Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 105
________________ (१०४) एवी रीतनो श्लोक नणीने तेनी भारती उतारवी. पली मूलनायकजीनुं चैत्यवंदन करवू; तेमांत्रण थोश कीधाबाद सिद्धाणं बुझाणं कहीने, अधिवासना दे. वीए करेमि काउसग्गंनो पाठ कहीने, पातालमंतरिद, जुवनं वा या समाश्रिता नित्यं ॥ सात्रावतरतु जैने, दंडेऽधिवासना देवी ॥१॥ एवी रीतनी थोइ कहेवी. पबी, शांतिनाथनी, सूत्रदेवीनी, संतिदेवीनी, शासनदेवीनी अंबिकानी, देवदेवतानी, तथा समस्तवेयावञ्चगराएंनी तेना काजसगो करीने थोडकहेवी. __पड़ी नीचे बेसीने सत्तावीश नोकार गणवा. नमुस्थुणं कही स्तवननी जगोए लघुशांति, तथा मोटी शांति कहेवी. तथा पनी जयवीयराय कहीने, ध्वजने वास, पुष्प विगेरे चमावां तथा ध्वजने शुजमुहर्ते चमाववो. वाजते गाजते चैत्यने त्रण प्रददिणा देवी, ध्वज चमावती वखते ध्वजनी नीचे पंचरत्नो मुकवां. बिंबने जमणे हाथे ध्वज चमाववो. मूलनायकथी चारगणो ध्वजदंग करवो. ते ध्वज चमाव्याबाद सातदिवसपली तेपर ध्वजा चडाववी. एवी रीर्ते ध्वजारोपण विधि ॥ इति श्रीरत्नशेखर• सूरिए रचेलो जलयात्रादि विधि संपूर्ण. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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