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________________ (६७) धैं हूँ कः वज्राधिपतये इंद्र संबौषट' एवी रीतनो मंत्र जणीने तेथी पूर्व दिग्पालने वधाववो. पठी गोरोचनथी इंद्रनुं मंमल थालेखq. पनी 'ॐ नमो ईजाय, पूर्व दिगधिष्टायकाय, ऐरावणवाहनाय, सहस्रनेत्राय, वज्रायुधाय, सपरिजनाय, अमूकगृहे, वृद्धस्नात्रमहोत्सवे, बागल बागल वाहा' एवी रीतनो मंत्र नणीने, आह्वान मुद्राथी तेनुं आह्वान करवं. पनी 'ॐ नमो इंद्राय इत्यादिक उपर प्रमाणे कहीने, अत्र तिष्ट तिष्ट स्वाहा' एम कहीने स्थापन मुशाथी तेनुं स्थापन करवू. पडी 'ॐ नमो इंद्राय' इत्यादिक उपर प्रमाणे कहीने पूजां गृह्ण गृह्ण स्वाहा' एम कहीने अंजलिमुद्राथी तेमने निमंत्रणा करवी, पनी ॐ नमो इंद्राय इत्यादि उपर प्रमाणे कहीने, गंधादिकं समर्पयामि स्वाहा' एवी रीते कहीने चंदन आदिक आठ वस्तुयोगी आदित्यनी पेठेज पू. जन करवू. तेमां चंदनपूजा मध्ये केसर अथवा वासचूर्णथी, पुष्पपूजामां चंपाश्री, फलपूजामां जंबीराथी, वस्त्रपूजामां पीळां वस्त्रथी, तथा नैवेद्य पूजा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005366
Book TitleJal Yatradi Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages106
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual, & Vidhi
File Size4 MB
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