंगलाणं च सव्वेसिं, खदिरांगारखातिका ॥५॥ खाहांते च पदं झेयं, पढमं हवश् मंगलं ॥ वोपरि वज्रमयं, प्रधानं देहरक्षणं ॥६॥ महाप्रजावरदेयं, कुस्रोपवनाशनं ॥ परमेष्टिपदोनूतं, कथितं पूर्वसूरि निः॥७॥. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (19) यश्चैवं कुरुते रदां, परमेष्टिपदैः सदा ॥ तस्य न स्याद् जयं व्याधि-राधिश्चापि शरीरजा। एवी रीतें वज्रपंजर स्तोत्र नण. एवी रीतें सकसीकरण कर्याबाद हाथे गेवासूत्रसहित मीढोळ बांधवो. __ पड़ी एक श्राव हाथमां केसरपुष्प विगेरे लेश्ने नीचे प्रमाणे दिग्बंधन करवं. आ था पूर्वस्यां' एम कहीने पूर्व दिशामा केसरनां बांटा नाखवा. पठी 'इदक्षिणस्यां' एम कहीने दक्षिण दिशामां तेना गंटा नाखवा. पली 'उज पश्चिमे' एम कहीने पश्चिम दिशामां तेना बांटा नाखवा. पड़ी नए ऐ उत्तरे' एम कहीने उत्तर दिशामां बांटा नाखवा. पली 'उऊ ऊर्ध्व' एम कहीने उंचे गंटा नाखवा. पली 'अं अः अधः' एम कहीने नीचे गंटा नाखवा. पली हाथमां गेवासूत्र लेश्ने, 'ॐ ह्री देवी सर्वोपजवाद बिंबं रद रद खाहा' एवी रीतनो मंत्र सातवार जणीने चारे दि. शाउँमा स्तंनोपर अथवा पीना चारे पाया उपरें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) ते गेवासूत्र बांधq. पछी दीपकप्रत्ये केसर तथा पु. रूपनां बांटा नाखवा, पनी चार मोटाश्रावकोना हा. थमां, चार लघु श्रावकोए, चार कलशोने धो धू. पीने, तथा चंदनें पूजीने, तथा कंकण बांधीने,अने पुष्पनी माळा पहेरावीने, तथा अंदर रुपानाणुं मुकीने आपवा. वळी एक श्रावकें मंगळमाटला मांहे. थी पाणी लावीने ते चारे कळशोनरी आपवा. पली जो ते शांतिविध स्नात्र होय तो, ‘नमोऽर्हसिझाचार्योपाध्याय सर्वसाधुन्यः' कहीने, 'ॐ वरकणगसंख विद्म, मरगयघणसन्निनं विगयमोहं॥ सत्तरीसयं जिणाणं, सवामरपूश्यं वंदे स्वाहा ॥१॥ ॐ संतिसंतिकरं, संतीणं नवनया ॥ संतिं थुणामि जिणं, संति विहेउउमे ॥२॥ ॐरोगजलजलणविसहर, चोरारिमदगयंदणजयाई पासजिणनामसंकी-तणेणं पसमंति सवाई ॥३॥ अनुवणवश्वाणवंतर, जोश्सवासीविमाणवासीया ॥ जे के कुछ देवा, ते सवे उवसमंतु मे स्वाहा ॥४॥ एवी रीतनी चारे गाथा जणीने चारे श्रावकोए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए) ते चारे कळशोए करीने; एकी वखतेज प्रतिमाजीने थनिषेक करवो. अने पौष्टिकविधि स्नात्र होय, तो 'ॐ नमो अर्हते परमेश्वराय चतुर्मुखाय, परमेष्टिने, दिक्कुमारीपरिपूजिताय, देवाधिदेवाय, अमुकहे वृद्धस्नात्रे, स्नात्रस्य कर्तुः कारयितुश्च झवृिद्धिकव्याणं कुरु कुरु स्वाहा' एवी रीतनो अनिषेकमंत्र जणीने, चारे कलशथी एकी वखते अभिषेक करवो. - एवी रीतें अनिषेक करती वखते बन्ने बाजुए बे श्रावकोए चामर वींऊवां. बीजा बे श्रावकोए घंट वगामवा. तथा बीजां पण गाजां वाजां वगामवां. एवी रीतें अनिषेक कर्याबाद बीजा चार श्रावकोए प्रतिमाजीने अंगलूणा करवां. पनी वृक्षश्रावकें प्र. तिमाजीनें पूजन करवू. वळी ते वखते पासेनां बन्ने दिवाउँमा बन्ने श्रावकोए घी सींचq. एक श्रावकें धूप करवो. वली बीजा श्रावके एक मोटा बाजोठपर रातुं वस्त्र पाथरीने अखंग चोखानी ढगली करवी, तेपर पान मुकवू. वळी तेपर सर्व जातिनो अकेको लामवो मुकवो, तथा सर्व जातिनी सुखमी अने मे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) वानुं पण एकेकुं नंग मुकवू. वली स्नात्र करावनार श्रावके यथाशक्ति प्रतिमाजीने दरेक स्ना। बुंछणुं करीने, ते धन जैन याचकोने आप. हवे चंदनपूजा कर्याबाद चारे प्रतिमाजीने मस्तके सेवंत्रां तथा बीजी जातिनां पण उत्तम पुष्पो चमाववां, एवी रीतें उपर कहेली चारे गाथा दरेक स्नात्र नणीने, एकसो ने आठवार स्नात्र करीने उपरनी विधि प्रमाणे पू. जन आदिक करवू. (अहीं पाठ बोलनारा जुदा, स्नात्र करनारा जुदा, विगेरे लोकोमा प्रचिलित ; ते फक्त स्नात्र तुरत पुरं करवा माटे , पण तेवो विधि ग्रंथोमां कहेलो नयी. मूल विधिमां तो जे श्रा. वकोने सकलीकरण करेलु डे, तेज ते क्रिया करे, एम का बे.) एवी रीतें एकसो ने बाग्वार स्नात्र कर्याबाद बाकी जो माटलांमां पाणी वधे, तो ते पाणी एकसो ने आठ नालवांवाला कलशमां जरीने. बीजा स्नात्रियाउँपासे, अथवा स्नात्र करावनार धणीपासे, तेथी प्रजुनो अनिषेक कराववो. पनी खांक आदिकनां पाणीथी प्रतिमाजीने शुद्ध करवां, पड़ी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संक्षेपे चैत्यवंदन करीने स्तवननी जगोए धजितशातिनो पाठ जणवो. (विध्यंतरे पाठ थोश्थी देव वादवानुं पण कयुं . एवी रीतें श्रष्टोचरी (वृक्षस्नात्र) नो विधि जाणवो हवे खघु स्नात्रनो विधि कहे . तेवार पछी अनिषेकमाटे चार अथवा आठ कळशोने धोइ धुंपीने शुरु करवा. पड़ी तेमां सुगंधि पाणी नरीने, मांहे पुष्पो मेलवां. पळो तेपर केसर बांटीने अंगखूणाथी तेउने ढांकवा. पनी वृद्ध श्रावकें सातवार कुसुमांजलिनो पाठ जणवी. पडी चारवार कलश जणावीने, अथवा बेवार स्नात्रपाठ जणावीने ते कलशोथी स्नात्र करवं. तथा विशेष प्रकारे पूजन करवू. पली कोरं तथा रांधेदुं नैवेद्य सुहागण स्त्रीपासे गाजते वाजते त्यां मुकावq. पडी विशेष प्रकारे दीवाउने सतेज करीने प्रजुजीने सिंहासनपर पधराववा. तथा पूर्वे पूजेल अष्टमंगलने त्यां थापवा. पछी पुष्पोनी वृष्टि करवी. पछी बारती तथा मंगलदीवो करवो. पढी चैत्यवंदन करतुं. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) तेमां स्तवननी जगोए तिजयपहुत्तनो पार कहेवो, तथा पछी जयवीयराय कहेवा.. __ एवी रीते क्षघुस्नात्रनो विधि जाणवो. हवे अष्टोत्तरी स्नात्र विसर्जन करवानो विधि कहे. अष्टोत्तरी स्नात्र करावनार पुरुष अने तेनी स्त्री. ने पीठ आगळ उन्ना राखवा. अने ते स्नानना करावनार पुरुषनां हाथमां कुंन मुकबो. स्त्रीए नरतारथी त्रण हाथ धर उन (शहां कोश्क जगोए स्त्री जरतारनी बेकालेडी बांधवानो पण चाल .) हवे ते कुंना सुखमनो साथीयो करवो. तथा तेपर रुपानाएं मुकाव. कुंचना कंठे गेवासूत्र मीढोळ तथा मरमालींगी बांधवां, तथा पुष्पमाळा पहेराववी. पछी एक श्रावकें ते कुंजमां धार पडे, तेम एक नाळवांवाला कलशने ले उना रहे. पछी बीजा बे श्रावकें बीजा बे कलशमां सुगंधि पाणी जरीने जजा रहेई. तथा ते नालवांवाला कलशमां अखंग घाराथी रेजवं. तथा ते वखते एक शुद्ध उच्चार करनार श्रावकें मोटी शांतिनो पाठ नणवो. पछी ज्यां: Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 3) सुधि ते पाठ संपूर्ण जणाय, त्यांसुधिमां ते कुंन सं. पूर्ण जरवो. ते वखते एक श्रावकें संघलाउने नाशिकाचिंतामणिमाटे सावध राखवां. पनी कुंभपर केसरना साथीयावाळु श्रीफल मुक. पनी तेपर शतुं अ. थवा पीळु वस्त्र ढांक पड़ी ते कुंज सारीरीते जाल. वी राखीने जा रहे. पछी ते वखते बारे स्नात्रियाए दिग्पाल विगेरेने विसजन करनानो नीचे प्र. माणे विधि करवो. तेए ग्रहना पाटला आगळ यावी ॐनमो आदित्यादिन्यः सवाहनेन्यः सपरिकरेन्यः सायुधेन्यः सर्वोपद्रवेन्यो रक्षत रक्षत, स्वस्वस्थानं गडत गवत स्वाहा' एवी रीतनो मंत्रपाठ जणीने तेनु वि. सर्जन करवू. पछी जे जगोए दिगपालोने नोतर्या होय, ते जगोए सघळाए आववं. तथा आगळ राखी मुकेला बलिमांश्री दशांश बाकी राखीने ते सघळो बलि त्यां लाववो. पछी त्यां ॐनमो इन्धाय पूर्व दिगधिष्टायकाय, ऐरावणवाहनाय, सहस्रनेत्राय, वज्रायुधाय सपरिजनाय, सर्वोपवाद् रद रहा, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वस्थानं गड गड स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र जपीने बलिउडाळीने तेने विसर्जन करवो. तथा एवीज रीते सर्व दिगपालोनां नामो बेश्ने बाकी नववार पाठ जणीने, तथा बलि उगळीने सर्व दिक्पालो. ने विसर्जन करवा. __ पड़ी पेला कुंचने वाजां वागते, तथा धवलमंगस गवाते थके, तथा याचकोने यथाशक्ति दान दे. ते बते घरमा लावी, उंचे स्थानके पधराववो. तथा त्यां उत्तम प्रकारनो धूप करवो. ___ हवे ते स्नात्रनुं पाणी घरमा सघळी जगोए छांटवू, सर्व श्रावकोए ते पोताने माथे चमाव. तथा बीजा श्रावकोए पण पोतपोताने घेर खेर जश्ने छांटवू. पछी बे श्रावकोए बाकी रहेला दशांश बखिने, स्नात्र करावनारना घरमा, मूतबलिमंत्र जणीने व. धावq. स्नात्र करावनार, कुंनने ज्यारे घरमा लेश जाय, त्यारे स्नात्रियाउँए देव वांदवा. तेमां स्तवननी जगोए शांतिकरस्तोत्र कहेवं. पछी स्नान करावनारे यथाशक्ति संघनी जक्ति करवी. प्रजावना देवी. जैन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) याचकोने वस्त्रादिकनु दान आपq. स्नात्रियाउने पण यथाशक्ति पेहेरामणी आपवी. नैवेद्य रांधनारीने सामी आदिक श्रापां. अने तेथी करीने स्नात्र करावनारने स्वर्गनुं आयुष्य बंधाय बे. गुरुने पण अन्न वस्त्र आदिक प्रतिलानवां. स्वधर्मीने जमामवा. एवी रीते अष्टोत्तरी स्नात्रनो विधि जाणवो. __ अहीं सामाचारीनी परंपरामा क्रियांतर घणांडे, ते जोश व्यामोह करवो नहीं. उपर लखेलो सघलो विधि, श्राविधि, प्रतिष्ठाकदप, जीर्णकल्प, सामाचारी, इत्यादि ग्रंथने अवलोकीने लख्यो जे. वली गणधर सामाचारीमां पण फेरफार बे, पण साध्यकार्य तो एकज बे, माटे उपर कहेलो विधि सफल जाणवो. हवे कलश चमाववानो विधि कहे ॥ प्रथम भूमिमंत्रे करीने भूमिने शुद्ध करवी. कुंजारना चाकनी माटीनी पीठीका करवी. ते उपरे कलशने स्थापवो. तेने उत्तम जलथी स्नान करावq. पडी प्रथम मूलनायकनी प्रतिमाने अनिषेक करवो. स्नात्र नणाववी. पड़ी दिक्पालोने कोरो बखि था. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवो. ते वखते ॐ इंद्र इह कलशप्रतिष्ठायां श्मं बलिं गृह्ण गृह्ण सर्वेषां शांति पुष्टिं कुरु कुरु स्वाहा एवी रीतनो मंत्र जणवो. पली जल, चंदन, पुष्प, धूप अने दीपकनी पूजा करवी. पढ़ी 'ॐ नमो अरिहं. ताणं, ॐनमः सिद्धाणं, ॐनमो आयरियाणं ॐनमो उवज्कायाणं, ॐनमो सब साहणं ॐ नमो आगासगामिणं हः हः नमः' एवी रीतनो मंत्र जणीने क्रियाकारकने अंगें वासदेप नाखवो. पछी चार थोश्थी चैत्यवंदन करवू. उपर शांतिदेवता आदिक पांच थोयो कहेवी. पछी हाथमा पुष्पो वेश्ने कळशने वधाववो. तेने तिलक करवं, धूप देवो, पछी मोघरमुद्रा देखाडीने, तथा, 'ॐ ही दवं सर्वोपद्रवं रद रद स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र जणीने कलशने स्पर्श करवो. पछी तेने सर्वोषधिथी स्नान करावयूँ, पछी ते कळशपर मीढोल, मरमासींगी, तथा पंच रत्ननी पोटली बांधवी. चंदनथी कलशपर लेपन करवू. वळी धेनु, परमेष्टी, गरुम, अंजलि अने गणधर मुद्रा देखामवी. सूरिमंत्रधी वासदेप करवो. पछी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेपर सोपारी तथा श्रीफल चमावq. पछी 'ॐ थावरे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा' एवी रीतनो मंत्रपाठ नणीने तेपर कसुंबी वस्त्र उढामवं. कोरा बलि चढाववा, आरती उतारवी. पोखj करावq. पछी चैत्यवंदन त्रण थोश सुधि कहेवू. पछी सिद्धाणं बुद्धाणं' नो पाठ कहीने, अधिवासना देवी आराधनार्थ करेमि कामस्सगं' नो पाठ कहीने, तथा एक लोगसनो काउसग करीने, नीचे प्रमाणे थोइ कहेवी. पातालमंतरिद, जुवनं वा या समाश्रिता नित्यं ॥ सात्रावतरतु कुंने, रुचिरेऽधिवासनादेवी ॥१॥ पछी शांतिदेवीनी थोश् कहेवी. पछो नमुत्थूणं कहीने स्तवननी जगोए मोटी शांति कहेवी. पछी जयवीयराय कहीने, 'प्रतिष्ठादेवी आराधनार्य करेमि काउस्सग्गं,' नो पाठ कहीने, तथा एक लोगसनो काउसग करीने, यदधिष्ठिता प्रतिष्ठा, सर्वासर्वास्पदेषु नंदंती ॥ श्रीजिनकुंने सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदं॥१॥ एवी रीतनी थोइ कहेवी. पछी ते कलशने अखंग बदतथी वधाववो. या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चकोने यथाशक्ति दान आपq. चारे बाजुए जवारा ववराववा. अने त्यां सात दिवसोसुधि धवल मंगल गवराववा. पछी मुहूर्त खते वाजते गाजते ते क. लशने शिखरपर चमाववो. तेनी नीचे पंचरत्नो मुकवां. तथा पंचामृत अने रुपानाj पण मुक. एवी रीतें कलश चमोववानो विधि जाणवो. हवे ध्वजारोपणनो विधि कहे . पेहेला तो उपर प्रमाणेज पीविका करवी. तेपर ध्वजनुं बारोपण करवू. पछी 'ॐ नमः क्षेत्रदेवाय, शिवाय दाँ क्षोउदो दः इह ध्वजमंगपे आगड आगल, इह परिजोग्यं बलिं गृह्ण गृह्ण, जोगं देहि सुख देहि यशो देहि, संततिं देहि, शहिं देहि, वृ. द्धिं देहि, बुद्धिं देहि, सर्वसमीहितं देहि, देहि, स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र नणीने ते पीठिकानी चारे बाजुए पुष्प; चोखा, वास विगेरे मंत्रीने उगलवा. पछी नंदावर्त, ग्रह दिक्पालतुं स्थापन करवू, पछी 'ॐक्षा ही सर्वोपवाद बलिं रद रद वाहा' एवी रीतनो मंत्र जणीने बलिने मंत्रित करवो. पडी गृह अने दिक्पालन आह्वाहन करवू. पड़ी चैत्यवंदन क. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) र. नमुत्थुणं थरिहंत चेईयाणं तथा नोकारनो काउसग करीने, नीचे प्रमाणे थो कहेवी. अर्हस्तनोतु स श्रेयः, श्रियो यट्यानतो नरैः ॥ लन्यते क्षणतो मह्यां, विना यत्नं समुज्ज्वलाः ॥१॥ पली लोगस्स, तथा नोकारनो काउसग्ग करीने, नीचे प्रमाणे थोश कहेवी. नवतत्वयुता त्रिपदी, श्रिता गणधरैश्च गुंफिता ॥ वरधर्मकीर्तिददाना, नंया सा जैनगीर्जीयात् ॥२॥ एवी रीते सिघाणं बुद्धाणं कहीने, तथा नोकारनो काउसग्ग करीने, श्रुतदेवतानी, पड़ी क्षेत्रदे. वतानी, पनी जुवनदेवतानी, पठी शासनदेवतानी, तथा समस्तवेयावञ्च गराणंनी थोई कहेवी. पठी नमुत्थुणं तथा जयवीगराय कहेवा. स्तवननी जगो. ए लघुशांति कहेवी. पलीरत्नोत्पत्तिबहुसरलता सर्वपर्वप्रयोग । स्पष्टोच्चत्वं गुणसमुदयो मध्यगंजीरता च ॥ यस्मिन् सर्वास्थिति रतितरा देवनक्तिप्रकारास्तस्मिन् वंशे कुसुमविततिर्नव्यहस्तोज्झितास्तु ॥ एवी रीतनुं काव्य जणीने ध्वजपर पुष्पवृष्टि करवी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) पठी जल चंदन विगेरेथी तेनी अष्टप्रकारी पूजा करवी. तेमांप्रथम सोनाना कलशमां सुगंधि पाणी जरीने, गंगादिन्यो ग्रहीतेन, निर्मलेन जलेन च ॥ ध्वजं जिनगृहारोप्यं, स्नपयामि मुदा किल ॥१॥ एवी रीतनो श्लोक जणीने, ते ध्वजपर कलश रेमवो. एवी रीतें पेहेलुं स्नात्र जाणवू. पड़ी, नानारत्नौघयुतं, सुगंधिपुष्पाधिवासितं नीरं ॥ पतताहिचित्रवर्णं, मंत्राढ स्थापनादंडे ॥ २॥ एवी रीतनो श्लोक जणीने पंचरत्नना चूर्णवाला पाणीथी बीजं स्नात्र करवू. पलीप्लदोटुबरबट्यादि, चूर्णैश्च संमिश्रितं ॥ पानीयं यतु शर्म; पतज्जैनध्वजे ध्रुवं ॥३॥ एवी रीतनो श्लोक नणीने, पीपर, पीपळो, सरसमो, उंबर, वम, चंपो, यासोपालव, आंबो, जांबु, बकुल, अर्जुन, पाटल, बीली, केसुमां, दामीम, तथा नारींगनी बालनां चूर्णथी जलने मिश्रित करीने, ते पाणी ध्वजपर रेम. एवीरीतें त्रीजुंस्नात्र जाणवू.पली, पर्वतसरोनदीशृंग, मृतिश्च मंत्रपूतानिः ॥ उधृत्य ध्वजदंडे, स्नपयाम्यधिवासनासमये ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०१) एवी रीतनो श्लोक जणीने, नदीना तटनी सरोवरनी, हाथीना दांतनी, उद्धश्ना दरनी, वृषननां शींगमांनी, पर्वतनां शिखरनी, तथा राजदरबारनी माटीवाळा पाणीथी वजने स्नात्र करवं. एवी रीतें चोथु स्नात्र जाणवू. पठी, सहदेव्यादिसदौषधि-वर्गेण श्रीजिनदंमस्य ॥ तन्मिश्रं सततं च, पततु जलं हरतु पुरितानि ॥५॥ एवी रीतनो श्लोक नणीने, सहदेवी, शतावरी, कुंवार, वाळो, बन्ने जातनी रींगणी, मोरपीब, अं. कुल, शंखाउली, लक्ष्मणा, बाजोकाजो, थोर, तुलसी, मरवो, गलो, कुखो, सरपंखो, राजहंसी, पी. लवणी सालवखी, गंधनोली, माहानोली, समुलो मा. न, पानजम, दामीमजरु, तथा आसंघजरु, विगेरेनां चूर्णथी मिश्रित करेला पाणीथी ध्वजनं स्नान करवं. एवी रीते पांचमुं स्नात्र जाणवू. पनी, नानाकुटाद्यौषधि-संमिश्रं तद्युतं पतन्नीरं ॥ दंडे कृतसन्मंत्रं, कौघं हंतु नव्यानां ॥ ६ ॥ एवी रीतनो श्लोक जणीने, उपलेट; लोदर, दे. वदार; वजमेथी; धरो, जेठीमध, मरमाशींगी, तथा वरणानुं मूल, एटलानुं चूर्ण करीने, जलमिश्रित क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०२) री ध्वजने स्नान करवू. पडी, सकलौषधसंयुक्त, सुगंधया घर्षितं सुगतिहेतोः॥ स्नपयामि चारुदंमं, मंत्रितेन तन्नीरनिवहेन ॥७॥ एवी रीतनो श्लोक जणीने, हलदर, वजमेथी, सुवा, वाळो, मोथ, प्रियंगु, बबीलो, वांसनी गांठ, सढकचुरो, उपलेट, सुखम, एलची, लवींग, तज, तमालपत्र, जावंत्री; जायफल, तथा नागकेशरनु, चूर्ण पाणीमा मिश्रित करीने तेथी ध्वजने स्नात्र करवू. पली, गंधोदकेन तुर्ण च, जिनप्रासादममनं ॥ अष्टकर्मविनाशाय, दंडं च स्नपयाम्यहं ॥१॥ एवी.रीतनो श्लोक जणीने शिलाजीत, सुखम, नपलेट, वास अने कपुरथी मिश्रित थएला जलें करीने ध्वजने स्नान करवू. पबी, शीतलसरससुगंधैः, पानीयैश्च सुचंदनार्चितैः ॥ जलं मनोझं तूर्ण, मंत्र पुतं पततु ध्वज दंडे ॥१॥ एवी रीतनो श्लोक नणीने चंदनमिश्रित जलें करीने दंगने स्नान करवू. पली; काश्मीरजसुविलिप्तं, दंडं तन्नीरधारयाऽजिनवं ॥ सन्मंत्रयुतयाशुचिदंडं, स्नपयामिकिल सिध्यर्थं ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०३) एवी रीतनो श्लोक जणीने, केशरमिश्रित जलथी ध्वजने स्नात्र करवू. पली, जलधिनदीसहकुंडेषु, यानि तीर्थोदकानि शुकानि । तैर्मत्रसंस्कृतैरिह, दंमं स्नपयामि सिध्यर्थ ॥१॥ एवी रीतनो श्लोक जणीने, गंगाजल आदिकश्री ध्वजनुं स्नात्र करवं. पठी, शशिकरतुषारधवला,उज्ज्वलगंधासुतीर्थजन मिश्रा कर्पूरोदकधारा, सुमंत्रयुता पततु दंडे ॥ १॥ एवी रीतनुं काव्य जणीने, कर्पूरे करीने मिश्रित थएला जलश्री ध्वजनुं स्नान करवु. पठी ध्वजनी चं. दन पुष्प, धूप, अने दीपकथी पूजा करीने, मीढोल मरमासींगी तथा सरसव तेने बांधवां. तेपर कसुंबी वस्त्रनुं आबादन करवू; तथा सुरनि, परमेष्टी, गरुम, अंजली अने गणधर एम पांच मुद्रा देखामवी; व. ळी चक्रमुद्रा देखामीने, ते ध्वजने स्पर्श करवो. पड़ी 'ॐ ह्री ः वः' एवी रीतनो मंत्र सात, एकवीश, अथवा एकसोने आठ वार नणीने, दंडपर मंत्रित बलि नांखयो, पली तेनुं पोखणुं करवू. तथा पछी, दुष्टसुरासुररचितं, न : कृतदृष्टिदोषजं विघ्नं ॥ तद् गत्वतिरं, नविककृतारात्रिकविधाने॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०४) एवी रीतनो श्लोक नणीने तेनी भारती उतारवी. पली मूलनायकजीनुं चैत्यवंदन करवू; तेमांत्रण थोश कीधाबाद सिद्धाणं बुझाणं कहीने, अधिवासना दे. वीए करेमि काउसग्गंनो पाठ कहीने, पातालमंतरिद, जुवनं वा या समाश्रिता नित्यं ॥ सात्रावतरतु जैने, दंडेऽधिवासना देवी ॥१॥ एवी रीतनी थोइ कहेवी. पबी, शांतिनाथनी, सूत्रदेवीनी, संतिदेवीनी, शासनदेवीनी अंबिकानी, देवदेवतानी, तथा समस्तवेयावञ्चगराएंनी तेना काजसगो करीने थोडकहेवी. __पड़ी नीचे बेसीने सत्तावीश नोकार गणवा. नमुस्थुणं कही स्तवननी जगोए लघुशांति, तथा मोटी शांति कहेवी. तथा पनी जयवीयराय कहीने, ध्वजने वास, पुष्प विगेरे चमावां तथा ध्वजने शुजमुहर्ते चमाववो. वाजते गाजते चैत्यने त्रण प्रददिणा देवी, ध्वज चमावती वखते ध्वजनी नीचे पंचरत्नो मुकवां. बिंबने जमणे हाथे ध्वज चमाववो. मूलनायकथी चारगणो ध्वजदंग करवो. ते ध्वज चमाव्याबाद सातदिवसपली तेपर ध्वजा चडाववी. एवी रीर्ते ध्वजारोपण विधि ॥ इति श्रीरत्नशेखर• सूरिए रचेलो जलयात्रादि विधि संपूर्ण. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રી " જૈન ભાસ્કરાય " પ્રેસમાં શા. વીઠલજી હીરોલા છાપ્યું - જામનગર, www melibrary.org