SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्यां सिंहासनपर चोवीशी तथा पंचतीर्थीनी मूर्ति पधराववी तथा त्यां स्नात्र पूजा जणवी. .. पली सधवा ( सुवासिनी ) स्त्रीपासे कुंज उपमावीने जलपूजा करवामाटे कुवापर जवं. त्यां प्रथम कुवाउपरे पूर्व अथवा उत्तर सन्मुख बेसीने, कुवाप. रवी जगो चोखा पाणीथी धोश्ने साफ करवी. पडी त्यां चोखानो साथीयो करीने, तेपर सोपारी, तथा लामवा नंग बे, अने सुबाली नंग बे मुकवां. पली नीचे प्रमाणे जलदेवीनी अष्टप्रकारी पूजा करवी. “ॐ ही क्ली छु” एवी रीतनो मंत्र नणीने, जल, चंदन, पुष्प, अक्षत, सोपारी नैवेद्य, दीप, अने "धूपं स. मर्पयामि स्वाहा” एम जणीने तेथी जलदेवीनु पू. जन करवू. पली पसलीमां पान खश्ने, उपर बदाम, चोखा, बाकुला, नालीएर तथा तेपर कंकुनो साथी करीने, नीचे प्रमाणे त्रणवार मंत्र जणवो."ॐाँ ही क्रॉ जलदेवि पूजाबलिं गृह्ण गृह्ण स्वाहा” एवी रीतनो मंत्र त्रणवार जणीने ते कुवामां पधरावq. पड़ी, अंकुश, मब, अने कछप एम त्रण प्रकारनी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005366
Book TitleJal Yatradi Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages106
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual, & Vidhi
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy